संविधान और गणतंत्र (संभाषण)

प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत गीत, नृत्य, संगीत, नाटक आदि के अतिरिक्त संभाषणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । विद्यालयों में संभाषण की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर संभाषण-संग्रह की पुस्तक 'देशप्रेम' की रचना की गयी है । इस पुस्तक के लेखक प्रख्यात साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' हैं । प्रस्तुत है इस पुस्तक से एक संभाषण ।

संविधान और गणतंत्र  Samvidhan Aur Gantantra

सन् 1947 में जब देश अंग्रेज शासकों के शासन से आजाद हो गया, तब देश के बुद्धिजीवियों और राजनीतिज्ञों को देश चलाने की चिंता सताने लगी । देश के सभी राजनेता और विज्ञजन एकत्रित हुए और उन्होंने विचार किया कि हमारे देश की शासन प्रणाली लिखित हो, जो राजतंत्र पर आधारित न होकर लोकतंत्र अर्थात गणतंत्र पर आधारित हो । ऐसे विधान की पुस्तक यानि संविधान की रचना करने के लिए विद्वानों की एक सभा का आयोजन हुआ, जिसके अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे । सभा में उपस्थित विद्वानों और राजनेताओं के अनुसार एक संविधान समिति का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर हुए । उस दिन से संविधान समिति के अध्यक्ष अंबेडकर के निर्देशों पर संविधान की पुस्तक लिखी जाने लगी, जिसके पूरा होने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा । जिसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा में प्रस्तुत किया गया और 26 जनवरी सन 1950 को संविधान पूरे देश में लागू कर दिया गया ।

नया नियम चल उठा इस भारत देश में, 
हर कोई मचल उठा इस भारत देश में ।
लोकतंत्र लागू हुआ जिस समय 'प्रखर', 
घर - घर दीया जल उठा इस भारत देश में ।।

लोकतंत्र अर्थात् जनता शासन । लोकतंत्र के द्वारा भारतीय जनता को अपना शासक चुनने का अधिकार मिल गया । लेकिन कुछ समय बाद इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे । आज ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक का चुनाव जाति धर्म और संप्रदाय के आधार पर हो रहा है । जिसके कारण देश में अनेकों अयोग्य व्यक्ति उच्च पदों पर आसीन हैं । आज देश में अनेकों शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक, धार्मिक और राजनीतिक समस्याएं अपना प्रकोप दिखा रही हैं, किंतु जो संपन्न हैं, वे अपनी मस्ती में जीए जा रहे हैं और जो विपन्न हैं, वे जहर के घूंट पीए जा रहे हैं; क्योंकि हमारा भारत विकासशील है ।

देखिए कब रूप बदलता है वतन का ?
कब तलक स्वरूप बदलता है वतन का ?
जीते रहेंगे तो देखेंगे 'प्रखर' कि समय 
किसकी फल स्वरूप बदलता है वतन का ?

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने