दलित जागरण (कविता संग्रह)

समर्पण - दलित समाज को समता और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करने वाले, आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब डॉ० भीमराव अंबेडकर जी को समर्पित ।


अभिमत - दोहा, चौपाई तथा छोटी-छोटी तुकबंदियों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि यदि थोड़ा सा भी ध्यान देकर सुना या पढ़ा जाए, तो ये क्षण-मात्र में बड़ी सरलता से कंठस्थ हो जाते हैं । मनोरंजक खेल अंत्याक्षरी में तो ये बड़े काम के होते हैं । साहित्य की यह विधा यत्र - तत्र बिखरी पड़ी है । प्राचीन काल, मध्यकाल, आधुनिक काल के कवियों और महापुरुषों की रचनाएँ, इस विधा में समाज को मिलती रही हैं । इसका अभाव वर्तमान में दिख रहा है । संत समाज में यह विधा वाणी के रूप में है और अध्यात्म जगत के लिए यह अमृत रस है । सामान्य जीवन में क्षण - प्रतिक्षण उद्घाटित होने वाले शब्द क्षणगेयता की छोटी-छोटी पंक्तियों में बंधकर रचना का रूप धारण कर लेते हैं ।

देवचंद्र भारती 'प्रखर' ने संसाधन विहीन ग्रामीण परिवेश में रहते हुए जो अनुभूति की, उसे ही कलमबद्ध भी किया । स्थानीय बोली में शब्दों का प्रयोग बड़ी ही पटुता के साथ किया है, जिसका पुट इनके दोहों और छंदों में स्पष्ट परिलक्षित है । सरस प्रवाह के साथ छंदबद्ध हुए विचार मोतियों के समान हैं, जिनको कवि ने संकलित करके अपनी मनका में पिरो डाला है ।

मैं ईमानदारी से कह सकता हूँ कि आने वाले दिनों में 'प्रखर' जी के रचित 'बोधि पुष्प' के पद लोगों की स्मृतियों में कंठस्थ होंगे । ✍️ दिनेशचंद्र, सेवानिवृत्त वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी, पूर्व मध्य रेल, यूरोपियन कॉलोनी, मुग़लसराय, चंदौली

पुस्तक समीक्षा 📘

देवचंद्र भारती 'प्रखर' के कविता संग्रह 'दलित जागरण' में दलित जीवन स्थितियों के विभिन्न पहलुओं का अंकन है । उनकी कविताओं में दलित समाज की पीड़ा, दुर्दशा और त्रासदी का यथार्थ चित्रण है । उनकी कविताओं के प्रेरणास्रोत बुद्ध, कबीर, रैदास, फूले और अंबेडकर हैं । मानवता उनकी कविताओं का स्थाई भाव है । दलित समाज की अशिक्षा, असंगठन और स्वार्थपरता के प्रति वे सबसे अधिक चिंतित हैं । दलित विमर्श की अवधारणा के महत्वपूर्ण बिंदु भी हैं । इसके साथ-साथ मानव जीवन में बिखराव और संवेदनहीनता को भी 'प्रखर' ने सजगता के साथ अपनी कविताओं में उकेरा है । धर्म के प्रति उनकी चिंता अधिक है । इसके लिए वे डॉ० अंबेडकर के रास्ते पर चलना उचित समझते हैं । अपनी कविताओं के माध्यम से वे बौद्ध धर्म को अपनाने के लिए दलित समाज को प्रेरित करते हैं । उनका मानना है कि दलित समाज का वास्तविक संघर्ष हिंदू धर्म, वर्ण-व्यवस्था और जातिवाद से है । इसी के आस-पास ले जाकर उनकी कविताएँ दलित समाज की जीवन स्थितियों के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती हैं ।

'बोधि-पुष्प' कविता में कवि ने इस तरफ ध्यान आकर्षित किया है कि यदि डॉ० अंबेडकर संघर्ष नहीं करते तो दलितों को शिक्षा, राजनीति और जीवन सुरक्षा का अधिकार नहीं मिल पाता । इसके लिए कवि डॉ० अंबेडकर के साथ-साथ ज्योतिबा फूले को बराबर का श्रेय देता है -

बाबा साहब की 'प्रखर', महिमा बहुत महान ।
चाहे जितना भी करें, कम होगा गुणगान ।।

ज्योति जलाये ज्योतिबा, दिखी सभी को राह ।
शिक्षा का दर्शन हुआ, 'प्रखर' मिट गई स्याह ।।

'हम विद्रोही नहीं' कविता में छद्म देशभक्ति और राष्ट्रवाद का दिखावा करने वालों को कवि यह बताता है कि दलित सच्चा  राष्ट्रभक्त है । उसका कर्म और श्रम देश को सँवारता है । वह निरंतर देश की सेवा करता है । फिर भी बार-बार उसके देशभक्त होने पर सवाल उठाया जाता है । कभी कहता है कि दलित, समाज की बुराइयों पर सवाल खड़ा करता है, इसलिए उसके ऊपर विद्रोही होने का तमगा लगा दिया जाता है । "जब तक होगा भेद/क्रांति हम सदा करेंगे/देशद्रोह की मुहर/लगे तो नहीं डरेंगे" - इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि कोई कुछ भी कहता रहे, लेकिन दलित अपने लक्ष्य से डिगने वाला नहीं है ।

'सुनो और गुनों' कविता में कवि ब्राह्मणों की शोषणवादी दृष्टि को उजागर करता है । वह कहता है कि ब्राह्मण भक्ति के नाम पर केवल भावुक बात करता है, सबको भरमाता है, अंधविश्वास फैलाता है, देश का माहौल खराब करता है, बिना श्रम किये दूसरे के श्रम पर भोग करता है और सच्चाई से सबको दूर रखता है । वह ये सब करने में सफल है क्योंकि दलित समाज उसके छल को पूरी तरह से समझ नहीं पाया है और भ्रम में फँसा हुआ है -

ब्राह्मण केवल नाम है, काम नहीं अनुकूल ।
ये बहुजन की देह पर, चुभते बनकर शूल ।।

'ब्राह्मण मित्र' कविता में कवि मित्र बन जाने के बाद ब्राह्मण के आचरण को बताता है । मित्रता में जाति, धर्म आदि के दायरे टूट जाते हैं, लेकिन कुछ के लिए पहले जाति होती है और बाद में बाकी संबंध । ऐसे व्यक्ति के साथ मित्रता ऊँच-नीच के सारे दायरे के बीच होती है । ब्राह्मण मित्र अपने घर आए हुए व्यक्ति की जाति के अनुसार आचरण करता है । कवि का मानना है कि दलित जब मित्र बनाता है, तो वह मानवता और समानता का व्यवहार करता है । लेकिन ब्राह्मण अपने दलित मित्र के साथ भेदपूर्ण व्यवहार करता है -

तुम मेरे घर आते, अतिथि समान ।
थाली में करवाता, मैं जलपान ।।

तुम्हारे घर जाता, मैं जिस रोज ।
पत्तल पर मिलता है, ब्राह्मण भोज ।।


'कौन चमार ?' कविता में कवि कहता है कि दलित ने चमड़े का काम छोड़ दिया है । उसने जीविका के लिए अपनाये गये नाच-गाने का पेशा भी छोड़ दिया है । इन्हीं कामों की वजह से वह समाज में उपेक्षित समझा जाता था । अब इन कामों को ब्राह्मणों ने अपना लिया है । इसके बाद भी ब्राह्मण अपने आपको श्रेष्ठ कहता है और दलित को चमार कहता है । कवि का मानना है कि काम की वजह से कोई पवित्र और अपवित्र नहीं होता । ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए यह ढोंग रचा है -

हमें कहोगे क्या तुम, नीच चमार ।
नीचों जैसा करते, खुद व्यवहार ।।

तुम्हारा बेटा है, गायक भाँड़ ।
वेश्या के संग नाचे, कमीज फाड़ ।।

बेटी देह दिखाती, कमर मरोड़ ।
उछल-उछलकर नाचे, लिहाज छोड़ ।।

'दलित युवाओं से' कविता में कवि ब्राह्मणवाद और सामंतवाद को पहचानने तथा उसके खिलाफ उठ खड़ा होने के लिए आह्वान करता है -

अब देर करो ना, दलित युवाओं, समय नहीं है, तुम जागो ।
आडंबर का यह, समय नहीं है, इनके पीछे, मत भागो ।
आँखें खोलो तुम, आगे आओ, सच को देखो, पहचानो ।
जिन बातों से तुम, हीन बने हो, उन बातों को, मत मानो ।

अंततः हम कह सकते हैं कि कवि अपने समाज के अतीत और वर्तमान से बखूबी परिचित है । वह दलित समाज के साथ चल रहे छल से मर्माहत है । वह शोषण के एक-एक रेशे को अपनी कविताओं में धीरे-धीरे खोलता है और दलित समाज को सचेत करता है । कविताओं को पढ़ने के बाद यह बात स्पष्ट है कि उसके अंदर सच का सामना करने और सच कहने का अदम्य साहस है । वह अपनी सरल और सहज भाषा के माध्यम से दलित समाज की संवेदनाओं को अंकित करने में सफल है । कवि का दृष्टिकोण पूर्णतः डॉ० अंबेडकर के समाज दर्शन पर आधारित है । धर्म के क्षेत्र में उसका स्पष्ट झुकाव बौद्ध धर्म के प्रति है । वह समाज से जातिवाद, भेदभाव और छुआछूत खत्म करने की दिशा में कटिबद्ध है । इसके लिए उसे डॉ० अंबेडकर का मानवतावादी दृष्टिकोण सबसे अधिक सार्थक लगता है । उसकी कविता में दलित समाज के श्रम का सौंदर्य व्याप्त है । कवि ने रोला, कुंडलिया, बरवै, दोहा, हरिगीतिका आदि छंदों के माध्यम से दलित संवेदना को अभिव्यक्त किया है ।

✍️ डॉ० विपिन कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी

दलित जागरण (काव्य संग्रह)
ISBN : 9788194364993
प्रकाशन वर्ष : 2020

📚 मुद्रित पुस्तक मँगाने के लिए संपर्क करें  :-
प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, लखनऊ
📲 8756219902
                
दस वर्षों के अनुभव की अभिव्यक्ति है - "दलित जागरण" : देवचंद्र भारती 'प्रखर' 

कविता संग्रह की यह "दलित जागरण" नामक पुस्तक मेरे दस वर्षों के अनुभव की अभिव्यक्ति है । इस पुस्तक में हिंदी के लोकप्रिय मात्रिक और वार्णिक बीस छंदों, दोहा, चौपाई, रोला, कुंडलिया, बरवै, गीतिका, हरिगीतिका, आल्हा, त्रिभंगी, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, भुजंगप्रयात, सुन्दरी, वंशस्थ, वसन्ततिलका, मालिनी, मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, सवैया, घनाक्षरी आदि में रचित बौद्धिक, तार्किक और वैचारिक कविताएँ संग्रहीत हैं । इस पुस्तक की रचना-प्रक्रिया तीन अवस्थाओं से होकर गुजरी है । पहली अवस्था में इस संग्रह की सभी कविताएँ हिंदी साहित्य की मुख्यधारा से प्रभावित थीं । दूसरी अवस्था में इस संग्रह की अत्यधिक कविताओं पर बौद्ध धम्म और अंबेडकरवादी विचारधारा का प्रभाव पड़ा । तीसरी अवस्था में, इस संग्रह की कविताओं में दलित साहित्य के प्रमुख गुणों आक्रोश, प्रतिरोध और नकार आदि का समावेश हुआ । समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की भावना तो इस संग्रह के तीनों अवस्थाओं की कविताओं से संंबंधित है ।...पूरी भूमिका पुस्तक में पढ़ें । 

📘 'दलित जागरण' में संग्रहीत रोला छंद में रचित लोकप्रिय कविताएँ -
 
☸ कैसी आजादी  ?  
☸ चातक की तड़प  
☸ भारत के बहुजन  
☸ आंबेडकर के लाल 
☸ मैं भारत का भारती 
☸ अंधेरे की याद 
☸ सच्चा प्रेम 
☸ बाँझिन की ललकार 
☸ कांशीराम जयंती 
☸ छूआछूत का दिखावा 
☸ ब्राह्मणी और दलित का प्रेम 
☸ दलित शिक्षक 
☸ सवर्णों का साथ मिला 
☸ दलितों की अकड़ 
☸ राजनीति में दलित 
☸ हम विद्रोही नहीं 
☸ बौद्ध बनूँ या रविदासी 
☸ गौ माता के पुत्र 
☸ शिक्षित करो 
☸ बीस मार्च

1 टिप्पणियाँ

  1. *दलित जागरण* मुद्रित हो चुकी है । इच्छुक पाठक, रश्मि प्रकाशन लखनऊ से संपर्क करें : 8756219902

    _इस पुस्तक की पहली विशेषता यह है कि इसमें हिंदी के 20 लोकप्रिय छंदों में रचित कविताएँ संग्रहीत हैं । दूसरी विशेषता यह है कि इसमें संग्रहीत सभी कविताएँ शुद्ध अंबेडकरवादी और बुद्ध देशना से परिपूर्ण हैं ।_

    > दलित जागरण (कविता संग्रह) | https://dhammasahitya.blogspot.com/2017/12/blog-post_13.html

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    1. वेदना की शांति [ प्रगीत संग्रह ] | https://dhammasahitya.blogspot.com/2017/12/blog-post_39.html

    2. लज़्ज़त-ए-अलम (ग़ज़ल संग्रह) | https://dhammasahitya.blogspot.com/2019/11/blog-post.html

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