भीमा-कोरेगांव का युद्ध 1 जनवरी सन् 1818 ई. को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (महार सेना) और मराठा संघ के पेशवा गुट के बीच हुआ था । पेशवा सैनिकों की संख्या 28000 थी, जबकि महार सैनिक मात्र 500 थे । इस प्रकार एक-एक महार सैनिक के हिस्से में छप्पन-छप्पन पेशवा सैनिक थे । महार सेना ने 12 घंटे तक जमकर पेशवा सेना से युद्ध किया । अंत में पेशवा सतारा की ओर भाग गये और कंपनी की सेना ने पुणे पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया । यह युद्ध तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध का अंग था ।
कोरेगांव युद्ध : महारों के सम्मान का युद्ध
इस दिन अर्थात् 1 जनवरी को आंबेडकरवादियों द्वारा 'शौर्य-दिवस' (विजय-दिवस) के रूप में मनाया जाता है । क्योंकि इसी दिन महार सैनिकों ने अपने शत्रुओं (पेशवाओं) पर विजय प्राप्त की थी । साथ ही, उनका प्रतिशोध भी पूरा हुआ था । दरअसल, पेशवा राज्य में महारों के साथ विषमतापूर्ण व्यवहार किया जाता था । भीमा-कोरेगांव का युद्ध महारों के सम्मान का युद्ध था । महार सैनिकों को यह अवसर अंग्रेजों की कृपा से प्राप्त हुआ था । भीमा-कोरेगांव में स्थापित 'विजय-स्तंभ' ईस्ट इंडिया कंपनी की देन है ।
'समता सैनिक दल' की स्थापना
भीमा कोरेगांव के युद्ध से प्रेरणा लेकर बाबा साहेब डाॅ. भीमराव आंबेडकर ने 1 जनवरी 1927 को 'समता सैनिक दल' की स्थापना की थी । वास्तव में, उन्होंने महार सैनिकों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की थी । जातीय, वर्गीय, धार्मिक आदि सभी प्रकार की अमानवीय विषमताओं का अंत करके समता पर आधारित समाज की स्थापना करना ही 'समता सैनिक दल' का उद्देश्य है ।
शौर्य-दिवस कैसे मनाना चाहिए ?
हर वर्ष 1 जनवरी को (अंग्रेजी 'नव वर्ष' के दिन) बाबा साहेब डाॅ. भीमराव आंबेडकर के अनुयायी शौर्य-दिवस की बधाई देते हैं । कुछ आंबेडकरवादी इस दिन उत्सव का आयोजन करके नृत्य, गीत-संगीत, भाषण, नारेबाजी आदि अनेक प्रकार की गतिविधियाँ करते हैं । प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि शौर्य-दिवस कैसे मनाना चाहिए ? इसका निर्णय करते समय निम्न बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है ।
1. शौर्य-दिवस वीरता (वीर कर्म) से संबंधित है ।
2. शौर्य-दिवस के दिन ही डाॅ. भीमराव आंबेडकर ने 'समता सैनिक दल' की स्थापना की ।
3. शौर्य-दिवस अपमानित जनों (महारों) के सम्मान का दिन है ।
4. वीर-रस के अंतर्गत वीरता चार प्रकार की मानी गयी है - युद्ध-वीर, धर्म-वीर, दया-वीर, दान-वीर ।
अतः 'शौर्य दिवस' (1 जनवरी) को निम्न प्रकार से मनाना चाहिए -
1. वीरता से परिपूर्ण खेल/प्रतियोगिता का आयोजन करना चाहिए । जैसे- कुश्ती, कर्राटे, कबड्डी, दौड़ आदि ।
2. 'समता सैनिक दल' द्वारा परेड का आयोजन करना चाहिए । साथ ही, 'समता सैनिक दल' के सक्रिय एवं समर्पित मार्शल को सम्मान/पुरस्कार प्रदान करना चाहिए ।
3. युद्ध-वीर, धर्म-वीर, दया-वीर और दान-वीर आदि सभी प्रकार के वीरों को सम्मान/पुरस्कार प्रदान करना चाहिए तथा उनका वक्तव्य सुनना चाहिए ।
- देवचंद्र भारती 'प्रखर'
आंबेडकरवादी साहित्यकार एवं समालोचक (चिंतक)
संपादक - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका, वाराणसी