मातृभूमि और देशभूमि

प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत गीत, नृत्य, संगीत, नाटक आदि के अतिरिक्त संभाषणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । विद्यालयों में संभाषण की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर संभाषण-संग्रह की पुस्तक 'देशप्रेम' की रचना की गयी है । इस पुस्तक के लेखक प्रख्यात साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' हैं । प्रस्तुत है इस पुस्तक से एक संभाषण ।

मातृभूमि और देशभूमि  Matribhumi Aur Deshbhumi 

जिस भूमि पर हमारा जन्म हुआ हो उसे हम जन्मभूमि कहते हैं । जहां हमारा पालन-पोषण हुआ हो उसे हम मातृभूमि कहते हैं और जिस देश के हम नागरिक हों उस देश की भूमि को देशभूमि कहते हैं । कभी ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति का जन्म कहीं और होता है, पालन कहीं और होता है तथा मृत्यु कहीं और होती है । इसलिए उसकी जन्म भूमि, मातृभूमि और मृत्यु भूमि अलग-अलग होती है । किंतु यदि वह अपने देश के भीतर ही हो तो उसकी देेशभूमि एक ही होती है । जैसे - कबीर दास की जन्म भूमि और मातृभूमि काशी है जबकि उनकी मृत्यु भूमि मगहर है, किंतु उनका जन्म - मरण भारत देश में ही हुआ, इसलिए उनकी देशभूमि भारत है ।

जो व्यक्ति अपनी जन्मभूमि या मातृभूमि को बेचकर कहीं और बस जाता है, उसके हृदय में अपनी जन्मभूमि या मातृभूमि के प्रति प्रेम नहीं होता । परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो किंतु अपनी जन्मभूमि से सच्चा प्रेम करने वाला उसे बेच नहीं सकता । क्योंकि जन्मभूमि मां समान होती है और एक सपूत अपनी मां को नहीं बेच सकता; ऐसा करने वाला कपूत ही होगा ।

मातृभूमि का आदर करना है पहचान सपूतों की ।
'प्रखर' बेच दे मातृभूमि को ऐसी सोच कपूतों की ।।

भूमि के लिए जितने रक्त बहे हैं उतने रक्त अन्य किसी भी चीज के लिए नहीं बहे हैं । भारत में राजाओं - महाराजाओं का एक दूसरे पर आक्रमण तथा चीन और पाकिस्तान द्वारा भारत पर किए गए आक्रमण, इसके प्रमाण हैं । फिर भी कुछ घमंडी धनवान सोने - चांदी के आगे धरती की कीमत नहीं समझते । जरा सी माटी लगने पर बवाल खड़ा कर देते हैं । भूल जाते हैं कि उनकी चमकती हुई शरीर भी माटी की ही है ।

माटी के ही दम से है सोने सा ये बदन
माटी अगर ना होती कैसे पाते भोजन ?
माटी से ही ईंट बनी ईंट से मकान
'प्रखर' माटी के ऊपर ही करते हैं शयन ।।

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