हिंदी में छंद दो प्रकार के हैं - मात्रिक छंद और वार्णिक छंद । मात्रिक छंद में मात्राओं की गणना की जाती है तथा वार्णिक छंद में वर्णों की गणना की जाती है । मात्राएँ दो प्रकार की होती हैं - लघु मात्रा और दीर्घ मात्रा ।
>> लघु मात्रा : लघु मात्रा में एक मात्रा होती है । जिसका संकेत अंग्रेजी का 'आई' अक्षर (I) है । हिंदी वर्णमाला की सभी ह्रस्व स्वरों में लघु मात्रा होती है । जैसे - अ, इ, उ आदि ।
>> दीर्घ मात्रा : दीर्घ मात्रा में दो मात्रा होती है । दीर्घ
मात्रा को 'गुरु मात्रा' भी कहते हैं, जिसका संकेत अंग्रेजी का 'एस' अक्षर (S) है । हिंदी वर्णमाला की सभी दीर्घ स्वरों और संयुक्ताक्षरों में लघु मात्रा होती है । जैसे - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, क्ष, त्र, ज्ञ आदि ।
>> गण : गण का अर्थ समूह है । तीन अक्षरों को मिलाकर एक गण (समूह) बनता है । भारतीय विद्वानों द्वारा आठ गण निर्धारित किये गये हैं । गणों को याद करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है -
❇️❇️ सूत्र : यमाताराजभानसरगा ❇️❇️
> तीन-तीन वर्णों के समूह से आठ गण इस प्रकार बनते हैं -
(1) यगण यमाता ISS
(2) मगण मातारा SSS
(3) तगण ताराज SSI
(4) रगण राजभा SIS
(5) जगण जभान ISI
(6) भगण भानस SII
(7) नगण नसर III
(8) सगण सरगा IIS
👉 विशेष :- गणों का प्रयोग वार्णिक छंदों में वर्ण गिनने के लिए किया जाता है ।
1. दोहा : दोहा अर्धसम मात्रिक छंद है । दोहे में चार चरण होते हैं । पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं । पहले और तीसरे चरण के आरंभ में जगण (ISI) का प्रयोग वर्जित है । दूसरे और चौथे चरण के अंत में गुरु-लघु (SI) का होना अनिवार्य है । उदाहरण :
बस ऊँचा पद है 'प्रखर', ऊँचे नहीं विचार ।
ज्यों हाथी के पीठ पर, बंदर रहे सवार ।।
2. सोरठा : सोरठा भी अर्धसम मात्रिक छंद है । यह दोहा का ठीक विपरीत होता है । इसमें भी चार चरण होते हैं । पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं । उदाहरण :
धोखे का भंडार, माया के संसार में ।
जीवन की पतवार, 'प्रखर' डूबकर पा गये ।।
3. चौपाई : चौपाई सम मात्रिक छंद है । चौपाई में चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं । चरण के अंत में जगण (ISI) का प्रयोग वर्जित है ।
उदाहरण :
बिंदु मिले तो बनती रेखा ।
अंधेरे में किसने देखा ।
यज्ञ हवन से क्या होता है ।
चारों ओर धुआँ होता है ।
4. रोला : रोला भी सम मात्रिक छंद है । इसमें भी चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ होती हैं । ग्यारहवीं और चौबीसवीं मात्रा के पश्चात यति (विराम) होती है । उदाहरण :
मुट्ठी भर हैं लोग, बनाये यहाँ इमारत ।
फुटपाथों पर भीख, माँगने बैठा भारत ।
फटेहाल बेहाल, बना पागल सा घूमे ।
भारत का इंसान, पैर पत्थर का चूमे ।
5. कुंडलिया : कुंडलिया भी सम मात्रिक छंद है । इसमें छः चरण होते हैं । कुंडलिया एक दोहा और एक रोला का योग होता है । इसमें, जो वाक्य दोहा के अंतिम चरण में होता है, वही वाक्य रोला के प्रथम चरण में होता है । कुंडलिया के आरंभ में जो शब्द होता है, वही शब्द अंत में भी होता है । उदाहरण :
पूजा करने से कहाँ, होता है कल्याण ।
ऐसा हो तो क्यों 'प्रखर', चुभे दुखों के बाण ।।
चुभे दुखों के बाण, भक्त रोगी क्यों होते ।
दीन पुजारी लोग, समस्याएँ क्यों ढोते ।।
प्रज्ञा के अतिरिक्त, दुखों का हल ना दूजा ।
धारण कर लो शील, छोड़ दो करना पूजा ।।
6. बरवै छंद : इसके प्रत्येक चरण में 19 मात्राएँ होती हैं । चरण के अंत में जगण का होना अनिवार्य है । बारहवीं और उन्नीसवीं मात्रा पर यति होती है । उदाहरण :
बुरा नहीं होता है, मस्त मिजाज ।
मगर जरूरी होता, लाज-लिहाज ।
7. गीतिका छंद : इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं । चरण के अंत में लघु गुरु (IS) का होना अनिवार्य है । चौदहवीं और छब्बीसवीं मात्रा पर यति होती है । उदाहरण :
खो गया है होश अपना, होश में अब हम नहीं ।
जोश में कुछ भी हुआ तो, हम करेंगे गम नहीं ।
मौन रहकर जालिमों का, जुल्म अब सहना नहीं ।
दुश्मनों की दोस्ती की, छाँव में रहना नहीं ।
8. हरिगीतिका छंद : इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं । चरण के अंत में लघु गुरु (IS) का होना अनिवार्य है । सोलहवीं और अट्ठाइसवीं मात्रा पर यति होती है । उदाहरण :
हे देश के मुखिया हुआ यह, आपका आदेश है ।
आनंद सारा छोड़ घर में, बंद सारा देश है ।
जो भी कहे हैं आप उसका, लोग पालन कर रहे ।
भयभीत कोरोना किया ना, आपसे ही डर रहे ।
9. आल्हा छंद : इसके प्रत्येक चरण में 31 मात्राएँ होती हैं । चरण के अंत में गुरु लघु (SI) का होना अनिवार्य है । सोलहवीं और इकतीसवीं मात्रा पर यति होती है । उदाहरण :
मुर्छा और पसीना आना, अचेत होना खोना ध्यान ।
ब्लड प्रेशर घटने बढ़ने के, हैं ये सारे ही पहचान ।
कन्याओं में हिस्टीरिया की, यह बीमारी है लो जान ।
भूत-प्रेत का भ्रम तुम छोड़ो, करो चिकित्सा करो निदान ।
10. त्रिभंगी छंद : इसके प्रत्येक चरण में 32 मात्राएँ होती हैं । चरण के अंत में गुरु (S) का होना अनिवार्य है । दसवीं, अट्ठारहवीं, छब्बीसवीं और बत्तीसवीं मात्रा पर यति होती है । उदाहरण :
हम बोधिसत्व के, अनुयायी हैं, हमको आगे, बढ़ना है ।
राहों में जो भी, बाधाएँ हैं, उनसे हमको, लड़ना है ।
बाबा साहब का, जो सपना है, उसको पूरा, करना है ।
अपने भी अपना, साथ नहीं दें, तो ना हमको, डरना है ।
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11. इंद्रवज्रा छंद : यह सम वर्ण छंद है । इसमें दो तगण, एक जगण, दो गुरु होते हैं । इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं । उदाहरण :
गंगा नदी पे सिर ना झुकाओ ।
जाओ कभी ना इसमें नहाओ ।
विद्वान सारे कहते सभी से ।
मैली हुई है यह तो कभी से ।
12. उपेंद्रवज्रा छंद : यह भी सम वर्ण छंद है । इसमें एक जगण, एक तगण, एक जगण, दो गुरु होते हैं । इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं । पाँचवें और ग्यारहवें वर्ण पर यति होती है । उदाहरण :
जरा घुमाओ तुम खोपड़ी को ।
समक्ष देखो उस झोपड़ी को ।
खड़ी पड़ी है फुटपाथ पे जो ।
बुरी दशा में चुपचाप है वो ।
13. भुजंगप्रयात छंद : इसमें चार यगण होते हैं । प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते हैं । उदाहरण :
रहा नौ महीना पड़ा गर्भ में जो ।
लिया जन्म तो वो कहेगा 'कहाँ' क्यों ?
जिसे बोध है ही नहीं व्यंजनों का ।
भला शुद्ध 'क' और 'हाँ' वो कहे क्या ?
14. सुंदरी छंद : यह समवृत छंद है । इसमें एक नगण, दो भगण, एक रगण होते हैं । प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते हैं । उदाहरण :
दलित जो अब निर्धन ना रहे ।
ठहरिए उनको हम क्या कहें ।
तनिक ना जिनका अपमान है ।
चुभन से अब जो अनजान हैं ।
15. वंशस्थ छंद : यह समवृत छंद है । इसमें एक जगण, एक तगण, दो जगण, एक रगण होते हैं । प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते हैं । उदाहरण :
अभी हमारा अधिकार शेष है ।
मिला अभी भी उपहार क्लेश है ।
बुरा लगे तो यह एक खेद है ।
प्रभाव में तो बस जातिभेद है ।
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16. वसंततिलका छंद : इसमें एक तगण, एक भगण, दो जगण, दो गुरु होते हैं । प्रत्येक चरण में चौह वर्ण होते हैं । आठवें और चौदहवें वर्ण पर यति होती है । उदाहरण :
ऐ साथियों धरम में मन ना लगाओ ।
बातें कभी भरम की अब ना सुनाओ ।
जागे हुए दलित हैं तुम जाग जाओ ।
जो नींद में मगन हैं उनको जगाओ ।
17. मालिनी छंद : यह समवर्ण छंद है । इसमें दो नगण, एक मगण, दो यगण होते हैं । प्रत्येक चरण में पन्द्रह वर्ण होते हैं । आठवें और पन्द्रहवें वर्ण पर यति होती है । उदाहरण :
बहुजन बिखरे जैसे घड़ा फूट जाए ।
सुगठित मनका जैसे कभी टूट जाए ।
कलुषित मन वालों पे कला क्या लुटाएँ ।
अब हम अपनों में ही हुए हैं पराए ।
18. मन्दाक्रांता छंद : यह समवर्ण छंद है । इसमें एक मगण, एक भगण, एक नगण, दो तगण और दो गुरु होते हैं । प्रत्येक चरण में सत्रह वर्ण होते हैं । दसवें और सत्रहवें वर्ण पर यति होती है । उदाहरण :
मैंने देखा परमसुख की काव्य धारा वहाँ है ।
सेवा श्रद्धा नमन करुणा शील प्रज्ञा जहाँ है ।
तर्कों से जो मनन करते सत्यशोधक वहाँ हैं ।
पाखंडों के गमन पथ के भी विरोधी वहाँ हैं ।
19. शिखरिणी छंद : यह समवर्ण छंद है । इसमें एक यगण, एक मगण, एक नगण, दो सगण, एक भगण, एक लघु और एक गुरु होते हैं । प्रत्येक चरण में सत्रह वर्ण होते हैं । छठवें और सत्रहवें वर्ण पर यति होती है । उदाहरण :
यहाँ तो ज्ञानी भी करम करते हैं भरम के ।
नहीं विज्ञानों के वचन कहते हैं धरम के ।
धरा को भी पूजें नमन करते हैं गगन को ।
चढ़ावा से तो ये मगन करते हैं पवन को ।
20. सवैया छंद : प्रत्येक चरण में बाइस से छब्बीस वर्ण होते हैं । सवैया के आठ प्रकार हैं । यहाँ दो प्रकार के सवैया का परिचय दिया जा रहा है ।
(क) मत्तगयंद सवैया छंद : प्रत्येक चरण में तेइस वर्ण होते हैं । इसमें सात भगण और दो गुरु होते हैं । बारहवें और तेइसवें वर्ण पर यति होती है । उदाहरण :
लोग अछूत रहे दुःख में जब, डूब गया हर ओर किनारा
धीरज संयम से तुमने तब, हृदय का हर भाव निखारा
बुद्धि विवेक विचार जगाकर, दूर किये मन का अँधियारा
आज यही दुनिया कहती गुरु, संतशिरोमणि नाम तुम्हारा
(ख) किरीट सवैया छंद : प्रत्येक चरण में चौबीस वर्ण होते हैं । इसमें आठ भगण होते हैं । बारहवें और चौबीसवें वर्ण पर यति होती है । उदाहरण :
भीड़ जुटाकर मंच लगाकर, और सजाकर ऊपर आसन ।
वेश बनाकर भाव दिखाकर, बंद करो पढ़ना अब भाषण
नाम करो मत काम करो कुछ, व्यर्थ करो मत ढोंग-प्रदर्शन
'प्रखर' बादल सा बरसो तुम, लेकिन यूँ करना मत गर्जन
21. घनाक्षरी छंद : घनाक्षरी छंद को मनहरण और कवित्त आदि नामों से भी जाना जाता है । इसके प्रत्येक चरण में इकतीस वर्ण होते हैं । प्रत्येक चरण के अंत में गुरु का होना अनिवार्य है । सोलहवें और इकतीसवें वर्ण पर यति होती है । उदाहरण :
गोरा हो या साँवला हो चाहे सूखा आँवला हो,
प्रीतम वही जो देखे बोले मिले प्यार से ।
हृदय मचल जाए मन भी फिसल जाए,
चाह भी बदल जाए जिसके दीदार से ।
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📚 उदाहरण के रूप में दिये गये सभी पद्यांश देवचंद्र भारती 'प्रखर' द्वारा रचित 'दलित जागरण' पुस्तक से उद्धृत हैं । 📚
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✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर'
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, हरिनंदन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चंदौली (उत्तर प्रदेश)
मो० : 9454199538
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साधुवाद 💐💐
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