◾आंबेडकरवाद का अर्थ एवं परिभाषा
शब्दकोश के अनुसार 'वाद' का अर्थ है, " वह दार्शनिक सिद्धांत, जिसके अनुसार संसार की सत्ता उसी रूप में मानी जाती है, जैसी वह सामान्य मनुष्य को दृष्टिगोचर है । " [1] 'वाद' शब्द संस्कृत के 'वाक्' शब्द से बना है । 'वाक्' का अर्थ है - 'वाणी'; तथा 'वाद' का अर्थ है - कथन, सिद्धांत, विचारधारा । इस प्रकार 'आंबेडकरवाद का' अर्थ है - आंबेडकर का कथन, आंबेडकर का सिद्धांत, आंबेडकर की विचारधारा । डॉ० जयश्री शिंदे जी ने 'आंबेडकरवाद' को बहुत ही सटीक शब्दों में परिभाषित किया है । उनके अनुसार, " अपमानित, अमानवीय, वैज्ञानिक अन्याय एवं असमानता, सामाजिक संरचना से पीड़ित मनुष्य की इसी जन्म में क्रांतिकारी आंदोलन से मुक्ति करके समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व एवं न्याय के आदर्श समाज में मानव और मानव (स्त्री-पुरुष समानता) के बीच सही संबंध स्थापित करने वाली नई क्रांतिकारी मानवतावादी विचारधारा को आंबेडकरवाद कहा जाता है । " [2] डॉ० एन० सिंह जी के शब्दों में, " बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर के सिद्धांतों को मानना और उनका अनुसरण करना ही आंबेडकरवाद है । " [3] देवचंद्र भारती 'प्रखर' ने अपनी पुस्तक 'आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान' में आंबेडकरवाद को परिभाषित करते हुए लिखा है, " बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी के कथनों एवं सिद्धांतों को अपने विचार एवं व्यवहार में अंतर्निहित करना ही 'आंबेडकरवाद' कहलाता है । " [4] बाबा साहेब के क्रांतिकारी कथनों एवं सिद्धांतों के आधार पर ही उनकी विचारधारा का निश्चय किया जाता है । किसी भी महापुरुष के जीवन का अंतिम संदेश ही उसकी संपूर्ण विचारधारा का सार होता है । बाबा साहेब ने अपने जीवन के अंतिम समय में 14 अक्टूबर 1956 को धम्मदीक्षा ग्रहण करते हुए जिन बाईस प्रतिज्ञाओं की घोषणा की थी, उन बाईस प्रतिज्ञाओं के अनुपालन को ही आंबेडकरवाद का आधार माना जाता है । उन्होंने अपने जीवन के संपूर्ण अनुभवों को अपनी अंतिम पुस्तक 'बुद्ध और उनका धम्म' में समाविष्ट किया है । बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के समस्त आंदोलन तथागत बुद्ध के दार्शनिक सिद्धांतों पर आधारित थे । अतः आंबेडकरवाद को बुद्ध के धम्म से अलग करके परिभाषित नहीं किया जा सकता है । बाबा साहेब की विचारधारा में केवल तथागत बुद्ध की ही वाणी का समावेश नहीं है, बल्कि संत कबीर, संत रविदास, महामना ज्योतिराव फुले, पेरियार रामास्वामी, संत गाडगे आदि सभी समतावादी महापुरुषों के विचारों का समावेश है । इस प्रकार आंबेडकरवाद एक व्यापक दृष्टिकोण की लोककल्याणकारी और सार्वभौमिक विचारधारा है । अनीश्वरवाद, अनात्मवाद, वैज्ञानिक चेतना, समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय, प्रेम, मैत्री, करुणा, शील आदि सभी वैचारिक और व्यावहारिक गुणों से परिपूर्ण विचारधारा का नाम 'आंबेडकरवाद' है ।
◾ आंबेडकरवादी साहित्य की सामान्य प्रवृतियाँ
जिसे लोग दलित कविता कहते हैं, उसे अब आंबेडकरवादी कविता कहा जाने लगा है । नाम के साथ-साथ आंबेडकरवादी कविता का स्वरूप भी बहुत कुछ बदल चुका है । इसलिए आंबेडकरवादी कविता को नये दृष्टिकोण के साथ देखने, परखने और समझने की आवश्यकता है । आंबेडकरवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं :
◾ हिंदी का आंबेडकरवादी साहित्य
(क) समता -
सामाजिक विषमता से पीड़ित होकर बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी ने समतामूलक समाज की स्थापना करने का लक्ष्य बनाया था । इसके लिए उन्होंने 'भवतु सब्ब मंगलम्' के दर्शन पर आधारित बौद्ध धम्म की अनिवार्यता पर बल दिया था । डॉ० आंबेडकर जी से पहले ही संत शिरोमणि गुरु रविदास जी ने 'बेगमपुरा' शहर की कल्पना करते हुए " ऐसा चाहू राज मैं/जहाँ मिले सबन को अन्न/छोट-बड़ सब सम बसें/रैदास रहें प्रसन्न । " साखी के माध्यम से समतामूलक समाज के पक्ष में अपना विचार व्यक्त किया था । सभी बहुजन महापुरुषों ने सामाजिक समता के लिए आजीवन संघर्ष किया था । इस संदर्भ में संत कबीर, ज्योतिबा फुले, पेरियार रामास्वामी, नारायण गुरु, संत गाडगे आदि का नाम स्मरणीय है । आंबेडकरवादी साहित्यकार इसी विचारधारा के पोषक हैं और अपने इस दृष्टिकोण को वे अपनी रचनाओं में भी अभिव्यक्त करते हैं ।
(ख) स्वतंत्रता -
बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी ने बहुजन समाज के लोगों को दासता से मुक्त करने के लिए कठिन संघर्ष किया था । उन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा' नामक संगठन बनाकर बहिष्कृत लोगों को मानवाधिकार दिलाने हेतु आंदोलन किया था । भारतीय संविधान में उन्होंने देश के सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया है । सदियों से वंचित स्त्रियों को भी उन्होंने शिक्षा का अधिकार दिलाया । स्त्रियाँ भी वर्जनाओ से मुक्त होकर अपने जीवन को इच्छानुसार जीने के लिए स्वतंत्र हो गईं हैं ।
(ग) बंधुत्व -
आंबेडकरवादी साहित्यकार बंधुत्व की भावना के प्रचारक हैं । वे आपसी मतभेद मिटाकर परस्पर गले लगने की बात करते हैं । आंबेडकरवादी साहित्यकारों की दृष्टि में न कोई बड़ा है, न कोई छोटा है । वे भेदभाव की भावना के विरोधी हैं तथा समानता की भावना के समर्थक हैं ।
(घ) न्याय -
वंचित लोगों के साथ सदैव अन्याय होता रहा है । वर्तमान में भी उन लोगों के साथ शोषण, उत्पीड़न और बलात्कार जैसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं । आर्थिक और सामाजिक रुप से निर्बल होने के कारण उन लोगों को न्याय नहीं मिल पाता है । आंबेडकरवादी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में सामाजिक न्याय के पक्ष में अपना स्वर प्रबल किया है ।
(ड़) सामाजिक यथार्थ -
हिंदी के अभिजन साहित्यकारों की तरह साहित्य में कल्पना का मिश्रण करना और शब्दजाल में उलझाना आंबेडकरवादी साहित्यकारों की प्रवृत्ति नहीं है । वे सामाजिक यथार्थ का सटीक चित्रण बिल्कुल सरल भाषा में करते हैं, जिससे कि सामान्य पाठक भी उनके कहने का आशय सरलता से समझ सकें । भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों, भेदभाव की भावना और विषमता के कटु व्यवहार से त्रस्त आंबेडकरवादी साहित्यकारों ने अपनी मानसिक पीड़ा को खुलकर व्यक्त किया है ।
(च) पाखण्ड पर प्रहार -
समाज से अंधविश्वास व पाखंड को दूर करना तथा विज्ञान का प्रचार-प्रसार करना आंबेडकरवादी साहित्यकारों का प्रमुख उद्देश्य है । धार्मिक कर्मकांडों ने बहुजन के विकास में सदैव अवरोध उत्पन्न किया है । वर्तमान में भी निर्धन लोग अपने आय का अधिकांश धन पूजा-पाठ और अन्य अनावश्यक परंपराओं के पालन में खर्च कर देते हैं । सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि हिंदू धर्म के ठेकेदार तथाकथित पुरोहित कर्मकांड से प्राप्त धन से जीवन का आनंद लेते हैं और धर्म के नाम पर वे भोली-भाली जनता का शोषण करते हैं ।
(छ) वैज्ञानिक चेतना -
इस वैज्ञानिक युग में पत्थर और वृक्ष की पूजा करना अज्ञानता का लक्षण है । यह सच है कि मनुष्य के लिए पर्वत, नदी और वृक्ष आदि सभी बहुत ही उपयोगी हैं, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि मनुष्य उनमें देवता का वास समझकर उनकी पूजा करे । प्राचीन समय में मनुष्य का उतना बौद्धिक विकास नहीं हुआ था कि वह प्राकृतिक रहस्यों को समझ सके, इसलिए मनुष्य ने प्रकृति की पूजा करना आरंभ किया था । वर्तमान में प्रकृति के लगभग सभी रहस्यों का भेद खुल गया है, इसलिए प्रकृति-पूजा करना अपनी बुद्धिहीनता का परिचय देना है ।
(ज) संघर्ष -
बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी ने अपनी विषम परिस्थितियों से आजीवन संघर्ष किया । उन्होंने अपने जीवन में जो भी कुछ प्राप्त किया, वह कठिन संघर्ष करके ही प्राप्त किया । उनका जीवन-संघर्ष हर आंबेडकरवादी व्यक्ति के लिए प्रेरणा है । अफसोस, आजकल बहुजन समाज के कुछ लोग राजनीति करने के लिए सारे हथकंडे अपनाते रहते हैं । लोगों ने सामाजिक विषमता से हारकर आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला का समर्थन और प्रशंसा करके उसे बहुजन युवकों की दृष्टि में नायक बना दिया है ।
(क) करुणा -
आंबेडकरवादी कवियों का संबंध वंचित वर्ग से है । उन्होंने अपने जीवन में कई प्रकार के अभावों का दंश झेला है । इसलिए वे दीन-दुखियों की दयनीय दशा को देखकर द्रवित हो जाते हैं ।
(ख) शील -
आंबेडकरवादी कवि बौद्ध धम्म का अनुपालन करते हैं । वे पंचशील के अनुसार आचरण करते हैं । आंबेडकरवादी कवियों के लिए 'शील' उनके सिद्धांत का अंग है । शीलों के हनन के कारण ही समाज में चरित्रहीनता उत्पन्न होती है और निर्लज्जता को प्रोत्साहन मिलता है । इसलिए आंबेडकरवादी कवि शीलों को नष्ट करने वाले विचारों और कार्यों का विरोध करते हैं ।
(ग) मैत्री -
तथागत गौतम बुद्ध ने मैत्री का भी उपदेश दिया था । आंबेडकरवादी कवि मैत्रीपूर्ण व्यवहार के पक्षधर हैं । वे सभी मनुष्यों को एक समान समझते हैं । उनकी दृष्टि में धनी-निर्धन सभी बराबर हैं । समता के आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए सामाजिक भेदभाव को छोड़कर मैत्री-भाव को ग्रहण करना अनिवार्य है ।
(घ) प्रेम -
जिस प्रकार मैत्री और करुणा मानवीय मूल्य हैं, उसी प्रकार प्रेम भी एक मानवीय मूल्य है । 'प्रेम' मनुष्य के जीवन का अनिवार्य अंग है । हर मनुष्य प्रेम की अभिलाषा रखता है । प्रेम के कई रूप हैं, जैसे - पारिवारिक प्रेम, सामाजिक प्रेम, साहित्यिक प्रेम और देशप्रेम आदि । इन सबसे अलग दांपत्य प्रेम (पति पत्नी का प्रेम) है । सामान्यतः जब भी प्रेम की बात की जाती है, तो लोगों के मन में जिस प्रेम का भाव उत्पन्न होता है, वह है - अविवाहित प्रेम । अविवाहित प्रेम यदि मर्यादा में रहकर किया जाए और उसका उद्देश्य विवाह हो, तभी उसे नैतिक कहा जाता है अन्यथा उसे अनैतिक (अवैध) संबंध का नाम दिया जाता है । आंबेडकरवादी कवियों की दृष्टि में नैतिक प्रेम ही महत्वपूर्ण है । वे उसी प्रेम के पक्ष में हैं, जो सामाजिक मर्यादा को ध्यान में रखकर किया जाता है । आंबेडकरवादी कवि अंतर्जातीय विवाह के पक्षधर हैं । उन्हें प्रेम में ऊँच-नीच और जाति-पांति की वर्जना स्वीकार नहीं है ।
(ड़) हास्य -
यह सच है कि वंचित वर्ग के लोग सदियों तक सताये गये हैं । वर्तमान में भी उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में संतोषजनक सुधार नहीं हुआ है । लेकिन साथ ही यह भी सच है कि मनुष्य के मन में भाव-परिवर्तन होना स्वाभाविक है । मनुष्य एक ही भाव में रहकर एक दिन नहीं व्यतीत कर सकता है, पूरा जीवन बिताने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है । मनुष्य अपनी दुखद स्थिति में भी हँसने का बहाना ढूँढ ही लेता है । व्यक्ति रो-रोकर मर तो सकता है, लेकिन जी नहीं सकता है । जीने के लिए हँसना ही पड़ता है । वंचित वर्ग के स्त्री-पुरुष श्रम करते हुए भी हँसी-ठिठोली कर लेते हैं ।
(च) क्रोध -
यदि अनावश्यक रूप से क्रोध किया जाए, तो वह बुरा है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर समय और परिस्थिति के अनुकूल किया जाने वाला क्रोध बुरा नहीं होता है । बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी भी कभी-कभी क्रोधित हो जाते थे, लेकिन उनका क्रोध समाज के हित में था ।
(छ) उत्साह -
वीर रस का स्थायी भाव है - 'उत्साह' । आंबेडकरवादी कविताओं में वीर रस का भी दर्शन होता है । जहाँ कहीं भी आंबेडकरवादी कवियों ने अपने पूर्वजों की वीरता का स्मरण करके शत्रु-पक्ष को ललकारा है अथवा चेतावनी दी है, वहाँ पर उत्साह का भाव दृष्टिगत है ।
(ज) प्रेरणा -
आंबेडकरवादी कवियों का एक मुख्य उद्देश्य आंबेडकरवाद का प्रचार-प्रसार करना भी है । वे बुद्ध के धम्म और आंबेडकरवादी विचारधारा से जुड़ने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं । इसलिए उनकी कविताओं में प्रेरणा-भाव भी समाहित होता है । आंबेडकरवादी कवियों की प्रेरणा सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक और शैक्षिक आदि अनेक प्रकार की होती है ।
(झ) चेतावनी
किसी भी पथ पर चलने वाले पथिकों को उस पथ पर मिलने वाली बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है । पथ-प्रदर्शकों का यह दायित्व होता है कि वे नये पथिकों को सम्यक मार्गदर्शन प्रदान करें । इसी के साथ ही वे उन्हें कुछ अनुचित कार्यों को न करने की चेतावनी भी दें, जिससे वे सावधानीपूर्वक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकें । आंबेडकरवादी कवियों ने बहुजन समाज के लोगों को शोषक वर्ग से सतर्क रहने के लिए सदैव चेतावनी दी है ।
(ञ) संदेश
आंबेडकरवादी कवियों ने संदेशपरक कविताएँ भी लिखी हैं । उन्होंने मनुष्य को उत्कृष्ट जीवन जीने का महत्वपूर्ण नैतिक संदेश दिया है । आंबेडकरवादी कवियों द्वारा दिये जाने वाले संदेश मानवाधिकार, वैज्ञानिक चेतना और मानवीय मूल्यों पर आधारित हैं ।
◾ आंबेडकरवादी साहित्य की व्यापकता
◾ उपसंहार
संदर्भ :-
[1] भार्गव आदर्श हिंदी शब्दकोश, पृष्ठ 703, संपादक - पंडित रामचंद पाठक, प्रकाशक - भार्गव बुक डिपो, चौक (वाराणसी)
[2] आंबेडकरवादी चिंतन और हिंदी साहित्य : डॉ० जयश्री शिंदे, पृष्ठ 17, सारंग प्रकाशन, वाराणसी
[3] सम्यक भारत, सितंबर 2020, पृष्ठ 52
[5] दलित चेतना की पहचान : डॉ० सूर्यनारायण रणसुभे, पृष्ठ 13-14, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2012
[6] दलित साहित्य - संवेदना के आयाम : पी० रवि, वी० जी० गोपालकृष्णन, पृष्ठ 27, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2019
[7] दलित साहित्य में बौद्ध धम्मदर्शन और चिंतन का प्रभाव : डॉ० विमल कीर्ति, पृष्ठ 82, नवभारत प्रकाशन दिल्ली, संस्करण 2019
[8] दलित साहित्य का सौंदर्य बोध : रामअवतार यादव, पृष्ठ 12, प्रकाशक - अमन प्रकाशन कानपुर (उत्तर प्रदेश), प्रथम संस्करण 2011
[9] दलित विमर्श की भूमिका : कँवल भारती, पृष्ठ 89, प्रकाशक - अमन प्रकाशन कानपुर (उत्तर प्रदेश), द्वितीय संस्करण 2013
[10] दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र : डाॅ० शरण कुमार लिंबाले, पृष्ठ 69, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2016
[11] दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र : ओमप्रकाश वाल्मीकि, पृष्ठ 97, प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन दिल्ली, तीसरा संस्करण 2019
[12] दलित कविता का यथार्थवादी परिदृश्य : डॉ० दोड्डा शेषु बाबु, पृष्ठ 10, प्रकाशक - क्वालिटी बुक्स पब्लिशर्स एवं डिस्ट्रीब्यूटर कानपुर, प्रथम संस्करण 2013
[13] इक्कीसवीं सदी में दलित आंदोलन : डॉ० जयप्रकाश कर्दम, पृष्ठ 54, प्रकाशक - पंकज पुस्तक मंदिर दिल्ली, प्रथम संस्करण 2005
[14] दलित साहित्य के प्रतिमान : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 240, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, संस्करण 2016
[15] भारतीय दलित साहित्य परिप्रेक्ष्य, पृष्ठ 302, संपादक - पुन्नी सिंह, कमला प्रसाद, राजेंद्र शर्मा
[16] दलित दखल : संपादक श्योराज सिंह 'बेचैन' और रजत रानी 'मीनू', पृष्ठ 73, प्रकाशक - आकाश पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश), संस्करण 2011
[17] दलित दृष्टि : गेल ओमवेट, पृष्ठ 46, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, संस्करण 2011
[18] दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र : ओमप्रकाश वाल्मीकि, पृष्ठ 31, राधाकृष्ण प्रकाशन दिल्ली, संस्करण 2019
[19] दलित साहित्य में बौद्ध धम्मदर्शन और चिंतन का प्रभाव : डॉ० विमल कीर्ति, पृष्ठ 78, नवभारत प्रकाशन दिल्ली, संस्करण 2019
[20] दलित साहित्य एक मूल्यांकन : प्रोफेसर चमनलाल, पृष्ठ 33, प्रकाशक - राजपाल एंड संस दिल्ली, संस्करण 2017
संदर्भ :
[1] प्रतिनिधि कविताएँ : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 44, प्रकाशक - स्वराज प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2020
[2] न्याय तलाशते लोग : जी०सी० लाल 'व्यथित', पृष्ठ 44-45, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, प्रथम संस्करण 2020
[3] प्रतिनिधि कविताएँ : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 76, प्रकाशक - स्वराज प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2020
[4] बस्स ! बहुत हो चुका : ओमप्रकाश वाल्मीकि, पृष्ठ 61, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 1997
[5] वे लुटेरे हैं : अरविंद भारती, पृष्ठ 53, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, प्रथम संस्करण 2019
[6] बस्स ! बहुत हो चुका : ओमप्रकाश वाल्मीकि, पृष्ठ 13, प्रकाशक - वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 1997
[7] न्याय तलाशते लोग : जी०सी० लाल 'व्यथित', पृष्ठ 24, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, प्रथम संस्करण 2020
[8] वही, पृष्ठ 51
[9] आग और आंदोलन : मोहनदास नैमिशराय, पृष्ठ 24, प्रकाशक - नटराज प्रकाशन दिल्ली, द्वितीय संस्करण 2013
[10] प्रतिनिधि कविताएँ : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 89, प्रकाशक - स्वराज प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2020
[11] तिनका तिनका आग : डाॅ० जयप्रकाश कर्दम, पृष्ठ 64, प्रकाशक - अमन प्रकाशन कानपुर, द्वितीय संस्करण 2019
[12] वे लुटेरे हैं : अरविंद भारती, पृष्ठ 70, प्रकाशक - रश्मि प्रकाशन लखनऊ, प्रथम संस्करण 2019
[13] कौशल के हास्य व्यंग्य : नंदलाल कौशल, पृष्ठ 28, प्रकाशक - भारतीय जन लेखक संघ लखनऊ, प्रथम संस्करण 2017
[14] आग और आंदोलन : मोहनदास नैमिशराय, पृष्ठ 29, प्रकाशक - नटराज प्रकाशन दिल्ली, द्वितीय संस्करण 2013
[15] प्रतिनिधि कविताएँ : डॉ० एन० सिंह, पृष्ठ 37-38, प्रकाशक - स्वराज प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2020
[16] आग और आंदोलन : मोहनदास नैमिशराय, पृष्ठ 39, प्रकाशक - नटराज प्रकाशन दिल्ली, द्वितीय संस्करण 2013
[17] तिनका तिनका आग : जयप्रकाश कर्दम, पृष्ठ 24, प्रकाशक - अमन प्रकाशन कानपुर, द्वितीय संस्करण 2019
[18] लाल बत्ती : डॉ० कुसुम वियोगी, पृष्ठ 120, प्रकाशक - अक्षर पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स दिल्ली, प्रथम संस्करण 2019
[1] बुद्ध और उनका धम्म : डॉ० भीमराव आंबेडकर, पृष्ठ 169, प्रकाशक - बुद्ध और उनका धम्म सोसायटी आफ इंडिया, नागपुर, संस्करण 2011
Tags
आंबेडकर-दर्शन