डॉ० सूरजमल सितम जी एक क्रांतिकारी बौद्ध-आंबेडकरवादी विद्वान और साहित्यकार हैं । आदरणीय डॉ० सितम जी के नाम, विचार और साहित्य से परिचित होने का अवसर मुझे वर्ष 2020 के फरवरी माह में मिला । 9 फरवरी को संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की जयंती थी । मेरे गाँव कटसिल, चंदौली (उत्तर प्रदेश) में 12 फरवरी को 'संत रविदास महासम्मेलन' का आयोजन किया गया था । उसी के उपलक्ष मैं अपने एक अनुज के साथ सीर-गोवर्धनपुर, वाराणसी में स्थित 'गुरु रविदास धाम' के मेले में गया था, जहाँ पर सुप्रसिद्ध गायक, गीतकार और बौद्धाचार्य आदरणीय सुखबीर सिंह बौद्ध जी से उनकी दुकान पर मेरी मुलाकात हुई । आदरणीय बौद्ध जी वर्ष 2015 में मेरे गाँव में आयोजित 'गुरु रविदास महोत्सव' में मुख्य अतिथि के रूप में आगमन किये थे, अतः हम दोनों एक-दूसरे से भली-भाँति परिचित थे । आदरणीय बौद्ध जी से कुशल-समाचार का आदान-प्रदान होने के पश्चात मैंने उनकी दुकान से पंचशील बैज, दुपट्टा आदि के साथ कुछ पुस्तकें भी खरीदी, जिनमें एक पुस्तक थी - 'बोधिसत्व गुरु रैदास और उनके आंदोलन' । उस पुस्तक का लेखक कोई और नहीं, बल्कि आदरणीय डॉ० सूरजमल सितम जी हैं ।
(क) डॉ० सूरजमल सितम : एक बौद्ध विद्वान के रूप में
घर आकर मैंने 'बोधिसत्व गुरु रैदास और उनके आंदोलन' नामक उस पुस्तक का गंभीरतापूर्वक अध्ययन किया और अनुभव किया कि आदरणीय डाॅ० सितम जी की सैद्धांतिक और साहित्यिक समझ उत्कृष्ट है । संत शिरोमणि गुरु रैदास जी के विषय में लिखी गई उनकी पुस्तक अपने भीतर व्यापक जानकारियों को समेटे हुये है । इस पुस्तक को पढ़कर संत रैदास के विषय में जितनी भ्रांतियाँ हैं, सभी दूर हो जाती हैं । इस पुस्तक का अध्ययन हर उस व्यक्ति को करना चाहिए, जो संत रैदास के विषय में सम्यक् जानकारी प्राप्त करने का इच्छुक है । इस पुस्तक में डॉ० सितम जी ने 'बौद्ध धम्म के बदलते आयाम' शीर्षक के अंतर्गत महायान, मंत्र-तंत्रयान, वज्रयान, सहजयानी सिद्धाचार्य, नाथ पंथ और बौद्ध धम्म, निर्गुण संप्रदाय आदि के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की है । उन्होंने 'गैर बौद्धों के भक्त रैदास' शीर्षक के अंतर्गत संत रैदास को भक्त मानने वाले लोगों की विचारधारा का खंडन किया है । उन्होंने ऐतिहासिक और तार्किक आधार पर संत रैदास जी को 'संत' के रूप में सिद्ध किया है । संत रैदास जी के बारे में प्रचलित समस्त भ्रांतियों का निवारण करने के पश्चात डॉ० सितम जी ने संत रैदास द्वारा किये गये भारत-भ्रमण का वर्णन किया है । संत रैदास जी ने अपने संपूर्ण जीवनकाल में वाराणसी, इलाहाबाद, नैमिषारण्य, अयोध्या, मथुरा, जयपुर, कश्मीर, गुजरात, जालंधर, मुंबई, चेन्नई, अमरकंटक, विंध्याचल, बोधगया, वैशाली, पाटलिपुत्र, श्रावस्ती, लुंबिनी, चित्तौड़ आदि स्थानों का भ्रमण किया था । इस पुस्तक में सन्निहित व्यापक जानकारियों एवं साक्ष्यों का अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि डॉ० सूरजमल सितम जी में गंभीर अध्ययन करने की प्रवृति है । उनकी लेखन शैली ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया । डॉ० सितम जी से बात करने की इच्छा हुई; पुस्तक में उनका मोबाइल नंबर लिखा हुआ था, मैंने फोन लगाया और 'सादर नमो बुद्धाय - जय भीम' से अभिवादन किया । प्रत्युत्तर में उसी अभिवादन को सुनकर मैं बहुत ही आनंदित हुआ, मैंने अपना परिचय दिया और उनसे बात करने का उद्देश्य बताया । उनसे बात करने का मेरा उद्देश्य कुछ विशेष नहीं था, बल्कि केवल जान-पहचान ही करना था । बातचीत के दौरान मैंने अनुभव किया कि वे बहुत ही सरल स्वभाव के और खुले हृदय के व्यक्ति हैं । डॉ० सितम जी उदार, विनम्र, मितभाषी और पूर्णतः नास्तिक विद्वान हैं । सिद्धांतों से समझौता करना उन्हें बिल्कुल भी स्वीकार नहीं हैं, वे अपनी विचारधारा पर अडिग रहने वाले साहित्यकार हैं । वे नकली बौद्धों की तरह बुद्ध की पूजा-अर्चना और बाबा साहेब आंबेडकर के छायाचित्र पर माल्यार्पण करने में रुचि नहीं लेते हैं । उन्हें आडंबर बिल्कुल भी पसंद नहीं है ।
(ख) डॉ० सूरजमल सितम : एक समालोचक के रूप में
जुलाई 2020 में प्रकाशित मेरे कविता-संग्रह 'दलित जागरण' के संदर्भ में आलोचनात्मक प्रतिक्रिया करने के लिए जब मैंने उनसे आग्रह किया, तो वे सहर्ष तैयार हो गये । उन्होंने 26 सितंबर 2020 को मेरे कविता-संग्रह की समीक्षा लिखकर मुझे भेजा, जिसका शीर्षक था - " पुस्तक 'दलित जागरण' मील का पत्थर है " । समालोचना लिखते समय उन्होंने मुझसे फोन पर बातचीत की थी । बातचीत के दौरान उन्होंने मेरी कविता में प्रयुक्त 'कीर्तन' शब्द और 'जागरण' शब्द के बारे में मुझसे स्पष्टीकरण प्राप्त किया तथा अपनी समालोचना में उन्होंने इन दोनों शब्दों के प्रति पाठकों में भ्रम उत्पन्न होने की संभावना का अवसान किया । 'कीर्तन' का शाब्दिक अर्थ है - कीर्ति गान । मैंने 'कीर्तन' शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में किया है । 'जागरण' शब्द का अर्थ 'जागृति' है, न कि हिंदुओं वाला 'रतजगा' । डॉ० सितम जी ने मेरे कविता-संग्रह के समालोचनात्मक लेख में मेरी कविताओं में प्रयुक्त अलंकारों का भी उल्लेख किया है । उन्होंने मेरे कविता-संग्रह में शहीद ऊधम सिंह के बारे में एक भी कविता न होने के कारण फोन पर बातचीत के दौरान चिंता प्रकट की, जिसे उन्होंने उस आलोचनात्मक लेख में व्यक्त किया है । डॉ० सूरजमल सितम जी एक ऐसे समालोचक हैं, जो किसी साहित्यकार की साहित्यिक आलोचना करते समय उसकी रचना के बारे में कोई संदेह होने पर उससे सीधे वार्तालाप करना उचित समझते हैं । उनका यह गुण उन्हें एक श्रेष्ठ समालोचक के रूप में स्थापित करता है ।
(ग) डॉ० सूरजमल सितम : एक क्रांतिकारी आंदोलनकर्ता के रूप में
नवंबर 2020 में 'आंबेडकरवादी साहित्य की अवधारणा' शीर्षक से एक आलेख लिखते समय मैंने आंबेडकरवादियों के प्रमुख लक्षण के संदर्भ में डॉ० सितम जी से फोन पर वार्तालाप किया । उन्होंने 14 अक्टूबर सन् 1956 को बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी के द्वारा बौद्ध धम्म को अंगीकार करते हुए ली गई बाईस प्रतिज्ञाओं के शुद्ध रूप पर मेरा ध्यान आकर्षित किया । डॉ० सितम जी के अनुसार, " पंचशील के अंतर्गत " मैं चोरी नहीं करूँगा " की बजाय " मैं अकुशल कर्म से विरत रहूँगा " तथा " मैं जीव-हत्या नहीं करूँगा " की बजाय " मैं प्राणी हिंसा से विरत रहूँगा " आदि वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए । डॉ० सितम जी बौद्ध धम्म के आंदोलन में बौद्ध भिक्षुओं की श्रमहीनता और सुविधाभोगी प्रवृत्ति की आलोचना करते हैं । तथाकथित आंबेडकरवादी मिशनरी लोगों द्वारा जयंतियों और अन्य समारोहों के आयोजन में लाखों रुपए का अनावश्यक अपव्यय करने पर वे क्षुब्ध होते हैं । डॉ० सितम जी बाबा साहेब आंबेडकर जी के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध कोई भी कार्य करने के पक्ष में नहीं हैं । उनकी आंबेडकरवादी दृष्टि पूर्णतः क्रांतिकारी एवं निर्दोष है ।
(घ) डॉ० सूरजमल सितम : एक सज्जन व्यक्ति के रूप में
डॉ० सूरजमल सितम जी एक विद्वान, समालोचक और क्रांतिकारी आंदोलनकर्ता के साथ-साथ एक सज्जन व्यक्ति भी है । उनके स्वभाव में बनावटीपन लेशमात्र भी नहीं है । वे किसी भी व्यक्ति को उसकी उम्र, पद और शिक्षा के आधार पर सम्मान नहीं प्रदान करते हैं, बल्कि वे उस व्यक्ति के विचार और व्यवहार को महत्व देते हैं । वे समतामूलक समाज के निर्माण में समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व के सिद्धांतों पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करते हैं । वे अपने व्यावहारिक जीवन में प्रज्ञा, शील और करुणा की प्रवृत्ति को अंगीकार करके उसका अनुपालन भी करते हैं । उनकी दृष्टि में स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध, धनी-निर्धन आदि सभी एक समान हैं । एक सज्जन व्यक्ति में जो गुण होने चाहिए, उनमें से अधिकांश गुण डॉ० सितम जी में है ।
✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर'
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, हरिनंदन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मोहरगंज, चंदौली (उत्तर प्रदेश) 232108
मो० : 9454199538
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