प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत गीत, नृत्य, संगीत, नाटक आदि के अतिरिक्त संभाषणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । विद्यालयों में संभाषण की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर संभाषण-संग्रह की पुस्तक 'देशप्रेम' की रचना की गयी है । इस पुस्तक के लेखक प्रख्यात साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' हैं । प्रस्तुत है इस पुस्तक से 7 संभाषण ।
आजादी की कुर्बानी Aajadi Ki Kurbani
गुलाम भारत को आजाद करने में कितनी जिंदगियां कुर्बान हो गई, इसकी कोई गिनती नहीं । कितनों का घर कब्रिस्तान हो गया तो कितनों का घर श्मशान हो गया । कितनों की लाशों को कफ़न नहीं मिला तो कितनों की लाशों का दफन नहीं हुआ । कितनों की लाशों को चील, कौवे नोच कर खा गए तो कितनों की लाशें पड़ी-पड़ी सड़ती-गलती रही । जो आजादी की जंग में तड़प कर मर गए, वे तो अमर हो गए । मगर जो जंग में हाथ-पांव खो कर जिंदा रह गए, उनकी जिंदगी मौत से भी बदतर हो गई ।
मुल्क की खातिर जो जिंदा लाश बन गए,
मरते हुए मुल्क की वे सांस बन गए ।
जीते जी तो कुछ नहीं वे पा सके 'प्रखर',
मगर मरकर भारत का इतिहास बन गए ।।
आजादी की जंग में कितनों की मांग सुनी हो गई तो कितनों की गोद सूनी हो गई । कितने ही बच्चे अनाथ होकर सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर हो गए तो कितनी ही किशोरियों की आबरू खिलवाड़ बन गई । जबकि कितनों ने अपनी आबरू बचाने के लिए अपने को जिंदा जला दिया ।
आबरू की खातिर जल गईं जो आग से,
जिस्म जलाकर बचाई जिस्म दाग से ।
उनकी याद से कितने चिराग जल गए,
'प्रखर' रोशन हो गया भारत चिराग से ।।
आखिर उनकी कुर्बानी बेकार नहीं गई और सारा भारत विदेशी शासकों के खिलाफ बगावत कर बैठा; जिसका परिणाम है आज का भारत यानि कि आजाद भारत ।
मिली है आजादी इसे खोने नहीं देना,
अपनी जमीर को फिर कभी सोने नहीं देना ।
गुलामी का जहर बहुत ही कड़वा होता है 'प्रखर'
भारत को गुलाम फिर होने नहीं देना ।।
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