तीसरी आजादी की जंग के लिए प्रेरित करती कविताएँ


भारत के नागरिकों को अंग्रेजों की गुलामी से जो आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली, वह पहली आजादी थी । दूसरी आजादी 26 जनवरी 1950 को मिली, जब भारतीय संविधान लागू हुआ । दो बार आजादी मिलने के उपरांत भी भारत का वंचित-वर्ग जातीय विषमता, आर्थिक असमानता, सामाजिक अन्याय, शोषण, उपेक्षा, अस्पृश्यता आदि की पीड़ा भोग रहा है । इस तीसरी आजादी की जंग के लिए वंचित-वर्ग को सर्वप्रथम मानसिक रूप से सशक्त होने की आवश्यकता है । वरिष्ठ आंबेडकरवादी साहित्यकार डॉ० राम मनोहर 'मनोहर' जी ने इसी तथ्य को आधार बनाकर अपने कविता-संग्रह 'तीसरी आजादी की जंग' का सृजन किया है । इस कविता-संग्रह का पहला संस्करण वर्ष 2016 में सम्यक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है । इस संग्रह की अधिकांश कविताएँ आंबेडकरवादी चेतना से परिपूर्ण है, जिन्हें पढ़कर कवि डॉ० मनोहर जी की दृष्टि को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है । डॉ० मनोहर जी की कविताएँ केवल समाज के यथार्थ का चित्रण ही नहीं करती हैं, बल्कि समाज को सम्यक् दिशा भी प्रदान करती हैं । 'गुनहगार' कविता में 'मनोहर' जी ने बहुजन समाज के लोगों को उनके अपराध का बोध कराने का प्रयास किया है । इक्कीसवीं सदी में आंबेडकरवादी आंदोलन जोरों पर है । वंचित-वर्ग के अधिकांश लोग बौद्ध धम्म की दीक्षा लेने लगे हैं । फिर भी वे पूरी तरह से अपने आपको बदल नहीं पा रहे हैं । कुछ लोगों ने अपने आपको तो बदल लिया, लेकिन अपनी भावी पीढ़ी को धम्म-संस्कार देने में असफल रहे । डॉ० मनोहर जी की यह कविता इसी बात की ओर संकेत करती है । यथा :

हम स्वयं मनुवादी व्यवस्था के हैं पोषक 
परंपराएँ सड़ी-गली गले लगाये हुये ।
सचमुच हमें है अपराध-बोध 
युवा पीढ़ी को संस्कारित नहीं कर पाये ।। 
[पृष्ठ 51]

'दलित' नामक कविता में 'मनोहर' जी ने वंचित-वर्ग की दयनीय स्थिति के लिए केवल तथाकथित सवर्णों को ही दोषी नहीं माना है, बल्कि उनका मानना है कि इस स्थिति के लिए स्वयं वंचित भी जिम्मेदार हैं । बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी ने कहा था कि जुल्म करने वाले से अधिक गुनहगार जुल्म सहने वाला होता है । वर्तमान में भी, तथाकथित सवर्णों के द्वारा थोपा गया नाम 'दलित' शब्द को स्वीकार करके वंचित-वर्ग के लोग अपनी अस्मिता की खोज कर रहे हैं । अर्थात् एक तो वे स्वयं को 'दलित' कहते हैं और दूसरे दलितत्व से मुक्त होने का भ्रम पाले हुये हैं । इस कविता की कुछ पंक्तियाँ अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं :

मनुवादी क्यों न चाहे सुधरना, 
हरिजन कभी, दलित कह पुकारा ।
गुनहगार कम हम भी नहीं, 
नहीं हमने भी स्वयं को सुधारा ।।
[पृष्ठ 52]

भारत में जनसंख्या-वृद्धि और लैंगिक-अनुपात के विषय में देश का बुद्धिजीवी वर्ग चिंतित है । अधिकांश लोगों का मानना है कि जनसंख्या-वृद्धि का कारण अशिक्षा और गरीबी हैं तथा लैंगिक अनुपात का कारण बेटा-बेटी का भेदभाव है । 'कारण' नामक कविता में 'मनोहर' जी ने भारत में जनसंख्या-वृद्धि और लैंगिक अनुपात की चिंताजनक स्थिति का कुछ और ही कारण होने की ओर संदेह और संकेत किया है । यथा :

भारत में जनसंख्या का तेजी से बढ़ना, 
अशिक्षा-गरीबी नहीं, कारण कुछ और है ।
लैंगिक अनुपात का आबादी में बिगड़ना, 
भेदभाव बेटे-बेटी का नहीं, कारण कुछ और है ।
[पृष्ठ 63]

वर्तमान में, वंचित-वर्ग के लाखों लोग स्वयं को आंबेडकरवादी कहना आरंभ कर दिये हैं । लेकिन उन लोगों में कितने लोग सच में आंबेडकरवादी हैं ? यदि इसका मूल्यांकन किया जाए, तो अधिकांश लोग केवल नाम के आंबेडकरवादी सिद्ध हो जाएँगे । क्योंकि बहुत से तथाकथित आंबेडकरवादी लोग अभी तक हिंदू धर्म के कर्मकांड, अंधविश्वास और कुरीति आदि से मुक्त नहीं हो पाये हैं । सच्चा आंबेडकरवादी बनने के लिए प्रथम शर्त है - बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर द्वारा ली गयी बाईस प्रतिज्ञाओं का अनुपालन करना । अपनी कविता 'आह्वान' में डॉ० मनोहर जी ने आधे-अधूरे आंबेडकरवादियों को पूरा बनने का आह्वान किया है । यथा :

पत्थर के भगवान अब तक पूजते, 
आंबेडकर अनुयायियों बुद्धि तो लगाओ ।
आत्मघाती कर्मकांड करते न थकते,
बाईस प्रतिज्ञाओं का साहस तो दिखाओ ।
[पृष्ठ 74]

समता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्व और प्रेम आदि की भावना को व्यवहार में लागू करने का नाम है - आंबेडकरवाद । डॉ० आंबेडकर के नाम का इस्तेमाल करके अपनी स्वार्थपूर्ति करने वाले लोग प्रायः उनके नाम पर संगठन बनाते हैं, उनकी जयंती मनाते हैं, उनके नाम पर विशाल कार्यक्रम का आयोजन करके लाखों रुपये खर्च करते हैं, भाषण देते हैं और नारे लगाते हैं । लेकिन वे सही रूप में आंबेडकरवाद और आंबेडकर-दर्शन को समझ नहीं पाते हैं । बाबा साहेब डाॅ० भीमराव आंबेडकर ने संगठित होने के लिए कहा था, न कि संगठन बनाने के लिए । जबकि महत्वाकांक्षी लोग संगठन बनाकर पदाधिकारी बन जाते हैं और सीना फुलाकर घूमते रहते हैं । सामाजिक कार्य के नाम पर वे केवल गोष्ठी, सभा और धरना आदि करके संतुष्ट हो जाते हैं । इस प्रकार वे सामाजिक चेतना के नाम पर समाज में केवल भ्रम फैलाते हैं । डॉ० मनोहर जी की कविता 'आँकलन' इसी सामाजिक-यथार्थ की ओर संकेत करती है । आलोकनार्थ :

निज स्वार्थ साधने बाबा के नाम बना संगठन, 
संगठन की बजाय सामाजिक बंटवारा करते हो ।
आंबेडकर-दर्शन आंदोलन की दिशा समझे बिन, 
सामाजिक चेतना की बजाय केवल भ्रम फैलाते हो ।
[पृष्ठ 80]

डॉ० मनोहर जी आंबेडकर-दर्शन के ज्ञाता हैं । उनका मानना है कि आंबेडकर-दर्शन के आधार में अनीश्वरवाद, अनात्मवाद और वैज्ञानिक चेतना हैं । जिस व्यक्ति के परिवार में आंबेडकर-दर्शन पर आधारित जीवनशैली वाले लोग होते हैं, उसके परिवार में भला कैसी वेदना अथवा कैसा संत्रास ? क्योंकि उस परिवार में तो न ही कोई कर्मकांड होता है और न ही परिजनों को मोक्ष की लालसा होती है । यदि आंबेडकर-दर्शन को अपनाने वाले लोग दुखी हों, तो निश्चित रूप से यही कारण होता है कि वे आंबेडकर-दर्शन को पूर्णतः अपनाये नहीं होते हैं । इस संदर्भ में डॉ० मनोहर जी की कविता 'अब हमारे पास है' की निम्न पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं :

कर्मकांडों की व्यथा न लालच मोक्ष का, 
फिर कैसी वेदना, क्यों यहाँ संत्रास है ?
न किसी ईश्वर का न दखल आत्मा का,
दर्शन आंबेडकर का अब हमारे पास है । 
[पृष्ठ 96]

इस प्रकार स्पष्ट है कि डॉ० राम मनोहर जी के कविता-संग्रह 'तीसरी आजादी की जंग' में संग्रहीत कविताएँ वंचित-वर्ग के लोगों को उनके समस्त अधिकारों की प्राप्ति हेतु तीसरी जंग करने के लिए उन्हें मानसिक रूप से तैयार करती हैं । डॉ० मनोहर जी की कविताएँ आंबेडकर-दर्शन पर आधारित होने के कारण आंबेडकरवादी साहित्य और आंबेडकरवादी आंदोलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं तथा भारतीय समाज के हर वर्ग के व्यक्ति के अंतस्तल में मानवतावादी विचारों का प्रस्फुटन करने में भी सक्षम हैं ।


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📘 काव्यकृति : तीसरी आजादी की जंग 
      रचनाकार : डॉ. राम मनोहर 'मनोहर, 
      प्रकाशक : सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली 
      प्रथम संस्करण - 2016 ,, मूल्य - ₹100 
प्रकाशक का संपर्क सूत्र- 9810249452, 9818390161
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       ✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर' 
आंबेडकरवादी साहित्यकार एवं आलोचक 
         चंदौली, उत्तर प्रदेश (भारत)

संदर्भ :- तीसरी आजादी की जंग : डॉ० राम मनोहर 'मनोहर', प्रकाशक - सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण - 2016

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