आंबेडकरवाद (कविता)

आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान' आलोचना ग्रंथ के लेखक एवं 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका के संपादक देवचंद्र भारती 'प्रखर' एक क्रांतिकारी साहित्यकार एवं समालोचक हैं । उनके द्वारा रचित 'आंबेडकरवाद' कविता यहाँ प्रस्तुत है । इस कविता में आंबेडकरवाद को सम्यक रूप में पारिभाषित किया गया है । साथ ही, वर्तमान समय में आंबेडकरवाद को गलत दिशा में ले जा रहे लोगों के पाखंडपूर्ण कार्यों की आलोचना भी की गयी है ।

आंबेडकरवाद  (AMBEDKARVAD)

केवल जयंती मनाना आंबेडकरवाद नहीं 
जातिवाद, ब्राह्मणवाद, ईश्वरवाद के विरुद्ध 
क्रांति की डफली बजाना व्यर्थ है;
कोट - पैंट पहनकर 
वक्तव्य देना मंच पर 
पुस्तकीय कीड़े की पहचान है 
'जय भीम' का नारा लगाना 
पानी सा पैसा बहाना 
बहुत हो चुका यह भीड़ जुटाने का अभिनय 
ऐसे क्रियाकलापों से जो प्राप्त हुआ परिणाम 
उसे हम देख चुके हैं;
हाथी गिरा गड्ढे में 
रविदास मंदिर हुआ खंडित 
संगठन चलाने वाले शब्दों से सिर फोड़ते 
मनुवाद के देवदार की जड़ें सुरक्षित 
वे केवल पत्ते तोड़ते 
आंबेडकर के कथनों का प्रचार करना 
उनका गुणगान करना
आंबेडकरवादी गानें बजाकर नृत्य करना,
यदि ऐसा ही करना है, 
तो संगठन बनाने का प्रयत्न क्यों ?
'आंबेडकरवाद' विचारधारा है 
विचार बदलना होगा 
वर्चस्व और विषमता का 
व्यवहार बदलना होगा
चापलूसी, चमचागिरी और महत्वाकांक्षा से 
मुक्त होकर 
समता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्व और प्रेम को 
अंतस्थल में धारण करना होगा
त्रिशरण-गमन और पंचशील का
पालन करना होगा 
दुखों का प्रलाप परिहार्य है,
दुखों का निवारण करना होगा 
अपनाना होगा 
बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग को ।

✍️  देवचंद्र भारती 'प्रखर'
संपादक - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका 
🏡  वाराणसी, उत्तर प्रदेश 

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने