प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत गीत, नृत्य, संगीत, नाटक आदि के अतिरिक्त संभाषणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । विद्यालयों में संभाषण की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर संभाषण-संग्रह की पुस्तक 'देशप्रेम' की रचना की गयी है । इस पुस्तक के लेखक प्रख्यात साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' हैं । प्रस्तुत है इस पुस्तक से एक संभाषण ।
तिरंगे की मर्यादा Tirange Ki Maryada
जिस समय भारतवर्ष पराधीन था, उस समय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को खुलेआम फहराने का अधिकार नहीं था । तिरंगे की मर्यादा को बनाए रखने के लिए कितने ही वीर शहीद हो गए । जब किसी ने तिरंगे पर थूका, उसका मुंह फोड़ दिए । जब किसी ने तिरंगे को पैरों से रौंदा, उसका पैर तोड़ दिए । यहां तक कि तिरंगे को जमीन पर गिरने से बचाने के लिए कितने ही वीर हंसते-हंसते बारूद में जल गए । गोलियों से सीना छलनी हो गया मगर तिरंगे को झुकने नहीं दिए ।
तिरंगा है निशान वीरों के जुनून का
जिनको नसीब हो सका न पल सुकून का
इस तिरंगे के रंगों पर अमल करो प्रखर
तिरंगे में सबसे ऊपर है रंगून का
जिस तिरंगे की मर्यादा के लिए भारत के सपूत शौक से अपने बदन की बोटी - बोटी विलायती कुत्तों से निकालिए । वही तिरंगा आज बाजारों में एक रुपए की कीमत पर बिक रहा है । छोटे-छोटे बच्चे 15 अगस्त, 26 जनवरी पर तिरंगा खरीदते हैं और उसकी प्लास्टिक की डण्डी पकड़कर झुमाते हुए, घुमाते हुए, मोड़ते हुए, मरोड़ते हुए विद्यालय जाते हैं, राष्ट्रीय पर्व मनाते हैं । लौटते समय तिरंगे से खेलते हुए फाड़ कर सड़क पर फेंक देते हैं । सड़क पर पड़ा हुआ तिरंगा कितने मनुष्य, कितने पशुओं, कितने पक्षियों, कितने कीड़ों के पांव से रौंदा जाता है, इस पर कोई अमल नहीं करता । यही नहीं, तिरंगे की टोपी बिक रही है, तिरंगे का स्टीकर बिक रहा है, तिरंगे का गुब्बारा बिक रहा है, तिरंगे का बिल्ला बिक रहा है और तिरंगे का बनियान भी बिक रहा है ।
शुक्र है कि तिरंगे का जूता नहीं बिक रहा है, नहीं तो, देशभक्ति का झूठा दिखावा करने वाले नकलची भारतवासी सरेआम तिरंगे को पैरों तले रौंदते नजर आते ।
अगर कोई चीज है खुदा के नाम की
तो उससे बस यही है हमारी इल्तिजा ।
भारत वासियों को सही रास्ता दिखाएं
'प्रखर' इन्हें सही रास्ता नहीं पता ।।
8. असफलता और आत्महत्या
यह जीवन एक सिक्के की तरह है जिस तरह सिक्के के दो पक्ष होते हैं और एक दूसरे को एक साथ नहीं देखा जा सकता, उसी तरह जीवन के दो पक्ष होते हैं । कभी दुख तो कभी सुख । कभी सफलता तो कभी असफलता; जीवन में मिलते रहते हैं । जिस प्रकार हम सुख को प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण करते हैं । उसी प्रकार हमें दुख को भी स्वीकार करना चाहिए । समयचक्र परिवर्तनशील है परिस्थितियों से हारना कायरों का काम है और कायरों के लिए जीवन हराम है । हमें अपने हृदय में कायरता को शरण नहीं देनी चाहिए । कायरता आशा और विश्वास की दुश्मन है तथा निराशा और संदेह जीवन के शत्रु हैं ।
जीता है हर आदमी उम्मीद के दम से,
मर जाता है आदमी बेकार वहम से ।
जीना मरना तो अपने ही हाथ है 'प्रखर',
जिंदगी और मौत हैं दुनिया के कदम से ।।
कुछ छात्र परीक्षा में असफल हो जाने पर आत्महत्या कर लेते हैं । ऐसे छात्रों को महमूद गजनवी से सीखना चाहिए जो 17 बार युद्ध में हारने पर भी हार नहीं माना था । खैर यह तो एक ऐतिहासिक उदाहरण है । हम अपने आसपास के एक छोटे से प्राणी अर्थात् चींटी पर ध्यान दें, तो पता चलेगा कि हम उन चीटियों की अपेक्षा क्या है ? हम आकार और बल के मायने में चीटियों को समझते हैं और वे इस मायने में तुच्छ हैं भी; किंतु जब श्रम और साहस की बात आती है, तो चीटियों के आगे हम चींटी हो जाते हैं ।
करता है बेकार ही गुमान ये इंसान,
काम करने में नहीं चींटी के भी समान ।
मेहनत करना सीख लो 'प्रखर' चींटी से,
पत्थर की लकीर जैसे हैं जिसके अरमान ।।
किसी कार्य या परीक्षा में असफल होने पर किसी व्यक्ति या छात्र के द्वारा आत्महत्या किए जाने का कारण मानसिक तनाव होता है । यह मानसिक तनाव उसका स्वयं की हीनता का अनुभव करना या पारिवारिक कलह होता है । कभी-कभी माता - पिता द्वारा बच्चों को बार - बार फटकारना भी ऐसी घटनाओं का कारण बन जाता है । अतः इन बातों पर हम सभी को ध्यान देना चाहिए ।
9. राष्ट्रभाषा की गरिमा
हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है । संविधान के अनुसार हमें अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान करना चाहिए । हम भले ही अन्य भाषाओं का ज्ञान अर्जन करें, किंतु दैनिक जीवन में अपनी राष्ट्रभाषा का प्रयोग करें, ताकि जीवंत रह सके । आज पूरा भारत हिंदी को पीछे छोड़कर, अंग्रेजी के पीछे पड़ा है । इससे अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं, अपमान होता है । भारत वासियों द्वारा अंग्रेजी को हिंदी से अधिक महत्व देना यह प्रमाणित करता है कि इन्हें राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम नहीं, अर्थात् इनमें देशप्रेम की भावना नहीं ।
हिंद की जनता हिंदी का तिरस्कार कर रही,
अंग्रेजों की भाषा का सत्कार कर रही ।
जनता तो एक भेड़ है इसको छोड़ो 'प्रखर'
यह हरकत तो भारत की सरकार कर रही ।।
सच तो यह है कि अंग्रेजी भाषा हिंदी से श्रेष्ठ तो दूर, हिंदी की बराबरी के भी योग्य नहीं है । हिंदी एक पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है जबकि अंग्रेजी एक और अवैज्ञानिक भाषा है । अंग्रेजी के स्वर और व्यंजन का कोई एक उच्चारण निश्चित नहीं, जबकि हिंदी के प्रत्येक स्वर और व्यंजन का उच्चारण निश्चित है । उदाहरण स्वरुप हिंदी में 'आ' की मात्रा से केवल 'आ' ही होता है 'ए' या 'ऐ' नहीं, जबकि अंग्रेजी में 'जी-ए-टी-ई' 'गेट' होता है और 'सी-ए-टी' 'कैट' होता है । जिन लोगों को भाषाशास्त्र का ज्ञान नहीं, वे प्रश्न करते हैं कि यदि अंग्रेजी भाषा सर्वश्रेष्ठ नहीं तो अंतर्राष्ट्रीय कैसे हो गई ? इसका उत्तर यही है कि अंग्रेज शासकों का पूरे विश्व पर साम्राज्य रहा है, जिसके कारण इनकी भाषा अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार भी पूरे विश्व में है । क्षेत्र विस्तार के कारण ही अंग्रेजी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का पद दिया गया है ।
हिंदी सच्ची है और अच्छी भी अंदर से,
दुनिया में इसका असर है बाहर से कम सही ।
अंग्रेजी का असर भले ही दुनिया भर में है पर
सच यही है कि अंग्रेजी अंदर से कुछ नहीं ।।
हमारा कहना यह नहीं है कि भारतवासी अंग्रेजी का अध्ययन करना छोड़ दें । बल्कि यह कहना है कि हम अपने वार्तालाप में हिंदी का अधिकांश प्रयोग करें, जिससे आगामी पीढ़ी भी हिंदी सदा परिचित रहे । इस समय राष्ट्रभाषा को जीवित रखने के लिए अनेकों सरकारी कर्मचारी, समाजसेवी और साहित्यकार प्रयत्नशील हैं । समय-समय पर 'राजभाषा' पत्रिका का भी संपादन होता रहता है । अतः सभी भारतीयों से निवेदन है कि वे भी सहयोग प्रदान करें ।
10. भारत में जनसंख्या वृद्धि
इस विकासशील देश भारत में जनसंख्या वृद्धि एक प्रमुख समस्या है । बढ़ती हुई जनसंख्या के अनेक दुष्परिणाम सामने हैं । आज देश में जनसंख्या इतनी बढ़ गई है कि देश की फसलों, फलों और सब्जियों के उत्पादन से लोगों की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पा रही है । अनाजों की कमी के कारण महंगाई बढ़ रही है । हर खाने वाली चीज महंगी होती जा रही है । बाजारों में अनेक मौसमी फल दुकानों पर सजे होते हैं, किंतु खरीदारों की भीड़ नहीं दिखाई देती । अमीर लोग तो किस्म - किस्म के फलों का जायका ले लेते हैं, परंतु गरीबों को बस फलों के दर्शन से संतोष करना पड़ता है । जनसंख्या वृद्धि के कारण नगरों - महानगरों में जाम की समस्याएं बढ़ रही हैं । सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है । गांव में जमीन के बंटवारे को लेकर भाई-भाई में जानलेवा युद्ध हो रहा है ।
तड़प रही देखो मानवता 'प्रखर' बढ़ी आबादी से ।
कौन बचाएगा भारत को अब ऐसी बर्बादी से ।
किसी भी समस्या का निवारण तभी हो सकता है, जब उसका कारण मालूम हो । जनसंख्या वृद्धि के कई कारण हैं कुछ लोग अशिक्षा को इसका मूल कारण मानते हैं जबकि जनसंख्या वृद्धि में शिक्षित लोगों ने भी भरपूर योगदान दिया है पहले नसबंदी की व्यवस्था नहीं होने के कारण जनसंख्या में वृद्धि होती रही, परंतु अब नसबंदी की व्यवस्था होने पर भी अधिकतर लोग महिलाओं की नसबंदी नहीं करा रहे हैं । धार्मिक अंधविश्वास के कारण मुस्लिम महिलाओं की नसबंदी नहीं कराई जाती और हिंदू लोग संतान को 'ईश्वर की देन' समझते हैं । कुछ देहाती लोग अपनी पारिवारिक ताकत बढ़ाने में ऐसी गलती कर बैठते हैं । कुछ लोग लड़कियां होने पर लड़के का इंतजार करने और कुछ लोग लड़के होने पर लड़की का इंतजार करने में भी अधिक संतानें पैदा करके देश की दुर्गति करने में हाथ बंटा रहे हैं ।
'प्रखर' लोग मनमाना ही कर्म कर रहे ।
धर्म के चक्कर में ही अधर्म कर रहे ।।
जनसंख्या वृद्धि के आधारभूत कारणों पर ध्यान न देकर भारत सरकार "छोटा परिवार सुखी परिवार" एवं "बीबी रखो टिप टॉप, दो के बाद फुलस्टॉप" के नारों से खानापूर्ति कर रही है । जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए लोगों की मानसिकता बदलनी होगी तथा मानसिकता बदलने के लिए धर्मों का परिष्कार करना होगा ।