लॉकडाउन के दौरान देश की स्थिति

17 अप्रैल 2020 को महाविद्यालय में बी०ए० प्रथम वर्ष के हिंदी (द्वितीय प्रश्नपत्र) की प्रथम पाली में परीक्षा थी । परीक्षा के उपरांत मैंने अगले दिन यानि 18 अप्रैल के लिए अवकाश लिया; अवकाश क्या लिया, उसी दिन से महाविद्यालय बंद । कारण क्या था? कोरोना वायरस का प्रकोप । बड़ी खुशी हुई कि कुछ दिन छुट्टी का आनंद लिया जाएगा । दो दिन बाद खबर मिली कि 22 मार्च को दिन भर कोई भी घर से बाहर नहीं निकलेगा । सवाल उठा, इससे क्या होगा ? जवाब मिला, वायरस का जीवनकाल 12 घंटे के लगभग होता है; 22 मार्च को सुबह 7:00 बजे से रात 9:00 बजे तक लोग एक-दूसरे के संपर्क में नहीं होंगे, तो श्रृंखला टूटने से वायरस की मौत हो जाएगी । साथ ही, यह खबर भी मिली कि शाम को 5:05 बजे सभी देशवासियों को ताली और थाली बजाना है । सवाल उठा, ऐसा क्यों ? जवाब मिला, कोरोना वायरस से लड़ रहे पुलिस के जवानों और वैक्सीन बनाने के प्रयास में लगे चिकित्सकों को धन्यवाद देने के लिए । मन में फिर सवाल उठा कि जब 14 घंटे का समय (सुबह 7:00 बजे से रात 9:00 बजे तक) वायरस की श्रृंखला तोड़ने के लिए निश्चित किया गया है, तो फिर बीच में 10 घंटे के बाद ही अर्थात् 5:05 बजे ही ताली और थाली बजाना क्या उचित है ? यदि नहीं, तो फिर इसके पीछे इस तरह का आदेश देने वाले प्रधानमंत्री जी का उद्देश्य क्या है ? फिर सोचा; खैर, जो भी हो, देखा जाएगा ।

22 मार्च को सारा दिन घर में रहने के बाद शाम को 5:05 बजे पास-पड़ोस में ताली और थाली बजाने का कार्यक्रम शुरु हो गया । साथ ही पटाखे भी फोड़े जाने लगे । कई जगहों पर तो लोगों ने श्रृंखला तोड़ने का नियम ही तोड़ दिया; समूह में ताली और थाली बजाते हुए रोड मार्च किये । नतीजा यह हुआ कि दिनभर की तपस्या का कोई फल नहीं मिला । 24 मार्च रात 8:00 बजे प्रधानमंत्री ने 21 दिन के लाॅकडाउन की घोषणा कर दी, बिना किसी योजना और बिना किसी व्यवस्था के । जिंदगी की तेज दौड़ती गाड़ी में अचानक ब्रेक लग गये । हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, विश्वविद्यालय, महाविद्यालय आदि सभी जगहों पर सन्नाटा, सड़कें सुनसान, बाजार निर्जन, कंपनी और कारखाने बंद; जो जहाँ था, वह वहीं पड़ा रह गया । इन 21 दिनों में देश की स्थिति क्या रही ? उसका विवरण निम्न है :

राजनैतिक स्थिति : 24 मार्च की रात 12:00 बजे से पूरा भारत लॉकडाउन हो गया । लेकिन 25 मार्च की सुबह ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में पहुँचकर रामलला को टिन शेड से निकालकर फाइबर के बने अस्थाई ढाँचे (मंदिर) में विराजित किया । मुख्यमंत्री ने मंदिर निर्माण के लिए 11 लाख रुपये का चेक भी दिया । उन्होंने सुबह 6:45 बजे ट्वीट करके खुद बताया कि भव्य राममंदिर के निर्माण का पहला चरण पूरा हुआ । कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि क्या उत्तर प्रदेश भारत से अलग है, अगर नहीं  तो मुख्यमंत्री ने ऐसा क्यों किया ? जवाब नहीं मिला ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोविद 19 संक्रमण से मुकाबले के लिए शुक्रवार सुबह 9:00 बजे प्रसारित अपनेेेेे 12 मिनट लंबे विडियो संंदेश में देश की जनता से अपील किये कि सभी देशवाासी 5 अप्रैल को रात 9:00 बजे 9 मिनट तक घर की लाइट बंद करके घर के दरवाजे पर या बालकनी में मोमबत्ती, दीया या मोबाइल फ्लैशलाइट जलाएँ । कुछ लोगों ने इसका वैज्ञानिक कारण बताते हुए इस कार्य को उपयोगी बताया; जबकि कुछ लोगों ने इसे राजनैतिक दृष्टिकोण से विचार करते हुए यह कहा कि 6 अप्रैल को भाजपा का स्थापना दिवस है । अपनी पार्टी के 40 वर्ष पूरे होने की खुशी में भाजपा सरकार द्वारा एक दिन पहले अर्थात 5 अप्रैल को भारतीय जनता के साथ दीया जलाने के बहाने स्थापना दिवस की खुशी मनाई जा रही है ।

इस विरोधी पक्ष की बातों में तार्किक रूप से कुछ सच्चाई अवश्य दिख रही थी, लेकिन भारतीय मीडिया ने तो कभी भी इस पक्ष को नहीं रखा, बल्कि हमेशा सरकारी रवैए का गुणगान गाती रही ।

धार्मिक स्थिति : लाॅकडाउन के दौरान धार्मिक स्थिति अच्छी नहीं रही । सारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च बंद होने के कारण अंधविश्वास और आडंबर कम ही हुआ ।

लेकिन एक तरह से मानवीय रूप से यह स्वर्णकाल रहा, क्योंकि इस दौरान धर्म के नाम पर बेजुबान और बेगुनाह जानवरों की बलि नहीं चढ़ाई गई । धर्म के नाम पर गरीबों को लूटा नहीं गया । धर्म के नाम पर किसी परिवार में कलह नहीं पैदा किया गया । धर्म के नाम पर किसी जोड़े को अलग नहीं किया गया ।

सामाजिक स्थिति : लाॅकडाउन के दौरान सामाजिक स्थिति काफी अच्छी रही । इस दौरान चोरी, हत्या, लूट, बलात्कार आदि घटनाएँ लगभग शून्य ही रहीं, किंतु घरेलू झगड़े बढ़ते दिखाई दिये । पति-पत्नी के झगड़ों में वृद्धि हुई । पारिवारिक कलह के कई सारे मामले सामने आये ।

14 अप्रैल के दिन का दृश्य देखकर हृदय प्रसन्न हुआ । न कोई ढोंग, न कोई दिखावा, न कोई भाषणबाजी, न कोई ड्रामेबाजी; बिल्कुल साधारण तरीके से मनाई गई अंबेडकर जयंती ।

• घर-घर अंबेडकर की फोटो पर पुष्प अर्पण किये गये ।
• घर-घर दीप जलाये गये ।
• धन का अपव्यय नहीं हुआ ।
• डीजे पर नाच - तमाशा नहीं हुआ ।
• बेमतलब की नारेबाजी नहीं हुई ।
• किसी जाति विशेष को गाली नहीं दी गई ।

मानवता के मार्गदर्शक का जन्मदिन बिल्कुल मानवता पूर्ण तरीके से मनाया गया ।

आर्थिक स्थिति : कोरोना वायरस से प्रभावित सभी देशों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई । ऐसी स्थिति में भारत में भी 21 दिनों तक लाॅकडाउन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरी तरह प्रभावित हुई । कंपनी - कारखाने बंद होने के कारण प्रवासी मजदूरों की हालत बहुत ही दयनीय हो गई । वे जो भी कुछ कमाए थे, सारा का सारा खर्च हो गया और भोजन तथा मकान का किराया भरने तक के लिए भी उनके पास पैसे नहीं रहे । ऐसी स्थिति में वे भूख से बिलबिलाने लगे । भारत सरकार ने गरीबों को राशन और गैस मुफ्त में बाँटने की घोषणा तो की लेकिन मुस्तैदी से इस योजना को लागू नहीं कर पाई । सरकार ने उन प्रवासी मजदूर गरीबों को उनके इच्छित स्थान पर पहुँचाने के लिए कोई व्यवस्था भी नहीं की, कोई वाहन नहीं चलाया । इसलिए तंग आकर हजारों गरीबों ने पैदल ही अपने इच्छित ठिकाने पर पहुँचने के लिए यात्रा आरंभ कर दी । कई मजदूर तो रास्ते में ही भूख, प्यास और बीमारी से दम तोड़ दिये ।

शैक्षिक स्थिति :  लाॅकडाउन के दौरान देश के सारे विश्वविद्यालय और महाविद्यालय, प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक सरकारी और गैर-सरकारी सभी स्कूल-कॉलेज बंद रहे, तो शैक्षिक स्थिति अच्छी तो नहीं हो सकती । हाँ, घर पर शिक्षा के प्रति जागरूक बच्चे स्वाध्याय अवश्य करते रहे ।

शैक्षिक सत्र में विलंब होने की संभावना है । विश्वविद्यालय स्तर की सभी परीक्षाएँ विलंब से ही होंगी तथा उनका परिणाम भी विलंब से ही आएगा । खैर, देशवासियों की जिंदगी से बढ़कर शैक्षिक सत्र तो नहीं है ।

साहित्यिक स्थिति : प्रारंभ में 21 दिनों का लाॅकडाउन और फिर 19 दिनों का लॉकडाउन, कुल मिलाकर 40 दिनों तक देश में तालाबंदी । इधर 20 अप्रैल से भारतीय डाक सेवा आरंभ कर दी गई है, जिससे पत्र-पत्रिकाएँ और पुस्तकें भेजने और मँगाने का कार्य आरंभ हो चुका है । अन्यथा इससे पहले तो साहित्यिक स्थिति भी अच्छी नहीं रही । हमारे जैसे लेखकों और पाठकों को लिखने और पढ़ने की अनेक असुविधाएँ हुई ।

निष्कर्षतः स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाॅकडाउन का फैसला लिया, लेकिन देरी से; क्योंकि जनवरी के आखिरी सप्ताह में ही कोरोना का पहला मामला आ गया था । 12 फरवरी को राहुल गांधी ने ट्वीट करके चेताया था कि भारत सरकार कोरोना वायरस को गंभीरता से नहीं ले रही । 19 फरवरी को नरेंद्र मोदी ट्वीट करते हैं कि मैं गर्म चाय के साथ लिट्टी-चोखा का मजा ले रहा हूँ । यानी कि 2 महीने तक प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस को गंभीरता से नहीं लिया और अचानक देश में लाॅकडाउन की घोषणा करके देशवासियों को परेशानी में डाल दिया । सबसे अधिक परेशानी देश के गरीबों और मजदूरों को हुई । इस बात का अनुमान इस देश के अमीर और सरकारी कर्मचारी लोग नहीं लगा सकते ।

आंबेडकरवादी साहित्यकार एवं समालोचक
संपादक - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका 
संस्थापक एवं महासचिव - 'GOAL'

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