विद्यालय गीत (गीत-संग्रह)

राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त, 26 जनवरी तथा महापुरुषों के जन्म दिवस के साथ-साथ विद्यालयों में वार्षिकोत्सव आदि मनाने की प्रक्रिया स्वाधीनता के पश्चात काल से ही चली आ रही है । ऐसे अवसरों पर संभाषण, एकांकी, चुटकुले आदि के अतिरिक्त गीतों की अहम भूमिका होती है । वर्तमान समय में गीतों की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर इस पुस्तक का प्रस्तुतीकरण किया गया है, जिसमें विद्यालय गीत, स्वागत गीत, राष्ट्रीय गीत तथा अन्य गीत संग्रहीत हैं ।

मुझे आशा है यह पुस्तक अपने उद्देश्य में सफल सिद्ध होगी । गीतों के विषय में शिक्षक एवं छात्र अपने विचारों से मुझे अवश्य अवगत कराएँगे । आपके विचारों को सहर्ष स्वीकार किया जाएगा । ✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर'

विद्यालय गीत (गीत-संग्रह) 

देवचंद्र भारती 'प्रखर' द्वारा रचित 'विद्यालय गीत' पुस्तक का पहला संस्करण वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ था । इस पुस्तक में कुल 80 गीत संग्रहीत हैंं । इसमें गुरु वंदना, स्वागत गीत, राष्ट्रीय गीत एवं सामाजिक गीतों का क्रमबद्ध संग्रह किया गया है । सभी गीत किसी न किसी तर्ज पर हैं ।  इस गीत-संग्रह में भोजपुरी और हिंदी गीत शामिल हैं । अवलोकन हेतु कुछ गीत यहाँ प्रस्तुत हैं । 

गुरु वंदना Guru Vandana 

♻️ तर्ज : रिश्ता तेरा मेरा जग में है आला

गुरुवर की महिमा जगत में है न्यारी
चरणो में कोटि वंदना है हमारी, वंदना हमारी

♻️ तर्ज : आँख है भरी - भरी 

खुशनसीब काँट वो जो आपके
पैरों के नीचे कभी कुचल गये
जिनके सिर पे पड़ गये ये हाथ वो
खामियों की भीड़ से निकल गये

कभी भरी निगाहों से
कभी कातिल फिजाओं से
गुरु के ज्ञान की हस्ती
बचाती है गुनाहों से
जिंदगी फिसल नहीं सके कभी
जिंदगी के पाँव जो संभल गये
जिनके सिर पे......... ।

जुबां खामोश है लेकिन
जिगर में है मची हलचल
पनाहों में आपके हम
बहाये आँसुओं के जल
मिल गयी झलक जरा अतीत की
हरकतों के रौब ही बदल गये
जिनके सिर पे......... ।

♻️ तर्ज : तुम दिल की धड़कन में 

याद अभी हैं वो दिन
जो संग में गुजरे हैं
आज अतीत के चेहरे
नजरों में उतरे हैं
दुनिया में खास नहीं
आप बिना रास नहीं

हम फूलों की डाली थे
पर खुशबू से खाली थे
शोख बहारों को लाये
आप चमन के माली थे
       बिगड़े कल के हालात
       आज सभी सुधरे हैं
दुनिया में खास नहीं.........।

खुश है आज खुशी का दिन
आज 'प्रखर' सब है मुमकिन
जिनके पाँव पड़ें भगवान
उनके गुण गाएँ गिन-गिन
      बरसों के भाव दबे
      माथे पर उभरे हैं
दुनिया में खास नहीं.........।


विद्यालय गीत Vidyalaya Geet 

♻️ तर्ज : जीना सिर्फ मेरे लिए

नहीं है ये ताजमहल
नहीं भव्य राजमहल
ये है सरस्वती का भवन
ज्ञान की ज्योति के लिए -2
हृदय में ज्ञान की ज्योति के लिए

भिन्न-भिन्न नर रूप, हैं यहाँ पे आते
एक ही नियम में बँध सभी हैं जाते
गुरुजनों की बातें ज्ञानपूर्ण होतीं
सरस प्रेमवाणी सदाचार देती
चाहे जैसे भी हों मनोभाव
ज्ञान पाके वो जाएंँ बदल

ज्ञान के बिना क्या है जीवन का आधार
अड़चनें सतातीं ठगता है ये संसार
आदमी सामाजिक, सभ्यता जरूरी
ये जगह है ऐसी, सब कमी हो पूरी
बने आदमी पशु भी
'प्रखर' जब वो कर ले अमल ।

♻️ तर्ज : चाँद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा 

ज्ञान का ये सदन है स्वर्ग से प्यारा, है हो प्यारा
यहीं शुचिता पाए मन ये हमारा
जीवन की राहों में ज्ञान ही सहारा...हो सहारा

ज्ञान बिना यह जीवन क्या है गुरुवर ज्ञान के माध्यम
विद्यालय के पावन भू पर विद्या का हो आगम
गुरु का है रुप धरि गिरा ने पधारा, हो पधारा
यहीं शुचिता पाए............ ।

ज्ञान से सच्चा सुख मिलता है ज्ञान से सोच 
होगा हो लोग 
इस भवसागर का ज्ञान ही किनारा, हो किनारा
यहीं शुचिता पाए............ ।

♻️ तर्ज : तुझको ना देखूँ तो दिल घबराता है 

शिक्षा क्या होती है दूध क्या होता है गुड क्या होता है
शिक्षक दिवस सदा हमको यही सिखाता है
शिक्षक और शिक्षार्थी में कैसा नाता है
शिक्षक दिवस सदा हमको

शिक्षा वही है जो गुण और ज्ञान दे
दल और समाज में अच्छी पहचान दे
मिलती प्रतिष्ठा उत्तम व्यवहार से
ही को मिले सुख आपस के प्यार से
ज्ञान वही जो यथार्थ की राह दिखाता है
शिक्षक दिवस सदा हमको

शिक्षक और छात्र का नाता है पावन
आचार्य और विचारों का संगम
शिक्षक पर कर दो दर्पण दिखाएं
देखी स्वयं को छात्र सजाए
शौचालय की गरिमा छात्र बचाता है
शिक्षक दिवस अदा हमको


स्वागत गीत Swagat Geet 

♻️ तर्ज : प्यार के कागज पे

आपके आने से उजड़े चमन में
रंगत का खुमार हुआ -2
हाजिर अब शोख बहार हुआ

खिल के कली मुस्कुराई
कोयल मधुर गुनगुनाई
धरती ने ली अंगड़ाई
अंबर ने आँखें झुकाई
       एक झोंका आए-जाए
       डाली-डाली महाकाए
गुलशन है गुलजार हुआ
हाजिर अब शोख बहार हुआ

आई सुबह की है बेला
सूरज दिशाओं से खेला
टूटा अंधेरे का मेला
है अब उजाला अकेला
       ढल रही है गम की शबनम
       है हवाओं में भी सरगम
चैन भरा दीदार हुआ
हाजिर अब शोख बहार हुआ


राष्ट्रीय गीत Rashtriya Geet 

♻️ तर्ज : नजर के सामने जिगर के पास 

हमारा ये वतन, था जब गुलाम
लोग सहते रहे सदा जुलुम

आजादी क्या है पूछो, पिंजरे के पंछी से
कारागार में बंद है जो, पूछो उस बंदी से
पेट भरता मगर, आत्मा में है गम
हमारा ये वतन............।

ख्वाब हकीकत ना होता
है नजरों का सारा
दिल की ख्वाहिश ना होती
किस्मत को भी गवारा
ऐसा ही हाल था
'प्रखर' इस मुल्क का
हमारा ये वतन............।


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