राजभाषा की गरिमा

प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत गीत, नृत्य, संगीत, नाटक आदि के अतिरिक्त संभाषणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । विद्यालयों में संभाषण की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर संभाषण-संग्रह की पुस्तक 'देशप्रेम' की रचना की गयी है । इस पुस्तक के लेखक प्रख्यात साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' हैं । प्रस्तुत है इस पुस्तक से एक संभाषण ।

राजभाषा की गरिमा Rajbhasha Ki Garima

हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है । संविधान के अनुसार हमें अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान करना चाहिए । हम भले ही अन्य भाषाओं का ज्ञान अर्जन करें, किंतु दैनिक जीवन में अपनी राष्ट्रभाषा का प्रयोग करें, ताकि जीवंत रह सके । आज पूरा भारत हिंदी को पीछे छोड़कर, अंग्रेजी के पीछे पड़ा है । इससे अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं, अपमान होता है । भारत वासियों द्वारा अंग्रेजी को हिंदी से अधिक महत्व देना यह प्रमाणित करता है कि इन्हें राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम नहीं, अर्थात् इनमें देशप्रेम की भावना नहीं ।

हिंद की जनता हिंदी का तिरस्कार कर रही,
अंग्रेजों की भाषा का सत्कार कर रही ।
जनता तो एक भेड़ है इसको छोड़ो 'प्रखर'
यह हरकत तो भारत की सरकार कर रही ।।

सच तो यह है कि अंग्रेजी भाषा हिंदी से श्रेष्ठ तो दूर, हिंदी की बराबरी के भी योग्य नहीं है । हिंदी एक पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है जबकि अंग्रेजी एक और अवैज्ञानिक भाषा है । अंग्रेजी के स्वर और व्यंजन का कोई एक उच्चारण निश्चित नहीं, जबकि हिंदी के प्रत्येक स्वर और व्यंजन का उच्चारण निश्चित है । उदाहरण स्वरुप हिंदी में 'आ' की मात्रा से केवल 'आ' ही होता है 'ए' या 'ऐ' नहीं, जबकि अंग्रेजी में 'जी-ए-टी-ई' 'गेट' होता है और 'सी-ए-टी' 'कैट' होता है । जिन लोगों को भाषाशास्त्र का ज्ञान नहीं, वे प्रश्न करते हैं कि यदि अंग्रेजी भाषा सर्वश्रेष्ठ नहीं तो  अंतर्राष्ट्रीय कैसे हो गई ? इसका उत्तर यही है कि अंग्रेज शासकों का पूरे विश्व पर साम्राज्य रहा है, जिसके कारण इनकी भाषा अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार भी पूरे विश्व में है । क्षेत्र विस्तार के कारण ही अंग्रेजी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का पद दिया गया है ।

हिंदी सच्ची है और अच्छी भी अंदर से,
दुनिया में इसका असर है बाहर से कम सही ।
अंग्रेजी का असर भले ही दुनिया भर में है पर
सच यही है कि अंग्रेजी अंदर से कुछ नहीं ।।

हमारा कहना यह नहीं है कि भारतवासी अंग्रेजी का अध्ययन करना छोड़ दें । बल्कि यह कहना है कि हम अपने वार्तालाप में हिंदी का अधिकांश प्रयोग करें, जिससे आगामी पीढ़ी भी हिंदी सदा परिचित रहे । इस समय राष्ट्रभाषा को जीवित रखने के लिए अनेकों सरकारी कर्मचारी, समाजसेवी और साहित्यकार प्रयत्नशील हैं । समय-समय पर 'राजभाषा' पत्रिका का भी संपादन होता रहता है । अतः सभी भारतीयों से निवेदन है कि वे भी सहयोग प्रदान करें ।

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