सुदेश कुमार 'तनवर' जी ने अपनी कविता 'मैं हैरान हूँ' उन महिलाओं को समर्पित की है, जिन्होंने हिंदू धर्म की पारंपरिक सोच को बदलने के लिए काम किया है । कुछ लोग इस कविता को महादेवी वर्मा के नाम से वर्षों से प्रचारित करते आ रहे हैं । इस कविता को लेकर इंटरनेट और सोशल मीडिया पर विवादास्पद लेख और टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलती हैं । वास्तव में यह कविता तनवर जी की मौलिक कविता है, जो वर्ष 2008 में प्रकाशित पुस्तक 'भारतीय दलित साहित्य का विद्रोही श्वर' में पृष्ठ संख्या चौसठ-पैंसठ पर मुद्रित है । इस कविता को महादेवी वर्मा से जोड़कर जितने भी लेख इंटरनेट और सोशल मीडिया पर मिलते हैं, वे सभी 2008 के बाद के हैं । इसलिए यह सिद्ध होता है कि यह कविता सुदेश तनवर जी की है । वैसे भी, महादेवी वर्मा के किसी भी काव्य-संग्रह में इस नाम की कोई कविता संग्रहीत नहीं है । इस कविता में तनवर जी ने महिलाओं के साथ अन्याय और अत्याचार करने वाले हिंदू देवताओं की महिलाओं द्वारा पूजा किये जाने पर चिंता व्यक्त की है ।
आज भले ही नारीवाद का बोलबाला है और महिला सशक्तीकरण का ढोल बजाया जाता है, फिर भी नारीवादी महिलाओं और पुरुषों में इतनी हिम्मत नहीं कि वे तुलसी, मनु, राम, कृष्ण, पांडवों और भीष्म के कारनामों की खुलकर निंदा कर सकें । उनकी इस चुप्पी को देखकर कवि तनवर जी को शर्म से पानी-पानी होना पड़ता है ।
मैं हैरान हूँ
मैं हैरान हूँ
यह सोचकर
किसी औरत ने उठाई नहीं उंगली
तुलसी पर
जिसने कहा -
" ढोल गँवार शुद्र पशु नारी
ये सब ताड़ना के अधिकारी । "
मैं हैरान हूँ
किसी औरत ने
क्यों जलाई नहीं मनुस्मृति
पहनाई जिसने उन्हें
गुलामी की बेड़ियाँ ।
मैं हैरान हूँ
किसी औरत ने
धिक्कारा नहीं उस राम को
जिसने गर्भवती 'माँ' को
अग्निपरीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से
धक्के मारकर ।
मैं हैरान हूँ
किसी औरत ने
नंगा किया नहीं उस कृष्ण को
चुराता था जो नहाती हुई
बालाओं के वस्त्र
'योगेश्वर' कहलाकर भी
मनाता था रंगरलियाँ
सरेआम ।
मैं हैरान हूँ
किसी औरत ने
बधिया किया नहीं उस इंद्र को
जिसने किया था अपनी ही
गुरुपत्नी के साथ
बलात्कार ।
मैं हैरान हूँ
किसी औरत ने
भेजी नहीं लानत
उन सबको, जिन्होंने
औरत को समझकर एक वस्तु
लगा दिया जुए के दाँव पर
होता रहा जहाँ 'नपुंसक योद्धाओं' के बीच
समूची औरत जात का
चीरहरण ।
मैं हैरान हूँ
यह सोचकर
किसी औरत ने किया नहीं
संयोगिता-अंबालिका के दिन-दहाड़े
अपहरण का विरोध
आज तक
और...
मैं हैरान हूँ
इतना कुछ होने पर भी
क्यों अपना 'श्रद्धेय' मानकर
पूजती हैं मेरी माँ-बहनें
उन्हें देवता
भगवान बनाकर ।
मैं हैरान हूँ
शर्म से, पानी-पानी हो जाता हूँ
उनकी चुप्पी देखकर
इसे, उनकी सहनशीलता कहूँ
अंधश्रद्धा
या फिर
मानसिक गुलामी की
पराकाष्ठा ?
{ कवि :- सुदेश कुमार 'तनवर' 9868862563 }
📘 संदर्भ :- माटी के वारिस : सुदेश कुमार 'तनवर', पृष्ठ 87-88-89, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, पहला संस्करण 2020
✍️ समीक्षक :- देवचंद्र भारती 'प्रखर'
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, हरिनंदन स्नातकोत्तर महाविद्यालय मोहरगंज, चंदौली (उत्तर प्रदेश)
📱9454199538
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
Tags
कविता