भोजपुरी बिरहा के विषय में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने वाली पहली पुस्तक है - 'भोजपुरी बिरहा' 2013 । भोजपुरी बिरहा नाम की इस पुस्तक में बिरहा संबंधी अनेक प्रश्नों के उत्तर समाहित हैं । इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य बिरहा की आलोचना करना नहीं है बल्कि भोजपुरी कवियों का ध्यान उत्कृष्ट साहित्य की ओर आकृष्ट करना है । इस पुस्तक में 'बिरहा का उद्भव और विकास', 'बिरहा का नामकरण', 'बिरहा में अखाड़ेबाजी', 'बिरहा में जातिवाद', 'बिरहा का दंगल', 'बिरहा के अंग' और 'बिरहा का मूल्यांकन' आदि शीर्षकों के अंतर्गत मैंने मैं अपने विचारों को अभिव्यक्त किया है । चूँकि बिरहा भोजपुरी क्षेत्र की बहुचर्चित और श्रेष्ठ काव्य रचना के रूप में मान्य है, इसलिए एकाएक इसकी आलोचना करने से बिरहा प्रेमियों को अनुचित लगेगा । अतः बुद्धिजीवियों से मेरा अनुरोध है कि वे भावुकता त्यागकर बुद्धिपूर्वक अमल करेंगे ।
भोजपुरी बिरहा का उद्भव एवं विकास Bhojpuri Birha Ka Udbhav Evam Vikas
सुनने को मिलता है कि भोजपुरी बिरहा की रचना करने का आरंभ सर्वप्रथम किसी बिहारी ( यह हिंदी साहित्य के बिहारी नहीं है ) नाम के कवि ने किया । बिहारी के शिष्यों में मुसई, रमन और रामजतन आदि थे । बिहारी के मरने के बाद उनके सभी शिष्यों ने अपना अलग-अलग अखाड़ा बना लिया और अपने अपने ढंग से बिरहा रचने लगे । अतः बिरहा के मूल रूप में परिवर्तन भी हो गया । बिहारी के सभी शिष्यों ने अपने - अपने शिष्य बनाये । इस प्रकार शिष्यों के शिष्यों द्वारा बिरहा रचने की परंपरा चलती रही, जो आज अपने विकास की चरम सीमा पर है । उक्त कथा के अलावा बिरहा का कोई प्रामाणिक इतिहास नहीं है ।
बिरहा का नामकरण Birha Ka Namkaran
बिरहा के नामकरण का भी कोई सार्थक प्रमाण नहीं है । यदि हम हिंदी शब्दकोश के आधार पर बिरहा का अर्थ समझें तो वह इस प्रकार होगा -
भोजपुरी का बिरहा शब्द हिंदी के विरह शब्द का बिगड़ा हुआ ( अपभ्रंश ) रूप है, जिसका अर्थ है - दुःख । संभवतः बिहारी या बिहारी के शिष्यों द्वारा बिरहा का नाम बिरहा इसलिए रखा गया होगा क्योंकि बिरहा में एक कहानी होती है जो किसी करुण घटना (कांड ) पर आधारित होती है । किंतु हर बिरहा करुण नहीं है । कोई बिरहा वीर रस का है, कोई बिरहा हास्य रस का । बिरहा में कई रसों का समावेश होना बिरहा नाम को भ्रामक और त्रुटिपूर्ण सिद्ध करता है ।
बिरहा में अखाड़ेबाजी Birha Me Akharebaji
बिरहा के क्षेत्र में अखाड़ेबाजी चलती है । बिरहा रचने वाले हर कवि का अपना खड़ा होता है, जो उसके पूर्वगुरुओं के नाम से चलता है । कोई कवि रमन के अखाड़े से है, कोई कवि मुसई के अखाड़े से है, तो कोई कवि रामजतन के अखाड़े से है । इनके अतिरिक्त कुछ निर्दल अखाड़े भी हैं । भोजपुरी बिरहा के चर्चित कवि प्यारे लाल यादव और बेचू यादव आदि निर्दल अखाड़े के हैं, जो अपना प्रभाव सबसे अधिक बना लिए हैं ।
बिरहा के कवि हिंदू पुराणों और उपनिषदों की कपोल-कल्पित (मनगढ़ंत) कहानियों को पढ़कर बिरहा में पहेलियां बुझाते हैं, और अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने का निरंतर प्रयास करते रहते हैं । जिस अखाड़े के कवि जितने ही पैंतरेबाज होते हैं, वह अखाड़ा उतना ही श्रेष्ठ समझा जाता है ।
बिरहा में जातिवाद Birha Me Jativad
भोजपुरी क्षेत्र की ही तरह भोजपुरी बिरहा में भी जातिवाद का नारा कायम है । कहा जाता है कि बिरहा 'अहीरों की बपौती' है । बिरहा में यादव कवि और यादव गायक को ही महत्व दिया जाता है । काशी के 'नागरी प्रचारिणी सभा' द्वारा भी बिरहा का नाम 'अहीरों का गीत' रखा गया है ।
बिरहा का दंगल Birha Ka Dangal
जब बिरहा का दंगल होता है तो उसमें दो अखाड़ों के गायक अथवा गायिका मंच पर उपस्थित होते हैं । नए गायकों के साथ उनके गुरु (कवि) भी होते हैं । मंचासीन दोनों गायक कलाकारों के हार जीत का फैसला कई आधार पर किया जाता है । जिस कलाकार को जनता सबसे अधिक पसंद करती है और इनाम देती है, वही गायक विजयी घोषित किया जाता है । अब प्रश्न यह उठता है कि जनता दोनों गायकों में किसे पसंद करती है ? तो उत्तर यही मिलता है कि जनता उसी को पसंद करती है, जो इसका मनोरंजन अच्छी तरह करता है । इस कारण से दंगल में उपस्थित दो गायक कलाकारों में किसी गायक को अन्याय का सामना करना पड़ता है । जिस गायक की जीत होती है, उसके कवि की भी जीत होती है और दोनों का नाम लोगों की जुबान पर होता है ।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिन लोगों को सुर और सरगम का कोई ज्ञान नहीं, वे गायकों की हार जीत का निर्णय करते हैं और जिन्हें काव्य का गुण दोष नहीं मालूम वे काव्य की उत्कृष्टता का उद्घोष करते हैं । लोग कहते हैं कि 'खुदा मेहरबान तो गधा भी पहलवान' किंतु यहां तो यह कहना उचित होगा कि 'जनता मेहरबान तो गधा भी पहलवान' ।
बिरहा के अंग Birha Ke Ang
बिरहा एक बारह मजा चीज की तरह है, जिसकी भाषा कबीरदास की तरह 'पंचमेल खिचड़ी' है । बिरहा में हिंदी, संस्कृत, उर्दू , अंग्रेजी और भोजपुरी आदि सभी भाषाओं का निःसंकोच प्रयोग किया जाता है । बिरहा के अंगों का विवरण नीचे दिया जा रहा है -
1. वंदना (Vandana)
बिरहा का आरंभ किसी वंदना से होता है जिसमें ईश वंदना, सरस्वती वंदना या गुरु वंदना कुछ भी हो सकती है । वंदना में दोहा छंद का प्रयोग किया जाता है । बिरहा के कवियों का दोहा लय पर आधारित होता है; हिंदी की तरह मात्रा पर नहीं । अर्थात् भोजपुरी दोहा के प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 मात्राएं में तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएं होना अनिवार्य नहीं । इसके अलावा कुछ कवियों के बिरहा में वंदना कोई दोहा न होकर, गीत होती है ।
2. भूमिका (Bhumika)
बिरहा जगत में भूमिका की अहम भूमिका है । बिरहा के कवियों में जो जितनी ही अच्छी भूमिका लिखता है, वह उतना ही बड़ा (श्रेष्ठ) कवि होता है । भूमिका बिरहा का आधार होती है; जिस प्रकार मकान की नींव । भूमिका में बिरहा में प्रयुक्त कथा की संक्षिप्त कथावस्तु होती है । बिरहा की भूमिका 8 पंक्ति की होती है, जिसमें पंक्तिगत मात्रा निश्चित नहीं होती है । भूमिका लिखने का ढंग एक ही होता है जबकि गाने का ढंग अनेक । एक भूमिका का उदाहरण -
गंदी जलवायु है गंदा वातावरण
गंदा परिवेश है गंदा पर्यावरण
गंदी फिल्मों का है दौर अब चल रहा
गंदे साहित्य का दौर है चल रहा
गंदा माहौल गंदा हुआ है समाज
गंदगी की है सत्ता जमाने में आज
नौजवानी से पहले ही गंदे ख्याल
आकर छिन ले रहे हैं शर्म और लाज
कुछ कवि भूमिका में भी अपने नाम का प्रयोग करते हैं ।
3. ग़ज़ल या कव्वाली (Ghazal ya Kawwali)
बिरहा में भूमिका के तुरंत बाद एक गजल या कव्वाली रखने का उपक्रम है । बिरहा का कवि किसी ग़ज़ल या कव्वाली की तर्ज पर बिरहा की कहानी से संबंधित कोई ग़ज़ल या कव्वाली रचता है । जिसमें मात्र मुखड़ा (बोल) ही होता है, अंतरा नहीं ।
उदाहरण -
गजल
तर्ज : दिल की तनहाई को आवाज बना लेते हैं
लोग परछाई को भगवान समझ लेते हैं
परख करते सही ना खुद को दगा देते हैं
कव्वाली
तर्ज : कुदरत ने सनम तुझको
घबराओ ना कुंवारो सह लो गर्मी तन की
तब अगन बुझा लेना जब हो जाएगी शादी
4. दौड़ शेर (नज़्म)
ग़ज़ल या कव्वाली के पश्चात् दौड़ शेर होता है, जिसे नज़्म भी कहते हैं । दौड़ शेर के द्वारा बिरहा की कहानी का आरंभ होता है । वैसे तो दौड़ शेर आठ पंक्ति का निश्चित किया गया है, किंतु कुछ मनमाने कवि 16 से 20 पंक्ति का भी दौड़ शेर प्रयोग करते हैं । ऐसे ही कवि बिरहा की कहानी का आरंभ भी दौड़ शेर की बजाय किसी गीत या पद से ही कर देते हैं । दौड़ शेर (नज़्म) उर्दू साहित्य की विधा है, जिसमें मात्रा नहीं बहर (बहाव) का ध्यान रखा जाता है । एक दौड़ शेर का उदाहरण -
बात है कानपुर शहर की शहर ही जैसी
अमीर बाप की बिगड़ैल बेटी मेघा थी
इश्क की भावना की धार में जब बहने लगी
गरीब रवि पर कुर्बानियां छिड़कने लगी
दबा सकी ना भावना को मन की बात बोली
खुली चंचल थी खुलके आशिक़ी का राज खोली
रवि गरीब था लेकिन विचार ऊंचा था
इसलिए शादी का फैसला था मेघा का
5. जौ़हरी (Jauhari)
जौहरी भी एक नज़्म ही है, किंतु इसका प्रयोग केवल वीर रस के बिरहा में किया जाता है । जौहरी के लिए निश्चित पंक्ति का कोई बंधन नहीं, अर्थात इसमें 8 से अधिक पंक्तियां हो सकती हैं । जौहरी का एक उदाहरण -
देखो दुनिया में दिखती
अच्छी-अच्छी जवानी
होती वह धन्य जवानी
जो देश को दे कुर्बानी
जनपद गाजीपुर में है
एक गांव धामपुर नामक
उस राह पर है जो जाती
गाजीपुर से आजमगढ़
सन उन्नीस सौ तैंतीस में
दिन एक जुलाई का था
उस्मान खान की पत्नी
ने पुत्र किया एक पैदा
अब्दुल हमीद की काया
पर जब थी बाल्यावस्था
रखते थे अपने मन में
फौजी बनने की इच्छा
6. गीत (Geet)
बिरहा में गीतों के प्रयोग की भी अनिवार्यता है । नज्म़ या जौ़हरी के पश्चात् एक गीत होती है । गीत किसी लोकगीत या हिंदी गीत की तर्ज पर होती है, जो बिरहा की कहानी में बाधक न होकर साधक होती है । कविवर प्रबुद्ध नारायण बौद्ध के अनुसार - " बिरहा में अधिक से अधिक पांच गीत होनी चाहिए । " गीत अंतरा सहित होती है, जिसमें एक या दो अंतरा होता है । बिरहा में प्रयुक्त एक गीत का उदाहरण -
तर्ज : पियवा मिलल ललमुंगआ
पेटवा में पड़लें ललनवा
जनलें परिजनवा ए भइया
अंतरा- हल्ला के डर से ना गइले डक्टरिया
पूरा नौ महीनवा बितवले भीतरिया
पैदा भइलें जुड़वा बचनवा
जनलें.......................
7. टेरी (Teri)
बिरहा में टेरी दो बार होती है । एक टेरी बिरहा के मध्य में और एक टेरी बिरहा के अंत में होती है । कुछ कवि मनमाने और मनचाहे ढंग से टेरी का प्रयोग करते हैं । कविवर प्रबुद्ध नारायण बौद्ध जी के अनुसार - " टेरी दौड़ शेर के पश्चात तथा विदेशिया के पूर्व होनी चाहिए । " टेरी समुद्र के ज्वार - भाटा की भांति चढ़ाव और उतराव से युक्त होती है । टेरी हिंदी में भी होती है और भोजपुरी में भी । टेरी का उदाहरण -
हिंदी टेरी
प्यासी को जल का कुवा दिख गया
हुई करीब एक दिन बनके प्रेमपासी
प्यासी को ....................
भोजपुरी टेरी
आगे कुआं आउर पीछे बा खाई
पड़ गइलें चक्कर में केहर पांव बढ़ाईं
आगे कुंआ ...................
8. विदेशिया (Videshiya)
विदेशिया एक करुण रस का पद होता है । 'विदेशिया' शब्द विदेश का रूपांतरण है, जिसका आशय वियोग से है । विदेशिया की कोई प्रतिबंधित पंक्ति नहीं होती । कुछ कवियों द्वारा विदेशिया की जगह कोई अन्य करुण पद या गीत भी प्रयोग किया जाता है । बिरहा में विदेशिया का प्रयोग करुण स्थान पर ही किया जाता है । विदेशिया का उदाहरण -
अंखिया से झर झर असिया बहाने लगलीं
हाथ जोड़ी करे लगलीं दूनहूं बिनितिया
भगवान खातिर हमहन पे रहम करा
लूटा जनि हमनी क अनमोल इजतिया
काहे बदे करत बाड़ा अइसन सलूकवा हो
हमनी से होई गईल बा कवन ग़लतिया
9. पोहपट (Pohpat)
पोहपट एक गीत की भांति अंतरा सहित पद होता है । पोहपट रचते समय अनुप्रास अलंकार का विशेष ध्यान रखा जाता है । पोपट का उदाहरण -
बोललें समधी, समधी बने जोग ना रहला
बहला ए भाई ...................
हमहन क भी नकिया तू कटवला
बहला ए भाई ...................
अंतरा - इज्जत से बढ़के ना कुछहू बाटे जिंदगानी में
तनिको शर्म होखे त डूब मरा चुल्लू भर पानी में
पैदा कईला बेटी, ढंग से नाही पलला
बहला ए भाई ...................
10. आल्हा (Aalha)
बिरहा का आल्हा, मूल आल्हा से भिन्न होता है और लय भी भिन्न होती है । बिरहा में आल्हा दो तरह से गाया जाता है । दोनों तरह के आल्हा में केवल भैया, बाबू जुड़ने या ना जुड़ने का ही अंतर होता है । आल्हा की पंक्ति निश्चित नहीं । दोनों प्रकार के आल्हा का उदाहरण निम्न है -
1. इश्क क भूत जब सिर से उतरलें भैया
जब याद आवे लागल घर क आराम
होखे पछतावा झूठे इश्क में पड़ली बाबू
दौलत, महल, गाड़ी सब भईल हराम
2. दिनवा के चौथा पहर का समइया
घरवा में केहू नाही उनके सिवाय
मानसिक तनाव जब हद पार कईलस
बाबूजी के पिस्तौल लिहिले उठाय
हथवा के पूरा पिस्तौल पर जमा के
अपने कनपटिया से लिहिले सटाय
आंख बंद कइके ऊ घोड़वा दबवलें
निकलल गोली दिहलस भेजवा उड़ाय
11. खड़ी (Kharee)
पोहपट की तरह ही खड़ी की भी लय निश्चित नहीं है । खड़ी में भी पोहपट की तरह एक या दो अंतरा होता है । वैसे, बिरहा की कहानी आल्हा में ही पूरी हो जाती है और खड़ी द्वारा कहानी का उद्देश्य और संदेश प्रकट किया जाता है, किंतु कुछ कवि बिरहा की कहानी को खड़ी तक खींचकर ले आते हैं । खड़ी का उदाहरण -
वाह रे कलियुग ! माई लिहलस जब अंतिम संसिया
लिहलस बिटिया कुलच्छनी राहत क सँसिया
अंतरा - माई-बाप के करनी क फल बेटा-बेटी
छूटा छोड़ि देहबा त कटिहें नरेटी
सिर पर फेरा हाथ पैर में बाँध के रखा रसिया
लिहलस बिटिया ..................
12. छापा (Chhapa)
बिरहा को समाप्त करने से पूर्व बिरहा कवि उसमें एक छापा जोड़ते हैं । छापा में बिरहा कवि के अखाड़े और उससे संबंधित मुख्य कवियों का नाम होता है । अंतिम की टेरी छापा के साथ ही जुड़ी होती है । जिसकी अंतिम पंक्ति में गायक और रचयिता कवि का नाम जुड़ा होता है । इस प्रकार छापा के साथ ही बिरहा का अंत हो जाता है । एक छापा का उदाहरण -
गुरु बिहारी, रामजतन, मुसई जी राह से गुजरे
रामरति, घरभरन कवि, नारायण राव हैं ठहरे
आगे कुआँ आउर पीछे बा खाई
अश्वनी अव्वल 'प्रखर' सिर पे बीपत आई
आगे कुआँ आउर ...............
बिरहा का मूल्यांकन Birha Ka Mulyankan
बिरहा में उत्तम काव्य या साहित्य का अभी तक अभाव दिखाई देता है । बिरहा के नामकरण संबंधी दोष बिरहा की निरर्थकता का बोध कराते हैं । बिरहा में पंचमेल खिचड़ी भाषा और पद बिरहा की हीनता को सिद्ध करते हैं । साथ ही बिरहा में अखाड़ेबाजी और जातिवाद, बिरहा के संकुचन और बिरहा के रचनाकारों की कूप-मंडूकता को प्रदर्शित करता है । बिरहा के कवियों में कुछ को छोड़कर अधिकतर तो ऐसे हैं कि उन्हें रस, छंद, अलंकार का भी ज्ञान नहीं है, भला उनकी रचनात्मक शैली कैसे साहित्यिक हो ? बिरहा के कवियों में अधिकांश कवि निरक्षर (अनपढ़) हैं । जो कुछ साक्षर हैं वे गवारूंपन के शिकार (पाखंडी) हैं । ऐसे कवि हिंदुओं के काल्पनिक पुराणों को ईश्वरीय मानते हैं । उन्हें यह भी ज्ञान नहीं कि महाकाव्य यथार्थ नहीं होता । बिरहा के कवि महाकाव्य रचे बिना ही अपने को महाकवि कहते या कहलवाते रहते हैं - मात्र पहेलियों (बुझौनी) के दम पर ।
कविवर प्रबुद्ध नारायण बौद्ध जी के अनुसार - " बिरहा एक बरहा है । " जी हाँ, जिस प्रकार बरहा (मोटी रस्सी) लोगों की गर्दन फाँसता है, उसी प्रकार बिरहा ने भी अब तक भोजपुरी जनों को फँसाकर (उलझाकर) रखा है ।
निष्कर्ष (Nishkarsh)
अंततः हम कह सकते हैं कि भोजपुरी लोकगीत की बिरहा विधा में पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है । वर्तमान में बिरहा के क्षेत्र में कुछ शोधार्थी शोध-कार्य भी कर रहे हैं । भविष्य में सार्थक परिणाम प्राप्त होने की संभावना है ।
✍️ देवचन्द्र भारती 'प्रखर', साहित्यकार एवं समालोचक
(भोजपुरी बिरहा के विषय में दी गई इस जानकारी से आप कितने संतुष्ट हैं ? कृपया कमेंट जरूर करें ।)
Thank you for very much
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