देशप्रेम

प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत गीत, नृत्य, संगीत, नाटक आदि के अतिरिक्त संभाषणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । विद्यालयों में संभाषण की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर संभाषण-संग्रह की पुस्तक 'देशप्रेम' की रचना की गयी है । इस पुस्तक के लेखक प्रख्यात साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' हैं । प्रस्तुत है इस पुस्तक से एक संभाषण ।

देशप्रेम Deshprem

'देशप्रेम' शब्द हम लोगों के लिए अनजान नहीं है । हम सदैव अपने गुरुजनों से, मित्रों से अथवा सगे - संबंधियों से देशप्रेम शब्द को सुनते हैं और देशप्रेम के विषय में कविताएं-कहानियां भी सुनते हैं । किंतु देशप्रेम से भरी कविताएं और कहानियां हमारे मन में अनेक प्रश्न छोड़ जाते हैं । माता-पिता से प्रेम, भाई-बहन से प्रेम, मित्रों-रिश्तेदारों से प्रेम तो ठीक है, पर यह देश से प्रेम क्या है ? देश कोई आदमी या औरत नहीं । सुनते हैं, यह बहुत बड़ा है । इसमें अनेक प्रदेश हैं । अनेक नदियां, पहाड़ और जंगल हैं । इसे हम केवल नक्शे में देखे हैं । हमें समझ में नहीं आता, हम इसे कैसे प्रेम करें ? हमारे गुरुजन बताते हैं कि देश से प्रेम करने का मतलब, देश के लोगों, नदियों, पहाड़ों, जंगलों आदि सभी से प्रेम करना । लेकिन जब देश के लोग हमसे प्रेम ना करें, तो हम देश के लोगों से कैसे प्रेम करें ?

हम उनसे क्यों इजहार करें ?
हम उनसे क्यों इकरार करें ?
वे हमसे मिलते नहीं 'प्रखर',
तो हम उनसे क्यों प्यार करें ?

इस पर हमारे गुरुजन बताते हैं कि जब हम दूसरे को प्रेम करेंगे तभी दूसरा हमें प्रेम करेगा । जब हम दूसरे से प्यार से बोलेंगे तभी दूसरा हमसे प्यार से बोलेगा । किंतु कभी ऐसा भी होता है कि प्रेम के बदले प्रेम नहीं मिलता । तब हमारे गुरुजन बताते हैं कि इस संसार में सभी लोग एक जैसे नहीं हैं । हमें औरों के खट्टे व्यवहार से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए ।

अतः हम शपथ लेते हैं कि अपने गुरुजनों की आज्ञा का पालन करेंगे और अपने कर्तव्य से कभी भी किसी भी हाल में विचलित नहीं होंगे ।

देश की खातिर हमेशा काम करेंगे,
अपने देश का दुनिया में नाम करेंगे ।
आज से हम अपने आजाद भारत का, 
अपने आप को 'प्रखर' गुलाम करेंगे ।।

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