आंबेडकरवादी साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' जी के द्वारा रचित आलोचना की पुस्तक 'आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान' हिंदी साहित्य की ऐसी पहली पुस्तक है, जो किसी की चुनौती पर मात्र एक महीने में लिखी गयी है । इस पुस्तक की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें शोधार्थियों के साथ-साथ सामान्य पाठकों की बौद्धिक क्षमता को ध्यान में रखकर लेखन किया गया है ।
भूमिका Bhoomika
यह आलोचना-ग्रंथ एक चुनौती का परिणाम है, जिसकी पृष्ठभूमि में एक लघुकथा है । दिनांक : 12 सितंबर, 2020 को मेरे एक फेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ हिंदी आलोचक माननीय कँवल भारती जी ने मेरे समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत की थी कि मैं एक आलोचना-ग्रंथ लिखकर प्रस्तुत करूँ । चूँकि मैं 'दलित साहित्य की अवधारणा' से असहमत हूँ, इसलिए मैंने 'आंबेडकरवादी साहित्य' पर विमर्श करना आरंभ किया था, जिसके परिणाम स्वरूप इस चुनौती की परिस्थिति से भी सामना हुआ । फिर भी मैंने इस चुनौती को चुनौती नहीं समझा, बल्कि माननीय भारती जी का एक आदेश समझकर उसका अनुपालन किया, जो मेरे लिए हितकर ही साबित हुआ । इसी बहाने बहुत ही कम समय में एक आलोचना-ग्रंथ का भी नाम मेरी प्रकाशित कृतियों की सूची में शामिल हो गया । इस ग्रंथ को लिखते समय सामग्री जुटाने में बहुत असुविधा नहीं हुई, क्योंकि इसके पहले 'समकालीन हिंदी दलित कविता भाग 1' और 'भाग 2' नामक पुस्तक का संपादन करने के दौरान दर्जनों वरिष्ठ साहित्यकारों से मेरा घनिष्ठ लगाव हो चुका था । उन्हीं लोगों के सहयोग से मुझे बहुत ही कम समय में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो गई । उन सहयोगी साहित्यकारों में डॉ० दामोदर मोरे जी, डॉ० विमल कीर्ति जी, डॉ० सूरजमल सितम जी, डाॅ० कुसुम वियोगी जी, कर्मशील भारती जी और पुष्पा विवेक जी आदि के नाम शामिल हैं ।
इस पुस्तक को लिखते समय मेरे सामने सबसे पहली समस्या यह थी कि मैं आरंभ कहाँ से करूँ ? मैंने अनुभव किया कि 'आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान' प्रस्तुत करने से पहले मुझे 'आंबेडकरवाद का अर्थ और परिभाषा' स्पष्ट करनी चाहिए । फिर यह अनुभव हुआ कि उससे भी पहले डॉ० 'आंबेडकर के जीवन-दर्शन और मिशन' का उल्लेख करना चाहिए । लेकिन तभी यह अनुभव हुआ कि सबसे पहले 'डॉ० आंबेडकर के जीवन-संघर्ष' का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करना चाहिए, क्योंकि आंबेडकर के जीवन-संघर्ष का ही परिणाम 'आंबेडकर का जीवन-दर्शन और मिशन' है तथा आंबेडकर के जीवन-दर्शन और मिशन से ही आंबेडकरवाद की उत्पत्ति हुई है । इसलिए इस पुस्तक में इन अध्यायों को जोड़ना अनिवार्य था । इससे प्रथम लाभ यह होगा कि सामान्य पाठकों को समझने में बहुत आसानी होगी । दूसरा लाभ यह होगा कि उन्हें आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान के साथ-साथ डाॅ० आंबेडकर जी के जीवन-संघर्ष तथा उनके दर्शन व मिशन की भी संक्षिप्त जानकारी प्राप्त हो जाएगी । वास्तव में, मैंने इस ग्रंथ को एक शोध-ग्रंथ का रूप प्रदान करने का प्रयास किया है और अध्यायीकरण करते समय शोध-प्रविधि का अनुपालन किया है ।
चूँकि बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी का जीवन-संघर्ष बहुत दीर्घ है तथा इस पुस्तक का उद्देश्य केवल उनके जीवन-संघर्ष का वर्णन करना नहीं है । इसलिए प्रथम अध्याय में, डाॅ० आंबेडकर के संपूर्ण जीवन-संघर्ष की बजाय केवल उनके प्रारंभिक जीवन-संघर्ष का वर्णन किया गया है । दूसरे अध्याय में, डॉ० आंबेडकर के जीवन-दर्शन और मिशन का विवरण दिया गया है । उनके दर्शन को चार भागों में विभाजित किया गया है - सामाजिक दर्शन, शिक्षा दर्शन, राजनीति दर्शन और धम्म दर्शन । डॉ० आंबेडकर के मिशन को पाँच भागों में विभाजित करके उनका उल्लेख किया गया है, जिनमें साहित्यिक मिशन, शैक्षिक मिशन, सामाजिक मिशन, राजनैतिक मिशन और धम्म मिशन आदि शामिल हैं । तीसरे अध्याय में, आंबेडकरवाद का अर्थ और परिभाषा का उल्लेख करते हुए आंबेडकरवाद का अन्य वादों से क्या संबंध है ? उसका विश्लेषण किया गया है । मानवतावाद, बहुजनवाद, मार्क्सवाद, नारीवाद, बुद्धवाद, सुधारवाद, आदर्शवाद, प्रकृतिवाद, यथार्थवाद, प्रयोजनवाद आदि में किनसे आंबेडकरवाद का संबंध है और किनसे नहीं है ? इसका स्पष्टीकरण किया गया है । साथ ही आंबेडकरवादी चेतना का विस्तार से विवरण दिया गया है । 'आंबेडकरवादी चेतना' और 'दलित चेतना' में क्या अंतर है ? इसका भी विश्लेषण किया गया है । चौथे अध्याय में, आंबेडकरवादी कवियों का परिचय दिया गया है । कवि-परिचय से पहले यह स्पष्ट किया गया है कि आंबेडकरवादी कवि किसे कहा जाए ? अथवा आंबेडकरवादी कवि की क्या पहचान है ? कवि-परिचय के अंतर्गत दर्जन भर प्रमुख कवियों का दीर्घ परिचय दिया गया है तथा अन्य कवियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है । पाँचवें अध्याय में, प्रतिमान का अर्थ एवं नये प्रतिमान की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमानों का विवरण और विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है । आंबेडकरवादी कविता के सिद्धांत और वैचारिकी के अंतर्गत समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय, सामाजिक यथार्थ, पाखंड पर प्रहार, वैज्ञानिक चेतना और संघर्ष आदि का वर्णन किया गया है । आंबेडकरवादी कविता की भावाभिव्यक्ति के अंतर्गत करुणा, शील, मैत्री, प्रेम, हास्य, क्रोध, उत्साह, प्रेरणा, चेतावनी और संदेश आदि भावों का उल्लेख किया गया है । आंबेडकरवादी कविताओं की संरचना के अंतर्गत छंद, लय, तुक और अलंकार का परिचय दिया गया है तथा आंबेडकरवादी कविता में निहित बिंब और प्रतीक का विश्लेषण किया गया है । साथ ही, आंबेडकरवादी काव्य की भाषा का भी उल्लेख किया गया है । इस प्रकार आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान का स्पष्टीकरण सुव्यवस्थित और सारगर्भित ढंग से करने का प्रयास किया गया है । ✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर', 25 अक्टूबर 2020(अशोक विजयादशमी एवं धम्मदीक्षा दिवस)
पुस्तक : आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान
विधा : आलोचना
लेखक : देवचंद्र भारती 'प्रखर'
पृष्ठ : 264 (HB)
मूल्य : ₹650
प्रकाशक : पुष्पांजलि प्रकाशन, नई दिल्ली
संपर्क : 9899004063
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"आंबेडकरवादी साहित्य के प्रतिमान" - प्रतिमानों का मार्गदर्शक ग्रंथ
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अम्बेडकरवादी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान प्रोफेसर देवचन्द्र भारती
'प्रखर' किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । उनकी साहित्यिक प्रतिभा अद्वितीय है ।
उनके द्वारा लिखित ग्रन्थ "आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान" आंबेडकर-साहित्य एवं दर्शन का अप्रतिम सृजन है ।
बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के जीवन संघर्ष से लेकर उनके मिशन तथा संगठनों के औचित्य पर व्यापक जानकारियाँ देने वाली यह पहली पुस्तक कही जा सकती है ।
आंबेडकरवाद का अर्थ और परिभाषा, आंबेडकरवाद से अन्य प्रचलित वादों यथा मानवतावाद, बहुजनवाद, मार्क्सवाद, नारीवाद, बुद्धवाद, प्रकृतिवाद, आदर्शवाद, यथार्थवाद, प्रयोजनवद आदि के साथ-साथ आंबेडकरवादी चेतना का सुंदर विवेचन किया गया है।
'आंबेडकरवादी चेतना' शीर्षक सार्थक विचारों से समृद्ध है । पुनर्जन्म के विषय मे बुद्ध के मूल विचारों का अनुपम विश्लेषणात्मक तथ्य उजागर किये गये हैं । उपरोक्त के सम्बंध में दलित/बहुजनों के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों के विचारों की तार्किक शक्ति को भी इस ग्रन्थ में
सम्मानजनक स्थान मिला है । यह निःसंदेह आदरणीय 'प्रखर' जी की वैचारिक परिपक्वता का प्रतीक है ।
पूर्वकालिक तथा मौजूदा कवियों के सम्बंध में 'प्रखर' जी की सोच तथा बहुजन साहित्य में उनकी उपादेयता के सम्बंध में भी व्यापक प्रकाश डाला गया है ।
कुल मिलाकर यह पुस्तक शोध की दृष्टि से भी ज्ञानप्रद एवं लाभकारी है । विपुल ज्ञान के लिए सभी सुधी मित्रों के पास इस पुस्तक का होना आवश्यक ही नहीं, बल्कि अपरिहार्य भी है ।
इस पुस्तक के सम्बंध में मेरे विचार उस सीमा तक प्रस्तुत है जहाँ तक मैं अध्ययन कर कर पाया हूँ । शेष अगली किस्तों में । ध्यान रहे, ये मेरे अपने विचार हैं, इस पुस्तक की समीक्षा नहीं है ।
✍️ एस. एन. प्रसाद
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
आयुष्मान देवचंद्र भारती प़खर जी, कवि, साहित्यकार समीक्षक समालोचक पर गर्व है। अनंत मंगल कामनाओं सहित बधाई। जय भीम नमो बुद्धाय।
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