ज़ुनून (देशभक्ति मुक्तक)

'ज़ुनून' देशभक्ति मुक्तक (शायरी) की पुस्तक है, जिसका प्रकाशन सन् 2013 ई० में हुआ था । इस पुस्तक में 100 देशभक्ति मुक्तक संग्रहीत हैं । उस समय यह कृति प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक के विद्यार्थियों के बीच बहुत ही लोकप्रिय रही । आज भी 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) और 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) आदि राष्ट्रीय पर्वों पर विद्यार्थियों द्वारा 'जुनून' के मुक्तक अवश्य बोले जाते हैं ।

'ज़ुनून' देशभक्ति मुक्तक (शायरी) की पुस्तक से अवलोकनार्थ कुछ मुक्तक प्रस्तुत हैं । 

(1)

फूल खिलते हमेशा चमन के लिए
चाँद - सूरज हैं उगते गगन के लिए ।
उसकी ही ज़िन्दगी ज़िन्दगी होती है,
जो मर जाए अपने वतन के लिए ।।

(2)

शहीदों की मजारों पर रोने से क्या होगा  ? 
आंसू बहा कर खून को धोने से क्या होगा  ?
ऐ देशप्रेमियों  ! उतर मैदान में आओ, 
यूँ ही घरों में चैन से सोने से क्या होगा  ?                         
(3) 

सरहद पर आतंक के सरदार नहीं होते,
यतीमों के चीख और चित्कार नहीं होते ।
मरते ना बेमौत इस मिट्टी के नौजवान,
अगर अपने देश में गद्दार नहीं होते ।। 

(4)

जय भारत का नारा लगाने से क्या होगा  ?
देश पर मरने की कसमें खाने से क्या होगा  ?
अगर देश के बहुजन ही यूँ त्रस्त रहेंगे ,
तो इस तरह झंडा फहराने से क्या होगा  ?

(5)

सच्चे देशप्रेमी की पहचान करना सीखो, 
देश के लिए भी कुछ कुर्बान करना सीखो ।
ज्यादा कुछ नहीं तो मेरे देशवासियों !
देश के सिपाही का सम्मान करना सीखो ।।

(6)

देशभक्ति की बातें सिर्फ करते नहीं जुनून में ।
देशभक्ति का जज्बा यारों ! है हमारे खून में ।।

(7)

मर-मर के जीना सीखा है हमने हर हालात में ।
इसीलिए तो कभी-कभी बह जाते हैं जज्बात में ।।

(8)

प्यार मिले तो प्यार से झुकने में है हमको शर्म नहीं । 
गद्दारों के आगे झुकने वाले हम बेशर्म नहीं ।।

(9)

भारत से पहचान हमारी भारत की पहचान हैं हम ।
अपनी शान को कैसे जाने दें भारत की शान हैं हम ।।

(10)

माना कि अमीरों सी दौलत अपने करीब नहीं । 
मगर देश को कुछ ना दे पाएं इतने गरीब नहीं ।।

(11)

सर्विस करने वालों 'सर्व' का अर्थ है 'सेवा'
मगर तुम बैठ करके कुर्सी पर आराम करते हो ।
अगर तुम अपने पद की गरिमा को बचा नहीं सकते 
तो पद पाने के लिए क्यों नींद हराम करते हो ।।

(12)

देश नेता से नहीं ना नेता देश से 
बेटा बाप से नहीं ना बेटा बाप से ।
दूसरे का दोष देना गलत बात है 
कोई परेशान है तो अपने आप से ।।

(13)

दूर रहके भी धरती से प्रेम निभाए जो
प्रेमियों में बादल एक ऐसा प्रेमी है ।
हम देश की सरहद पे नहीं तो क्या हुआ
दोस्तों ! हम भी तो सच्चे देशप्रेमी हैं ।।

(14)

सच्चा यार चाहे उसका यार ठीक हो, 
घर का मुखिया चाहे कि परिवार ठीक हो । 
जो भी सच्चा देशप्रेमी होता साथियों,
वह तो यही चाहे कि सरकार ठीक हो ।।

(15)

यह देश है कोई धर्म की दुकान नहीं है,
यहां केवल एक ही धर्म के इंसान नहीं है ।
इस देश को गलती से हिंदुस्तान कहने वालों,
यह भारत है मगर यह हिंदुस्तान नहीं है ।।

(16)

सरहद के जवानों की जवानी को सलाम, 
उनकी देशभक्ति वाली बानी को सलाम ।
देश की खातिर जो खुद को कुर्बान किया करते हैं, 
उन  सब पहरेदारों की कुर्बानी को सलाम ।।

(17)

कैसे हम कहें कि अपना दुश्मन पाकिस्तान है, 
उसे खबर  देने वाला भारत का ही बेईमान है । 
अगर यहां का भेद वहां तक ना कोई पहुंचाए तो, 
उसे पता कैसे होगा कि कितने यहां जवान हैं ।।

(18)

ऐ ! भारत के सत्ताधारी कैसे तुम्हें सरकार कहें,
पाले हुए तुम्हारे सैनिक बेचारे लाचार रहे । 
तुम दे देते हो आदेश और ये तुम्हारे  सैनिक, 
आतंकवादियों से ज्यादा नक्सलियों को ही मार रहे ।।

(19)

कौन नक्सली बनते हैं यह कैसे तुम जानोगे  ?
उनकी क्या है मजबूरी तुम कैसे पहचानोगे  ?
दर्द गरीबी का क्या होता है, ऐ पैसे वालों ! 
अगर बता भी देंगे हम तो तुम कैसे मानोगे  ?

(20)

जिन्हें नक्सली कहते हो वह देश के मूल निवासी हैं, 
जंगल में है घर जिनका जो नाम से ही आदिवासी हैं ।
एक तो उनको बेघर करके उनका हृदय जलाते हो, 
और फिर यह भी कहते कि वे देशद्रोही और बागी हैं ।।

(21)

कैसे भूल सकते हम शहीदों की कहानी,
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव की निशानी । 
फांसी पर जो झूल कर खुद अमर हो गए,
जाते - जाते दे गए भारत को जिंदगानी ।।

(22)

भले ही करोड़ों शहीद हो जाते,
भारत कभी भी आजाद नहीं होता । 
अगर बाबा साहेब ना होते तो यारों,
यह देश अपना आबाद नहीं होता ।।

(23)

माला जपना है तो जपो अंबेडकर के नाम की, 
माला कभी न जपना यारों कृष्ण और राम की ।
भारत जब गुलाम था तो आज़ादी की जंग हुई 
संविधान के बिना थी आजादी किस काम की ।।

(24)

संविधान प्रारूप समिति में सात लोग थे नाम के,
उनमें से छः लोग तो सच में नहीं थे किसी काम के ।
एक अकेले अंबेडकर ने संविधान को रच डाला, 
शेष लोग तो रहे बहाने ढूंढते आराम के ।।

(25)

अगर अंबेडकर जैसा विद्वान नहीं होता,
तो भारत में लिखित संविधान नहीं होता । 
हर साल मनाते ना गणतंत्र दिवस हम, 
तिरंगे का भी नामोनिशान नहीं होता ।।

(26)

कभी फुर्सत में होकर देश का इतिहास तो पढ़ लो,
किया है किसने भारत देश का विनाश तो पढ़ लो । 
जिसे तुम पूजते हो जिसको राष्ट्रपिता कहते हो, 
उसने कितना किया देश का विकास तो पढ़ लो ।।

(27)

जिन्हें इस देश के 85 प्रतिशत की नहीं चिंता, 
जिन्हें इस देश के ही बहुजनों से प्यार नहीं है ।
जो केवल 15 प्रतिशत का ही भला सोचते हैं, 
हम कैसे ना कहें कि वे गद्दार नहीं है ।।

(28)

आरक्षण बचाने की रैली कोई कराता,
आरक्षण मिटाने का नारा कोई लगाता ।
आरक्षण से किसको लाभ किस को हानि है, 
इसे आम आदमी समझ ही नहीं पाता ।।

(29)

जिन्हें नौकरी चाहिए वे आरक्षण की बात करें, 
जिनको मजदूरी करना है वे क्यों आत्मसात करें ।
यह भी बात सही है यारों ! सोचो, समझो, मानो,
जो अनपढ़ हैं वे क्यों इसके लिए दिन-रात करें ।।

(30)

बहुजनों को उनका अधिकार मिलना चाहिए, 
भेदभाव के बिना सत्कार मिलना चाहिए ।
आरक्षण मिले ना मिले कोई गम नहीं, 
मगर उन्हें समता का व्यवहार मिलना चाहिए ।।

(31)

अंग्रेज भारत से चले गए अंग्रेजी दे गए ।
देशी लोगों को संस्कार विदेशी दे गए ।।

(32)

हिंदुओं को उतना खतरा नहीं था मुसलमानों से ।
जितना खतरा था उन्हें अंग्रेजी मेहमानों से ।।

(33)

अंग्रेज बुरे थे सवर्ण के लिए बहुजन के लिए नहीं ।छुआछूत तो सवर्ण किये थे अंग्रेज किये नहीं ।।

(34)

चोरी, हत्या, बलात्कार होते रहते तमाम हैं ।
सच तो यह है कि भारत अब भी गुलाम है ।।

(35)

जब तक इस देश से मिटेगा जातिवाद नहीं ।
तब तक यह देश कहलाएगा अाजाद नहीं ।।

(36)

शिक्षा परिषद और शिक्षा समिति बदलनी होगी, 
शिक्षा लेने और देने की नीति बदलनी होगी । 
देश की वर्तमान शिक्षा का हाल बुरा है 'प्रखर',
बहुत जरूरी है अब शिक्षा नीति बदलनी होगी ।।

(37)

डिग्री ले लेना शिक्षा का अर्थ नहीं है, 
प्रथम श्रेणी ही शिक्षा की शर्त नहीं है ।
ज्ञान बिना सारी शिक्षा व्यर्थ  है 'प्रखर',
शिक्षा बिना ज्ञान होना व्यर्थ नहीं है ।।

(38)

शिक्षक और शिक्षार्थी का व्यवहार ऐसा हो,
उनके बीच संबंध एक परिवार जैसा हो ।
ना ही रंग-रूप ना ही जाति का हो भेद,
उनका प्यार सगे रिश्तेदार जैसा हो ।।

(39)

सबसे पहले बड़ों का लिहाज करना सीखो, 
जितनी हो जरूरी उतनी लाज करना सीखो ।
संस्कार जो बिगड़ गया तो सुधारना मुश्किल है,  
'प्रखर' संस्कार का पालन आज करना सीखो ।।

(40)

शिक्षक दिवस मनाना बड़ी बात होती है,
शिक्षा ही इस दिन की सौगात होती है ।
अंबेडकर ने कहा, शिक्षा शेरनी का दूध है,
शिक्षा बिना अधूरी औकात होती है ।।




(41)

सवाल यह है कि कैसा समाज होना चाहिए, 
जैसा कल था वैसा नहीं आज होना चाहिए ।
ऊंच-नीच और भेदभाव को पैदा किया जिन्होंने,
'प्रखर' उनके सिर पर नहीं ताज होना चाहिए ।।

(42)

भारत का इतिहास पढ़ कर मन हुआ निराश है,
युद्ध और अशांति ही इस देश का इतिहास है ।
'प्रखर' तब तक भारत का इतिहास नहीं बदलेगा, 
जब तक सत्ता के अधिकार मनुवादियों के पास हैं ।।

(43)

कहने वाले कहते हैं सरकार अच्छी है,
हिंदूवाद की बातें हर बार अच्छी हैं ।
'प्रखर' अंधभक्त तो यह भी कहते रहते हैं,
कि अमीरी और गरीबी की दीवार अच्छी है ।। 

(44)

नई योजना बड़ी अनोखी है अपने सरकार की,
अब तो डर लगता है बातें कहने में अधिकार की ।
बुरा लगेगा उनको तो देशद्रोही घोषित कर देंगे 
फांसी का डर नहीं है डर है बस कलंक के धार की ।।

(45)

देश चलाने वाले अत्याचार कर रहे, 
केवल अपने लाभ पर विचार कर रहे ।
जीवन बोझ बना है देश में रहने वालों का,
और वे केवल धर्म का प्रचार कर रहे ।।





                                  समाप्त                      
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