आंबेडकरवादी काव्य की प्रवृत्तियाँ


जिसे लोग दलित कविता कहते हैं, उसे अब  आंबेडकरवादी कविता कहा जाने लगा है । नाम के साथ-साथ आंबेडकरवादी कविता का स्वरूप भी बहुत कुछ बदल चुका है । इसलिए आंबेडकरवादी कविता को नये दृष्टिकोण के साथ देखने, परखने और समझने की आवश्यकता है । आंबेडकरवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं :

(क) समता -

सामाजिक विषमता से पीड़ित होकर बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी ने समतामूलक समाज की स्थापना करने का लक्ष्य बनाया था । इसके लिए उन्होंने 'भवतु सब्ब मंगलम्' के दर्शन पर आधारित बौद्ध धम्म की अनिवार्यता पर बल दिया था । डॉ० आंबेडकर जी से पहले ही संत शिरोमणि गुरु रविदास जी ने 'बेगमपुरा' शहर की कल्पना करते हुए " ऐसा चाहू राज मैं/जहाँ मिले सबन को अन्न/छोट-बड़ सब सम बसें/रैदास रहें प्रसन्न । " साखी के माध्यम से समतामूलक समाज के पक्ष में अपना विचार व्यक्त किया था । सभी बहुजन महापुरुषों ने सामाजिक समता के लिए आजीवन संघर्ष किया था । इस संदर्भ में संत कबीर, ज्योतिबा फुले, पेरियार रामास्वामी, नारायण गुरु, संत गाडगे आदि का नाम स्मरणीय है । आंबेडकरवादी कवि इसी विचारधारा के पोषक हैं और अपने इस दृष्टिकोण को वे अपनी कविताओं में भी अभिव्यक्त करते हैं । डाॅ० एन० सिंह जी अपनी कविता 'आओ साथ बढ़ें' में अभिजनों को संबोधित करते हुए कहते हैं :

हमारे लिए जूते का महत्व 
वही है 
तुम्हारे लिए जो है 
रामनामी का
आओ समानता का यह 
तार पकड़ें
एकता के सूत्र गढ़ें 
साथ बढ़ें । [1]

(ख) स्वतंत्रता -

बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी ने बहुजन समाज के लोगों को दासता से मुक्त करने के लिए कठिन संघर्ष किया था । उन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा' नामक संगठन बनाकर बहिष्कृत लोगों को मानवाधिकार दिलाने हेतु आंदोलन किया था । भारतीय संविधान में उन्होंने देश के सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया है । सदियों से वंचित स्त्रियों को भी उन्होंने शिक्षा का अधिकार दिलाया । स्त्रियाँ भी वर्जनाओ से मुक्त होकर अपने जीवन को इच्छानुसार जीने के लिए स्वतंत्र हो गईं हैं । सुदेश कुमार 'तनवर' जी ने अपनी कविता 'मैं हैरान हूँ' के माध्यम से स्त्रियों को दासता प्रदान करने वाले लोगों और ग्रंथों के विरुद्ध उनकी अनदेखी पर चिंता व्यक्त की है ।

मैं हैरान हूँ 
यह सोचकर 
किसी औरत ने उठाई नहीं उंगली 
तुलसी पर 
जिसने कहा -
" ढोल गँवार शुद्र पशु नारी 
ये सब ताड़ना के अधिकारी । "
मैं हैरान हूँ 
किसी औरत ने 
क्यों जलाई नहीं मनुस्मृति 
पहनाई जिसने उन्हें 
गुलामी की बेड़ियाँ । [2]

(ग) बंधुत्व -

आंबेडकरवादी कवि बंधुत्व की भावना के प्रचारक हैं । वे आपसी मतभेद मिटाकर परस्पर गले लगने की बात करते हैं । आंबेडकरवादी कवियों की दृष्टि में न कोई बड़ा है, न कोई छोटा है । वे भेदभाव की भावना के विरोधी हैं तथा समानता की भावना के समर्थक हैं । अपनी कविता 'हिंदू' में डॉ० एन० सिंह जी हिंदुओं के विषमतापूर्ण व्यवहार से क्षुब्ध होकर कहते हैं  :

करुणा 
मैत्री 
बंधुत्व 
समता
इनके 
शब्दकोश में तो है 
व्यवहार में 
नहीं । [3]

(घ) न्याय -

वंचित लोगों के साथ सदैव अन्याय होता रहा है । वर्तमान में भी उन लोगों के साथ शोषण, उत्पीड़न और बलात्कार जैसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं । आर्थिक और सामाजिक रुप से निर्बल होने के कारण उन लोगों को न्याय नहीं मिल पाता है । आंबेडकरवादी कवियों ने अपनी कविताओं में सामाजिक न्याय के पक्ष में अपना स्वर प्रबल किया है । ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की कविता 'खामोश आहटें' में इसी प्रकार की भावाभिव्यक्ति है :

कभी नहीं माँगी बलिश्त भर जगह 
नहीं माँगा आधा राज भी 
माँगा है सिर्फ न्याय 
जीने का हक 
थोड़ा-सा अकाश । [4]

(ड़) सामाजिक यथार्थ -

हिंदी के अभिजन कवियों की तरह कविताओं में कल्पना का मिश्रण करना और शब्दजाल में उलझाना आंबेडकरवादी कवियों की प्रवृत्ति नहीं है । वे सामाजिक यथार्थ का सटीक चित्रण बिल्कुल सरल भाषा में करते हैं, जिससे कि सामान्य पाठक भी उनके कहने का आशय सरलता से समझ सकें । भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों, भेदभाव की भावना और विषमता के कटु व्यवहार से त्रस्त आंबेडकरवादी कवियों ने अपनी मानसिक पीड़ा को खुलकर व्यक्त किया है । अरविंद भारती जी ने अपनी कविता 'भेद' में जातिगत भेदभाव का यथार्थ चित्रण किया है ।

शहर हो या गाँव 
राजा हो या फकीर 
पुकारे जाते हैं वे सदैव 
पंडित जी 
गुप्ता जी 
लाला जी 
ठाकुर साहब 
और 
एक हम 
अफसर हों या चपरासी 
गाँव में रहें या शहर 
खटकते हैं उन्हें हमेशा 
उनकी नजर में है सदैव 
भंगी, चमार, धोबी, खटीक । [5]

(च) पाखण्ड पर प्रहार -

समाज से अंधविश्वास व पाखंड को दूर करना तथा विज्ञान का प्रचार-प्रसार करना आंबेडकरवादी कवियों का प्रमुख उद्देश्य है । धार्मिक कर्मकांडों ने बहुजन समाज के विकास में सदैव अवरोध उत्पन्न किया है । वर्तमान में भी निर्धन लोग अपने आय का अधिकांश धन पूजा-पाठ और अन्य अनावश्यक परंपराओं के पालन में खर्च कर देते हैं । सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि हिंदू धर्म के ठेकेदार तथाकथित पुरोहित कर्मकांड से प्राप्त धन से जीवन का आनंद लेते हैं और धर्म के नाम पर वे भोली-भाली जनता का शोषण करते हैं । ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने अपनी कविता 'शायद आप जानते हों' में अंधविश्वास पर प्रहार किया है और साथ ही परोक्ष रूप से पुनर्जन्म की अवधारणा पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है । उदाहरण :

गंगा किनारे
कोई वटवृक्ष ढूँढकर
भागवत का पाठ कर लो
आत्म तुष्टि के लिए
कहीं अकाल मृत्यु के बाद
भयभीत आत्मा
भटकते - भटकते
किसी कुत्ते या सूअर की मृत देह में
प्रवेश न कर जाए
या फिर पुनर्जन्म की लालसा में
किसी डोम या चूहड़े के घर
पैदा न हो जाए !
चूहड़े या डोम की आत्मा
ब्रह्म का अंश क्यों नहीं है
मैं नहीं जानता
शायद आप जानते हों ! [6]

(छ) वैज्ञानिक चेतना -

इस वैज्ञानिक युग में पत्थर और वृक्ष की पूजा करना अज्ञानता का लक्षण है । यह सच है कि मनुष्य के लिए पर्वत, नदी और वृक्ष आदि सभी बहुत ही उपयोगी हैं, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि मनुष्य उनमें देवता का वास समझकर उनकी पूजा करे । प्राचीन समय में मनुष्य का उतना बौद्धिक विकास नहीं हुआ था कि वह प्राकृतिक रहस्यों को समझ सके, इसलिए मनुष्य ने प्रकृति की पूजा करना आरंभ किया था । वर्तमान में प्रकृति के लगभग सभी रहस्यों का भेद खुल गया है, इसलिए प्रकृति-पूजा करना अपनी बुद्धिहीनता का परिचय देना है । 'नीम का बिरवा' कविता में जी०सी० लाल 'व्यथित' जी ने अपनी वैज्ञानिक चेतना का परिचय दिया है ।

दरवाजे पर की नीम 
बतियाती रहतीं मोहल्ले भर की औरतें 
रहती हैं इसमें शीतला देवी 
काट डाला उसे 
उस दिन 
चढा़ते-चढा़ते उस पर जल 
झुकाते-झुकाते सर 
फेल हो गया हाईस्कूल की परीक्षा में 
जिस दिन । [7]

(ज) संघर्ष -

बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी ने अपनी विषम परिस्थितियों से आजीवन संघर्ष किया । उन्होंने अपने जीवन में जो भी कुछ प्राप्त किया, वह कठिन संघर्ष करके ही प्राप्त किया । उनका जीवन-संघर्ष हर आंबेडकरवादी व्यक्ति के लिए प्रेरणा है । अफसोस, आजकल बहुजन समाज के कुछ लोग राजनीति करने के लिए सारे हथकंडे अपनाते रहते हैं । लोगों ने सामाजिक विषमता से हारकर आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला का समर्थन और प्रशंसा करके उसे बहुजन युवकों की दृष्टि में नायक बना दिया है । जी०सी० लाल 'व्यथित' जी ने अपनी कविता 'गरियाता शैतान' में रोहित वेमुला और पायल तड़वी के प्रति शिकायत प्रकट की है ।

शिकायत तुमसे है 
रोहित वेमुला 
पायल तड़वी 
मरना नहीं था वाजिब 
टकराये क्यों नहीं 
शैतान की उन नस्लों से । [8]

(क) करुणा -

आंबेडकरवादी कवियों का संबंध वंचित वर्ग से है । उन्होंने अपने जीवन में कई प्रकार के अभावों का दंश झेला है । इसलिए वे दीन-दुखियों की दयनीय दशा को देखकर द्रवित हो जाते हैं । मोहनदास नैमिशराय जी ने अपनी कविता 'खून और शहद' में जूठी पत्तल पर पड़े जूठे भोजन के लिए भूखे बच्चों और कुत्तों के बीच के संघर्ष का करुण चित्रण किया है ।

एक ओर से कुत्तों के बच्चे 
दूसरी ओर से इंसानों के बच्चे 
झपट पड़े, टूट पड़े अपनी भूख के लिए 
पर हुआ वही, इंसान और कुत्ता में लड़ाई 
छिड़ बैठी उन पत्थरों पर जूठे खाने पर 
रिस रहा था खून 
उन इंसानों के बच्चों के माँस से 
और चाट रहे थे 
अपना ही खून समझ वे शहद । [9]

(ख) शील -

आंबेडकरवादी कवि बौद्ध धम्म का अनुपालन करते हैं । वे पंचशील के अनुसार आचरण करते हैं । आंबेडकरवादी कवियों के लिए 'शील' उनके सिद्धांत का अंग है । शीलों के हनन के कारण ही समाज में चरित्रहीनता उत्पन्न होती है और निर्लज्जता को प्रोत्साहन मिलता है । इसलिए आंबेडकरवादी कवि शीलों को नष्ट करने वाले विचारों और कार्यों का विरोध करते हैं । डॉ० एन० सिंह जी ने अपनी कविता 'अनैतिक' में हिंदुओं के खजुराहो मंदिर को नैतिकता के विरुद्ध घोषित किया है ।

जिस धर्म के 
युवक-युवतियों 
प्रौढ़ स्त्री और पुरुष
नित्य प्रति दर्शन कर
करते हैं श्रद्धापूर्वक उपासना 
योनि में प्रविष्ट लिंग की 
उसी धर्म में 
उकेरे जा सकते हैं
संभोग क्रिया के विभिन्न आसन 
खजुराहो की दीवारों पर । [10]

(ग) मैत्री -

तथागत गौतम बुद्ध ने मैत्री का भी उपदेश दिया था । आंबेडकरवादी कवि मैत्रीपूर्ण व्यवहार के पक्षधर हैं । वे सभी मनुष्यों को एक समान समझते हैं । उनकी दृष्टि में धनी-निर्धन सभी बराबर हैं । समता के आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए सामाजिक भेदभाव को छोड़कर मैत्री-भाव को ग्रहण करना अनिवार्य है । डॉ० जयप्रकाश कर्दम जी अपनी कविता 'मनुष्यता' में सामाजिक बदलाव के लिए हर जाति, हर वर्ग के लोगों का आह्वान करते हैं ।

आओ, मनुष्यता के हित-चिंतकों
तमाम बुद्धिजीवियों 
प्रगतिशील साथियों आओ
अपने गलों में लटके 
जनेऊ तोड़कर आओ 
अपनी चोटियों में लगी 
गाँठें खोलकर आओ 
माथों पर लगे 
त्रिपुंड मिटाकर आओ
समता और न्याय के सिपहसालारों, आओ
आओ, सब मिलकर
एक मजबूत रस्सी में बदल जाएँ
फंदा बनकर
फासीवाद के गले में लटक जाएँ । [11]

(घ) प्रेम -

जिस प्रकार मैत्री और करुणा मानवीय मूल्य हैं, उसी प्रकार प्रेम भी एक मानवीय मूल्य है । 'प्रेम' मनुष्य के जीवन का अनिवार्य अंग है । हर मनुष्य प्रेम की अभिलाषा रखता है । प्रेम के कई रूप हैं, जैसे - पारिवारिक प्रेम, सामाजिक प्रेम, साहित्यिक प्रेम और देशप्रेम आदि । इन सबसे अलग दांपत्य प्रेम (पति पत्नी का प्रेम) है । सामान्यतः जब भी प्रेम की बात की जाती है, तो लोगों के मन में जिस प्रेम का भाव उत्पन्न होता है, वह है - अविवाहित प्रेम । अविवाहित प्रेम यदि मर्यादा में रहकर किया जाए और उसका उद्देश्य विवाह हो, तभी उसे नैतिक कहा जाता है अन्यथा उसे अनैतिक (अवैध) संबंध का नाम दिया जाता है । आंबेडकरवादी कवियों की दृष्टि में नैतिक प्रेम ही महत्वपूर्ण है । वे उसी प्रेम के पक्ष में हैं, जो सामाजिक मर्यादा को ध्यान में रखकर किया जाता है । आंबेडकरवादी कवि अंतर्जातीय विवाह के पक्षधर हैं । उन्हें प्रेम में ऊँच-नीच और जाति-पांति की वर्जना स्वीकार नहीं है । अरविंद भारती जी ने अपनी कविता 'प्रेम' में अंतर्जातीय प्रेम की भावाभिव्यक्ति की है ।

मैंने पूछा उससे 
घर से मक्खन लगा 
आलू-पराठा जो लाती हो तुम
साथ बैठकर दलित के 
खाती हो तुम 
पता चला परिजनों को तो 
परिणाम जानती हो ?
वह बोली, 
खाते समय बात नहीं करते 
हँसते हुए उसने 
आधा कौर मुझे खिलाया 
आधा खुद खा लिया । [12]

(ड़) हास्य -

यह सच है कि वंचित वर्ग के लोग सदियों तक सताये गये हैं । वर्तमान में भी उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में संतोषजनक सुधार नहीं हुआ है । लेकिन साथ ही यह भी सच है कि मनुष्य के मन में भाव-परिवर्तन होना स्वाभाविक है । मनुष्य एक ही भाव में रहकर एक दिन नहीं व्यतीत कर सकता है, पूरा जीवन बिताने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है । मनुष्य अपनी दुखद स्थिति में भी हँसने का बहाना ढूँढ ही लेता है । व्यक्ति रो-रोकर मर तो सकता है, लेकिन जी नहीं सकता है । जीने के लिए हँसना ही पड़ता है । वंचित वर्ग के स्त्री-पुरुष श्रम करते हुए भी हँसी-ठिठोली कर लेते हैं । आंबेडकरवादी कवि नंदलाल कौशल जी ने अपनी कविता 'स्वर्ग की राह' में पाखंडी ब्राह्मणों के कर्मकांड पर व्यंग किया है, जिसमें हास्य रस का स्पष्ट दर्शन होता है ।

तेरहवें दिन पंडितों और पुरोहित को खूब दान दिया
वैतरिणी पार कराने को गोदान भी किया, 
भोज में करीब पाँच सौ लोगों ने खाना खाया,  
पिताजी की खूब जय-जयकार मनाया,
पिताजी को स्वर्ग मिला या नहीं, 
अभी तक संदेश नहीं आया, 
पर उनको वहाँ तक पहुँचाने में जो कर्ज हुआ, 
उससे उबर नहीं पाया । [13]

(च) क्रोध -

यदि अनावश्यक रूप से क्रोध किया जाए, तो वह बुरा है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर समय और परिस्थिति के अनुकूल किया जाने वाला क्रोध बुरा नहीं होता है । बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी भी कभी-कभी क्रोधित हो जाते थे, लेकिन उनका क्रोध समाज के हित में था । मोहनदास नैमिशराय जी समाज में हो रहे अत्याचार को देखकर क्रोधित होते हैं । उन्होंने अपनी कविता 'ज्वालामुखी' में इस भाव को अभिव्यक्त किया है ।

बहता हुआ लहू 
दौड़ती हुई छायाएँ 
दर्दनाक मौत, बलात्कार की 
निर्दयी घटनाएँ 
मैं ज्वालामुखी बनता चला 
जा रहा हूँ । [14]

(छ) उत्साह -

वीर रस का स्थायी भाव है - 'उत्साह' । आंबेडकरवादी कविताओं में वीर रस का भी दर्शन होता है । जहाँ कहीं भी आंबेडकरवादी कवियों ने अपने पूर्वजों की वीरता का स्मरण करके शत्रु-पक्ष को ललकारा है अथवा चेतावनी दी है, वहाँ पर उत्साह का भाव दृष्टिगत है । डॉ० एन० सिंह जी ने अपनी कविता 'भ्रम छोड़ो' में बकरियों के शेरनी की तरह फुँफकारने का चित्रण किया है । 

तुम अगर मेरी झोपड़ी चलाओगे 
तो तुम्हारा महल भी 
सुरक्षित नहीं रह पाएगा
अब तुम इस भ्रम को छोड़ दो
कि एक गड़रिया 
सैकड़ों बकरियों को हाँकता ही है
अब इन बकरियों ने पी लिया है
शिक्षा रूपी शेरनी का दूध
इसलिए अब ये फुँफकारने लगी हैं । [15]

(ज) प्रेरणा -

आंबेडकरवादी कवियों का एक मुख्य उद्देश्य आंबेडकरवाद का प्रचार-प्रसार करना भी है । वे बुद्ध के धम्म और आंबेडकरवादी विचारधारा से जुड़ने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं । इसलिए उनकी कविताओं में प्रेरणा-भाव भी समाहित होता है । आंबेडकरवादी कवियों की प्रेरणा सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक और शैक्षिक आदि अनेक प्रकार की होती है । अपनी कविता 'सफदर हाशमी की याद में' के द्वारा नैमिशराय जी ने साहित्यकारों और कलाकारों को एकता का संदेश दिया है । वे कहते हैं :

मेरे दोस्तों !
एक हो जाओ 
अभी भी समय है 
तुम्हें 
आने वाली पीढ़ी के लिए 
क्रांति का दस्तावेज बनना है । [16]

(झ) चेतावनी 

किसी भी पथ पर चलने वाले पथिकों को उस पथ पर मिलने वाली बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है । पथ-प्रदर्शकों का यह दायित्व होता है कि वे नये पथिकों को सम्यक मार्गदर्शन प्रदान करें । इसी के साथ ही वे उन्हें कुछ अनुचित कार्यों को न करने की चेतावनी भी दें, जिससे वे सावधानीपूर्वक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकें । आंबेडकरवादी कवियों ने बहुजन समाज के लोगों को शोषक वर्ग से सतर्क रहने के लिए सदैव चेतावनी दी है । डॉ० जयप्रकाश कर्दम जी अपनी कविता 'भगवान मत बनाओ' में डाॅ० आंबेडकर जी के अनुयायियों को अंधश्रद्धा से दूर रहने की चेतावनी देते हैं ।

आंबेडकर करोड़ों दलितों की
अस्मिता का प्रतीक है 
उनके जीवन का संगीत है 
आंबेडकर एक जीवंत विचार है 
श्रद्धा के आवेग में 
जीवंत विचार को मत दबाओ 
आंबेडकर को भगवान मत बनाओ । [17]

(ञ) संदेश

आंबेडकरवादी कवियों ने संदेशपरक कविताएँ भी लिखी हैं । उन्होंने मनुष्य को उत्कृष्ट जीवन जीने का महत्वपूर्ण नैतिक संदेश दिया है । आंबेडकरवादी कवियों द्वारा दिये जाने वाले संदेश मानवाधिकार, वैज्ञानिक चेतना और मानवीय मूल्यों पर आधारित हैं । 'कुछ तो सीख' कविता के द्वारा 'वियोगी' जी ने बहुजनों को प्रकृति से सीखने का संदेश दिया है ।

मुझसे नहीं 
किसी और से न सही 
किंतु प्रकृति से सीख 
कुछ तो सीख 
एक सूरज निकलने को 
असंख्य चाँद-सितारों को 
डूबना पड़ता है । [18]


संदर्भ :
[1] प्रतिनिधि कविताएँ : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 44, प्रकाशक - स्वराज प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2020
[2] न्याय तलाशते लोग : जी०सी० लाल 'व्यथित', पृष्ठ 44-45, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, प्रथम संस्करण 2020
[3] प्रतिनिधि कविताएँ : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 76, प्रकाशक - स्वराज प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2020
[4] बस्स ! बहुत हो चुका : ओमप्रकाश वाल्मीकि, पृष्ठ 61, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 1997
[5] वे लुटेरे हैं : अरविंद भारती, पृष्ठ 53, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, प्रथम संस्करण 2019
[6] बस्स ! बहुत हो चुका : ओमप्रकाश वाल्मीकि, पृष्ठ 13, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 1997
[7] न्याय तलाशते लोग : जी०सी० लाल 'व्यथित', पृष्ठ 24, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, प्रथम संस्करण 2020
[8] वही, पृष्ठ 51
[9] आग और आंदोलन : मोहनदास नैमिशराय, पृष्ठ 24, प्रकाशक - नटराज प्रकाशन दिल्ली, द्वितीय संस्करण 2013
[10] प्रतिनिधि कविताएँ : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 89, प्रकाशक - स्वराज प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2020
[11] तिनका तिनका आग : डाॅ० जयप्रकाश कर्दम, पृष्ठ 64, प्रकाशक - अमन प्रकाशन कानपुर, द्वितीय संस्करण 2019
[12] वे लुटेरे हैं : अरविंद भारती, पृष्ठ 70, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, प्रथम संस्करण 2019
[13] कौशल के हास्य व्यंग्य : नंदलाल कौशल, पृष्ठ 28, प्रकाशक - भारतीय जन लेखक संघ लखनऊ, प्रथम संस्करण 2017
[14] आग और आंदोलन : मोहनदास नैमिशराय, पृष्ठ 29, प्रकाशक - नटराज प्रकाशन दिल्ली, द्वितीय संस्करण 2013
[15] प्रतिनिधि कविताएँ : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 37-38, प्रकाशक - स्वराज प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2020
[16] आग और आंदोलन : मोहनदास नैमिशराय, पृष्ठ 39, प्रकाशक - नटराज प्रकाशन दिल्ली, द्वितीय संस्करण 2013
[17] तिनका तिनका आग : जयप्रकाश कर्दम, पृष्ठ 24, प्रकाशक - अमन प्रकाशन कानपुर, द्वितीय संस्करण 2019
[18] लाल बत्ती : डॉ० कुसुम वियोगी, पृष्ठ 120, प्रकाशक - अक्षर पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स दिल्ली, प्रथम संस्करण 2019

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