'उत्पीड़न की यात्रा' कविता संग्रह की रचना सुप्रसिद्ध कवि एल.एन. सुधाकर जी ने की है । इस कविता संग्रह के बारे लिखी गयी कवि की 'अपनी बात' यहाँ प्रस्तुत है ।
'उत्पीड़न की यात्रा' के बारे में कवि की कलम से....
काव्य-कला के मर्मज्ञ आचार्यों द्वारा प्रतिपादित काव्य के स्वरूप के लिए अनिवार्य मानी जाने वाली अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शक्तियों का सहारा लेने का विचार तो कभी आया ही नहीं, और न ही नये-नये प्रतीकों के प्रयोग एवं छंद-अलंकारों से अपनी कविता को अलंकृत करने की आवश्यकता ही समझी । काव्य की परंपरागत विधा का विचार किये बिना जिन भावों की हिलोरें मानस-पटल पर उठती हैं, उन्हें कलमबद्ध कर लेता हूँ । देखे और भोगे हुये यथार्थ की अभिव्यक्ति कभी आँसू तो कभी आक्रोश बनकर फूट पड़ती है और एक कविता बन जाती है ।
आंबेडकरवादी साहित्य में भाषा-सौंदर्य तथा कलात्मकता से अधिक भावों और मानव-मूल्यों की प्रधानता स्पष्ट देखी जा सकती है । मेरे इस काव्य-संग्रह 'उत्पीड़न की यात्रा' का मूल्यांकन भी इसी आधार पर किया जाना चाहिए ।
प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान एवं शिक्षाविद निर्वाणप्राप्त पंडित जगन्नाथप्रसाद उपाध्याय की मान्यता थी कि " परिस्थितियों की व्यापक जड़ता को तोड़कर शताब्दियों का उपेक्षित बहुजन समाज महान परिवर्तन के मार्ग पर सोत्साह चल पड़ा है । बाबा साहेब आंबेडकर ने स्वाभिमान का प्रकाश उन लोगों तक पहुँचा दिया, जिन्होंने शताब्दियों-शताब्दियों तक अपने ही देश में अपनी झोपड़ी और अपने जीवन का भार ढोते हुए बिताया तथा मानवीय श्रम और सेवा के पुरस्कार में दुत्कार, धिक्कार, अशिक्षा और दरिद्रता पायी है । बाबा साहेब ने बौद्ध पुनर्जागरण के माध्यम से शताब्दियों के बाद सामाजिक क्रांति को नयी दिशा प्रदान की है ।
आंबेडकरवादी साहित्य के प्रेरणा स्रोत बाबा साहेब ही हैं और अन्य अब तक उनका स्थान नहीं ले सका है । उपाध्याय जी का कथन शत् प्रतिशत सही है । यही मेरी काव्यधर्मिता का विचार बिंदु है, जिसे मैं स्वयं देखा है, भोगा है तथा अनुभव किया है । यही वह बीज है, जो भावों में अंकुरित होकर कविता को जन्म देता है ।
पुस्तक - उत्पीड़न की यात्रा (HB)रचनाकार - एल.एन. सुधाकरपृष्ठ - 64मूल्य - 200/-प्रकाशक - सम्यक प्रकाशन नई दिल्लीसंपर्क - 9810249452, 9818390161
सदियों से शोषित, प्रताड़ित, दमित अधिकार वंचितों में सम्मान जाग्रत हो और वे राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ें । सवर्ण-समृद्ध वर्ग अतीत के मोह त्यागकर स्वतंत्रता, समानता एवं भ्रातृत्व के आधार पर समाज के नव-निर्माण में अपनी अहम भूमिका अदा करें तथा आवश्यक सामाजिक परिवर्तन को गति प्रदान करें और सहज भाव से इसे अंगीकार करें । सामंतवाद का समूल नाश हो । धर्म का आधार नैतिकता हो । अंधविश्वास तथा रूढ़ियाँ समाप्त हो जाएँ । ज्ञान-विज्ञान में राष्ट्र समृद्ध और संपन्न हो । वर्णव्यवस्था तथा इसकी उपज जातियाँ और उपजातियाँ अस्तित्वहीन हो जाएँ । 'जीओ और जीने दो' मानव जीवन का सुखद लक्ष्य हो । सामाजिक न्याय, सामाजिक समानता, सहज स्वाभाविक रूप से सुलभ सर्वमान्य एवं सर्वाग्रही हो । 'उत्पीड़न की यात्रा' में संकलित काव्य-रचनाओं में इन्हीं भावों की अभिव्यक्ति की प्रधानता है ।
भवतु सब्ब मंगलं!
✍️ एल.एन. सुधाकर, शाहदरा, दिल्ली
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