आंबेडकरवादी साहित्य पत्रिका के संपादक के नाम पत्र


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।। दूसरे अंक से संबंधित संपादक के नाम पत्र ।।
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📜 आंबेडकरवादी साहित्य का घोषणा-पत्र एक मिसाल है । 

प्रिय आयु० देवचंद्र भारती 'प्रखर' जी को सस्नेह जय भीम ! यह 'आंबेडकरवादी साहित्य' का प्रथम वर्ष का प्रथम अंक है । आकर्षक मुखपृष्ठ तथा सुंदर कलेवर ने मन मोह लिया । रचनाओं के चयन में शुद्ध आंबेडकरवादी साहित्य के प्रतिमान का स्वर मुखर होता दिखाई देता है । मुझे कविताओं में विशेष रुप से कांता बौद्ध, रघुवीर सिंह नाहर, डॉ० कुसुम वियोगी, पुष्पा विवेक, दिलीप कुमार कसबे, सूरजपाल सूर्यवंशी तथा सुनीता बौद्ध जी ने सोचने, समझने एवं चिंतन करने के लिए प्रेरित किया । आपके संपादकीय की क्या कहें ? हिंदी के विस्तृत परिप्रेक्ष्य में आंबेडकरवादी साहित्य का घोषणा पत्र आपने जिस वैचारिक गहराई, समझ एवं सूझ-बूझ के साथ वर्तमान परिस्थिति की संकुचित दलित मानसिकता का पर्दाफाश करके किया है, वह अपने आप में एक मिसाल है । इस संदर्भ में मुझे आंबेडकरवादी आलोचक स्मृतिशेष डॉ० तेज सिंह जी का स्मरण हुआ है । 'आंबेडकरवादी साहित्य के अंतर्विरोध' में ईशकुमार गंगानिया जी के विश्लेषण से आंबेडकरवादी विचारधारा का सैद्धांतिक पक्ष समझकर ही इस शुद्ध आंबेडकरवादी साहित्य की निर्मिति में सही मायने में सहायक सिद्ध हो सकेंगे । प्रोफेसर डाॅ० अर्जुन चौहान जी ने दामोदर मोरे जी के काव्य-शिल्प पर शोधपत्र के माध्यम से मूल्यांकन किया है, जिसमें बिंब, प्रतीक, अलंकार, शब्द चयन, व्यंग्य तथा संवाद शिल्प का विवेचन उचित काव्य पंक्तियों का संदर्भ देकर किया है । आनंद कुमार 'सुमन' द्वारा प्रस्तुत चौरी-चौरा कांड का विशेष रूप से उल्लेख करना पड़ेगा, जिसमें दलित, दमित, अछूत और शूद्रों ने अपने ऊपर होने वाले जातिवादी अत्याचार का बदला बड़ी बहादुरी से अपना बलिदान देकर लिया, इसका सच बयान किया है । कुल मिलाकर 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका हम पाठकों को आंबेडकरी साहित्य में घुसपैठ करने वाली सवर्ण मानसिकता को बेनकाब करने का भी हौसला बँधाती है । यह बहुत बड़ी बात है । आपको तथा संपादक-मंडल के विद्वान जनों को पुनश्च जय भीम !

✍️ भीमराव गणवीर, 
नागपुर (महाराष्ट्र)

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📜 आंबेडकरवादी साहित्य, क्रांति का साहित्य है ।

आंबेडकरवादी साहित्य पत्रिका के संपादक महोदय जी आपको मेरा जय भीम ! आपकी पत्रिका के पहले अंक में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर मेरा ध्यान गया । आंबेडकरवादी साहित्य के विस्तृत परिप्रेक्ष्य में आंबेडकरवादी वैचारिकी शुद्ध और स्पष्ट रूप में परिलक्षित होती है । आपके द्वारा आंबेडकरवादी साहित्य के घोषणा-पत्र में आंबेडकर विचारधारा को पहले रखा गया है, जिसमें डॉ० आंबेडकर द्वारा ली गयी बाईस प्रतिज्ञाओं का उल्लेख किया गया है । इससे मैं काफी प्रभावित हुई हूँ । आपके अनुसार, आंबेडकरवादी साहित्य को क्रांति का साहित्य कहना उचित है, जिससे मैं पूरी तरह सहमत हूँ । इस अंक में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह दिखाई देता है कि खुद को अब दलित कहने की बजाय आंबेडकरवादी कहें ।

✍️ ललिता, 
शिमला (हिमाचल प्रदेश)

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📜 दलित साहित्य को ट्रैक पर लाने में समर्थ है - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका ।

दलित साहित्य को ट्रैक पर रखने के लिए अच्छी समालोचना और दिशानिर्धारक पत्रिकाओं की महती आवश्यकता है । आंबेडकरवादी साहित्य पत्रिका में इसकी प्रबल संभावना नजर आती है । दलित साहित्य का अपना स्वरूप है, अपनी प्रवृत्तियाँ हैं । बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर की बाईस प्रतिज्ञाएँ दिशा निर्धारण की लकीरें हैं । लेकिन ये अनायास ही रचना में अनुस्यूत होनी चाहिए । ध्यातव्य रहे, साहित्य रुचिकर शब्द-साधना है । परिस्थितियों के घात-प्रतिघात चरित्रों को गढ़ते हुए ऊँचाइयों की ओर ले जाएँ । पात्र गत्यात्मक हों, न कि बने-बनाये दर्शन के खाँचे में फिट हों । इससे रचना हल्की पड़ती है ।

आंबेडकरवादी साहित्य पत्रिका का अप्रैल-जून-2021 कहानी विशेषांक पढ़ा । बहुत अच्छा लगा। कहानियाँ और समालोचना एक अच्छा विमर्श उपस्थित करती हैं । प्रखर जी और आर.डी. आनंद जी की यह बात सही है कि दलित कहानीकार को दलित अस्मिता के साथ स्त्री की अस्मत का पूरा ख्याल रखना चाहिए । हिंदू कोड बिल और बाबा साहेब का मंत्री पद से त्यागपत्र सदा जेहन में रखना चाहिए । साहित्य पिक्टोग्राफी नहीं है। यथार्थ के नाम पर स्त्री चरित्रहनन की इजाजत नहीं दी जा सकती । वात्स्यायन के कामसूत्र की आंबेडकरवादी साहित्य के साथ लय बिठाने की कोशिश ट्रैक से उतरना और बाबा साहेब के दर्शन की गरिमा का हनन है । दिशा भटकना है ।

इस अंक में संकलित कहानियाँ पढ़कर अच्छा लगा । कर्दम जी की मूवमेंट कहानी का मानसिक अंतर्द्वंद्व बाबा साहेब के मिशन के प्रति समर्पित हर कार्यकर्ता के जीवन का यथार्थ है । बाबा साहेब से बड़ा इसका दूसरा उदाहरण कहाँ मिलेगा ? कुसुम वियोगी जी की कहानी 'संस्कारों का सफर...' सांस्कृतिक व्यवहार प्रतिमानों के संक्रमण के दर्द को व्यक्त करती है । रीति-रिवाजों की नई लकीरें खींचना आसान नहीं होता । अपमान और उलाहनों के दौर से गुजरना पड़ता है । श्यामलाल 'राही' की कहानी 'परिवर्तन' बहुत सुंदर कहानी है । गाँवों में थोड़ी ही सही, कुछ स्वार्थ से ही सही पर परिवर्तन की बहती बयार आशा जगाती है, उस भारत का, जिसका स्वप्न बाबा साहेब ने देखा था । विपिन बिहारी की कहानी 'मुद्दा' यथार्थ के धरातल पर उकेरी गयी कहानी है । दलित स्त्री के साथ बलात्कार अखबार वालों के लिए महत्वहीन खबर है । स्त्रीवादी नारियों के लिए पुरुषवर्चस्ववाद के खिलाफ आत्मप्रदर्शन का मुद्दा है । सवर्ण सामंतों के लिए दलित स्त्री देह भर है, मात्र एक खिलौना है । उपचार स्वयं दलित स्त्रियों को अपने पैरों पर खड़ा होना है । नैमिशराय की कहानी 'आवाजें' में  मैला ढोने के खिलाफ जो आवाज उठी थी, वो अंत में उतना प्रभावोत्पादन न कर पायी, जिसकी अपेक्षा थी । देवचंद्र भारती 'प्रखर' की कहानी विवाह पूर्व लड़के-लड़की के मिलन की आतुरता-अधीरता के मनोविज्ञान पर टिकी है । चाहकर भी लड़की का इस विषयक संकोच समझा जा सकता है ।  समाज की यह बद्धमूल धारणा कि 'यौवन की जमीन बड़ी रपटीली होती है ।", सर्वथा गलत नहीं है । कुल मिलाकर यह अंक अपनी पूरी सार्थकता के साथ उपस्थित हुआ है ।

✍️ डॉ० शिवताज सिंह, नारनौल (हरियाणा)

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📜 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका का कहानी-विशेषांक ।

उपरोक्त पत्रिका समयान्तर्गत प्राप्त कर अतीव प्रसन्नता हुई । इस दूसरे अंक का कवर पेज विषय विशेषांक के अनुरूप अद्भुत एवं आकर्षक है । निसन्देह अपने नाम के अनुसार यह पत्रिका श्रेष्ठ साज-सज्जा के साथ अन्य पत्रिकाओं की तुलना में बेहतर है । इसके लिए पत्रिका के  संपादक आदरणीय देवचन्द्र भारती 'प्रखर' जी शीर्ष सम्मान के आस्पद हैं । अपने सम्पादकीय में " प्रखर " जी ने साहित्य को परिभाषित करते हुये लेखन के विभिन्न मानकों का उल्लेख किया है । आंबेडकरवादी कहानी के संदर्भ में उनका अभिमत है कि नायक वही व्यक्ति होना चाहिए, जो समतावादी, संघर्षशील, अंधविश्वास का विरोधी, वैज्ञानिक चेतना का समर्थक और पंचशील का अनुपालक हो । वास्तव में, इन साहित्यिक तत्वों के अभाव में आंबेडकरवादी साहित्य का कोई अर्थ भी नहीं है । 'आंबेडकरवादी कहानी का स्वरूप एवं विशेषताएँ' शीर्षक आलेख में उन्होनें विस्तारपूर्वक आंबेडकरवादी कहानियों के स्वरूप तथा विशेषताओं पर प्रकाश डाला है । कथित दलित साहित्य एवं आंबेडकरवादी साहित्य  में मूलभूत समानता को स्पष्ट करते हुए बताया है कि दलित साहित्य को आंबेडकरवादी साहित्य के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उसकी स्थापना करने वालों में मुख्य भूमिका आंबेडकरवादियों की रही है । इस  प्रकार इन्होंने दलित और आंबेडकरवादी साहित्य के बीच पल रहे भ्रम को खत्म किया है । रत्नकुमार सांभरिया के आलेख 'आंबेडकरवादी कहानी का रूपबन्ध' तथा सन्तोष कुमार जी के आलेख अत्यंत ज्ञानवर्क हैं ।  प्रकाशित छः कहानियाँ बेजोड़ और प्रशंसनीय हैं । प्रत्येक कहानी में अन्य विशेषताओं के साथ साथ आंबेडकरवादी चिंतन भी है । 'अधिकार' कहानी बिल्कुल नये कलेवर में द्रष्टव्य है, जिसके नायक और नायिका दोनों ही शील का पालन करते हुए यथार्थवादी आदर्श का उदाहरण पेश किये हैं । निसन्देह इस कहानी के लेखक देवचन्द्र भारती 'प्रखर' जी ने कहानीकारों के लिए नूतन मार्ग प्रशस्त किया है ।
    
इस प्रकार आंबेडकरवादी साहित्य का दूसरा अंक अपने आप में विशिष्ट है । आशा है भविष्य में पत्रिका बहुआयामी शक्ल में आकर अपने उद्देश्य की पूर्ति में सर्वथा सफल होगी । अंत में पुनः श्रद्धेय सम्पादक जी सहित सम्पादक मण्डल के माननीय सदस्यों एवं समस्त कहानीकारों तथा अन्य विद्वान साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद । पत्रिका के नियमित प्रकाशन हेतु मंगल कामनाएँ ।

✍️ एस. एन. प्रसाद, (से.नि.) जिला विकास अधिकारी,
यूनिटी सिटी, कुर्सी रोड, लखनऊ ।


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।। तीसरे अंक से संबंधित संपादक के नाम पत्र ।।
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📜 आंबेडकरवाद के संबंध में भरम की गुंजाइश नहीं रहेगी ।

बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, लोकनुकम्पाय के दर्शन पर आधारित 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका त्रैमासिक का जुलाई-सितम्बर 2021 के अंक का विषय "आंबेडकरवाद-दिशा एवं दृष्टि" है। मैंने पत्रिका का विधिवत अध्ययन किया। मेरा मानना है कि किसी भी पत्रिका का सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र 'संपादकीय' होता है। प्रस्तुत अंक में आंबेडकरवाद - दिशा एवं दृष्टि में 'वाद' का अर्थ कथन,सिद्धान्त आदि बताते हुए संपादक आदरणीय 'प्रखर' जी ने अच्छी विवेचना की है। वे बताते हैं कि आंबेडकरवाद का अर्थ है- आंबेडकर का कथन, आंबेडकर का सिद्धान्त एवं आंबेडकर की विचारधारा । डॉ० आंबेडकर की विचारधारा में प्रमुख रूप से अनीश्वरवाद, अनात्मवाद, समता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्व एवं प्रेम आदि तत्वों का समावेश है। 'प्रखर' जी आगे बताते हैं कि डॉ० आंबेडकर की विचारधारा में तथागत बुद्ध, संत कबीर, गुरु रैदास, ज्योतिराव फुले, पेरियार रामास्वामी, नारायण गुरु और संत गाडगे आदि महापुरुषों के विचार समाविष्ट हैं। वे आंबेडकरवादी व्यक्ति की पहचान के लिए आंबेडकरवादी चेतना के दस बिंदु निर्धारित करते हुए लिखते हैं कि आंबेडकरवादी होने के लिए इन सबका पालन करना अनिवार्य है।

निःसन्देह श्रद्धेय 'प्रखर' जी की सोच विलक्षण है। उनका मानना है कि आंबेडरवाद व्यापक मानवीय विचारों/सिद्धांतों का समुच्चय है। किसी भी दशा में बाबा साहेब के विचारों को किसी जाति विशेष तक सीमित नहीं रखा जा सकता। सम्मानित संपादक के विचार आंबेडकरवादी चेतना से परिपूर्ण हैं। इस अंक के संपादकीय को पढ़ने और समझने के बाद मुझे विश्वास है कि आंबेडकरवाद के संबंध में किसी को भरम की गुंजाइश नहीं रहेगी। इस अंक में कुल आठ साहित्यकारों के आलेख छपे हैं, सभी उपयोगी हैं। बुद्ध शरण हंस का आलेख "डॉ० आंबेडकर का कारवाँ क्या है", डॉ० जयश्री शिंदे का आलेख "आंबेडकरवाद में स्त्री दृष्टिकोण" अत्यंत प्रभावशाली है। कवियों में एस०एन० प्रसाद, रघुवीर सिंह 'नाहर' तथा राधेश विकास की कविताएँ आंबेडकरवादी चेतना से ओतप्रोत हैं। डॉ० राममनोहर की काव्यकृति "तीसरी आजादी की जंग" की समीक्षा देवचन्द्र भारती 'प्रखर' जी द्वारा बड़ी ईमानदारी से साहित्यिक विधा के प्रतिमानों को दृष्टि में रखकर की  गयी है। पाठक की हैसियत से मेरा अनुरोध है कि प्रत्येक अंक में सभी विधाओं के कमोवेश समावेश करने पर संपादक-मंडल विचार करेगा।
 
आशा एवं विश्वास है कि आगामी अंक भी वंचित समाज के लिए ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी होगा। अंत में, आदरणीय 'प्रखर' जी को पत्रिका के कुशल संपादन तथा सभी साहित्यकारों को हार्दिक मंगलकामनाएँ तथा अनन्त बधाईयाँ।

✍️ कु० संध्या वर्मा
438, युनिटी सिटी, कुर्सीरोड, लखनऊ।
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📜 हिंदी साहित्य के इतिहास में एक नई धारा ।

प्रिय संपादक महोदय, सस्नेह जय भीम - नमो बुद्धाय!
मैं 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका की नियमित पाठक हूँ । जबसे इस विचारधारा से जुड़ी हूँ, साहित्य में मार्गदर्शन हेतु सुधी महानुभावों की खोज कर रही थी, मेरी यह खोज पूर्ण हो चुकी है ।इस पत्रिका में देश के जाने-माने साहित्यकारों के मार्गदर्शन और सानिध्य में मेरी लेखनी अच्छा और अच्छा लिखने के लिए प्रयासरत है। हिंदी साहित्य के इतिहास में नई धारा (आंबेडकरवादी धारा ) के स्तंभ हैं आप। आपकी प्रखर और पैनी नजर की आलोचना बहुजन साहित्य को त्रुटियों से अवगत कराएगी, उसे निखारने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहेगी । 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका के सभी अंक प्रेरणादायी, सराहनीय और ज्ञानवर्धक हैं।
 मेरी मंगलकामनाएँ हैं कि यह पत्रिका विश्वपटल पर अपनी छवि  शीघ्र-अतिशीघ्र अंकित करे। यथा-

'प्रखर' अपने पुंज से, करो अनूठे काम।
बहुजन के साहित्य में, होय शिखर पर नाम।।

✍️ सुनीता बौद्ध 
टून्डला, फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)
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📜 राष्ट्र को नई चेतना के उच्च शिखर की ओर ले जाने का अनुपम प्रयास ।

आदिकाल से आधुनिक काल तक एक से बढ़कर एक लेखक, कवि, आलोचक उदित हुये हैं, जिनमे डाॅ० आंबेडकर द्वारा रचित संविधान को गौरवशाली भारतवर्ष की क़ानूननीति का दर्जा प्राप्त हुआ । उनकी प्रखरता को उनके नियम-नीतियों को समाज के प्रत्येक क्षेत्र में प्रख्यात करने का काम 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका के संपादक महोदय देवचन्द्र भारती 'प्रखर' जी कर रहे हैं । पत्रिका के पहले, दूसरे और तीसरे अंक में विविध विषयों, मुद्दों के माध्यम से आंबेडकरवादी साहित्य को उजागर करने और समाज का ज्ञानवर्धन करने की इनकी ये कोशिश सराहनीय है।

लोगों के कूटनीतियों के बीच आकर राष्ट्र को नई चेतना के उच्च शिखर की ओर ले जाना 'प्रखर' जी की संघर्षशीलता को दर्शाती है। वर्ण, रंग, आकर, आकृति के आधार पर विद्वानों का जो शोषण होता था, भिन्न-भिन्न प्रकार के जातिसूचक शब्दों से प्रताडि़त जनता की पीड़ा हरने का इनका ये प्रयास अनुपम है। आंबेडकर को मुद्दा बनाकर सडकों पे उछलने वाले महानायकों में कितने लोग आंबेडकर-नीति समझते है, पूछा जाए, तो आसमान के तारे गिनने लगेंगे। मैं कोई आलोचक तो नही, परन्तु एक कलमकार होने के नाते निम्लिखित पंक्तियों के माध्यम से सच कहने की हिम्मत रखती हूँ -

"कब तलक करते रहोगे झूठ की सच्ची वकालत,
अपने गिरेबाँ में झाँको देखो पहले खुद की हालत।"

इन्हीं गलत नीतियों के कारण जाति भेद,वर्ण भेद,लिंग भेद जैसी अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे निपटने के लिए जन-जन को आगे आना होगा । चंद लोगों की भीड़ से, महज़ कुछ नारों से कोई बदलाव नही आएगा।
     
✍️ कु० ज्योति किरण,
(सुप्रसिद्ध कवयित्री) 
गोपालगंज, बिहार


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।। चौथे अंक से संबंधित संपादक के नाम पत्र ।।
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📜 'आंबेडकरवादी गीतकार एवं गायक विशेषांक' एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है ।

प्रिय आयुष्यमान देवचंद्र भारती 'प्रखर' जी! नमो बुद्धाय जयभीम! 'आंबेडकरवादी साहित्य' त्रैमासिक पत्रिका का 'आंबेडकरवादी गीतकार एवं गायक' विशेषांक मिला । हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक बधाई । यह बेहतरीन शीर्षक की पत्रिका आपका ऐतिहासिक एवं साहसी  कदम है । 'दलित साहित्य' की अवधारणा के पीछे सभी भाग रहे हैं । ऐसे माहौल में 'आंबेडकरवादी साहित्य' की ध्वजा इस पत्रिका के माध्यम से आप फहरा रहे हैं । यह सराहनीय कदम हैं । दलितत्व कोई मेडल नहीं, जो छाती पर लगाकर सीना तानकर चलें । दलितत्व लाचारी को जन्म देता है और लाचारी के कीचड़ में स्वाभिमान का कमल कभी नहीं खिलता है । दलितत्व फटे लिबास जैसा है । उसकी जगह कूड़ादान है । इसी कारण बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर ने 'दलित' शब्द का इस्तेमाल न करने के लिए कहा था । बाबासाहेब आंबेडकर रायटिंग ऐंड स्पीचेस के चौथे खण्ड में इसका सबूत है ।

इस विशेषांक में आंबेडकरवादी गीत विधा को स्थान देकर आपने मौलिक कार्य किया है । आंबेडकरी गीत विधा आंबेडकरी आन्दोलन की वाहिनी है, जो आंबेडकरी क्रांति को जन-जन तक पहुँचाती आयी है । भीमराव गणवीर जी का आलेख, डाॅ० सूरजमल सितम जी, डॉ. धम्मपाल बौद्ध जी, देवचंद्र भारती 'प्रखर ' जी, भूपसिंह भारती जी के गीतों में समाज को जगाने का सामर्थ्य और सौंदर्य है ।
ये सभी गीत गीतकारों की सामाजिक प्रतिबद्धता का एहसास दिलाते हैं । भूपसिंह भारती जी ने हरियाणवी बोली में आंबेडकरी चेतना को शिल्पित किया है, जिससे उनके गीतों की खूबसूरती बढ़ी है । इन सभी भीम गीतों पर एक अलग से लेख लिखा जाय, इतना उनका दर्जा है ।
        
बुद्धप्रिय जी की कविता पर लिखा हुवा आपका लेख भी बढ़िया है । उनकी कविताओं के मौलिक कथ्य पर आपने कुशलता से प्रकाश डाला है । यह विशेषांक एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है । आपको हार्दिक बधाई ।
जयभीम! जय भारत! जय संविधान!
              
✍️ प्रो. दामोदर मोरे
मुम्बई, महाराष्ट्र 

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📜 'आंबेडकरवादी साहित्य' सर्वसाधारण की पत्रिका है ।

सादर जय भीम प्रखर जी!
'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका का स्तर दिनों-दिन प्रगति की ओर है और जल्दी ही यह सर्वसाधारण की पत्रिका बन जाएगी । पत्रिका का चौथा अंक आपने कविता, ग़ज़ल और गीतों को समर्पित किया है । कुछ नये लोगों को जगह दी है । ये अच्छे संकेत हैं । और आप तो जानते ही हैं कि गीत समाज को जगाने का काम करते हैं ।

मेरी ओर से सभी को बाबा साहेब, ज्योतिराव फुले और सम्राट अशोक के जन्मदिन की हार्दिक बधाईयाँ ।

✍️ कर्मशील भारती 
नई दिल्ली- 67
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📜 यह पत्रिका बहुत दूर तक सफर करेगी ।

प्रिय संपादक जी! सादर अभिवादन! जय भीम - जय भारत! आपका और आपके सहयोगियों का अच्छा प्रयास है । मैनें 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका के चौथे अंक का परिशीलन किया । यह अंक सुन्दर एवं सार्थक है । यह पत्रिका बहुत दूर तक सफर करेगी । मुझे पत्रिका के हर अंक की दस-दस प्रतियाँ भेजिएगा, ताकि मैं इस पत्रिका का प्रचार कर सकूँ । यह मेरी सोच है ।

✍️ प्रेमचंद करमपुरी 
झूसी (प्रयागराज) उत्तर प्रदेश
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।। पाँचवें अंक से संबंधित संपादक के नाम पत्र ।।
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गुरु रविदास जी के जीवन से संबंधित विभिन्न पक्षों पर ज्ञानवर्धक सामग्री का संकलन ।

आंबेडकरवादी साहित्य पत्रिका, जनवरी-मार्च 2022 के कुशल संपादन एवं वितरण के लिए मूर्धन्य आंबेडकरवादी विद्वान तथा विचारक श्रद्धेय देवचन्द्र भारती 'प्रखर' जी! आपको हार्दिक बधाई। यह अंक सन्त कवि रविदास जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का विशेषांक है। अतएव समस्त लेखकों एवं रचनाकारों द्वारा सन्त शिरोमणि गुरु रविदास जी के जीवन से संबंधित विभिन्न पक्षों पर ज्ञानवर्धक सामग्री दी गयी है। जहाँ तक संपादन का प्रश्न है, तो पत्र-पत्रिकाओं का संपादन तथा संपादकीय लेखन सरल कार्य नहीं है। संपादकीय ही पत्रिका का प्राण होता है। इससे संपादक  की बौद्धिक क्षमता और अभिनव विपुल ज्ञान की जानकारी होती है। विभिन्न विषयों का सम्यक ज्ञान होने के कारण प्रखर जी! आपको निःसन्देह संपादन कार्य में महारत हासिल है।
      
प्रज्ञा प्रवीण आदरणीय देवचन्द्र भारती प्रखर जी! आपके द्वारा संपादकीय के माध्यम से सन्त कवि रविदास जी के जीवन के विविध आयामों से जुड़ी किंवदन्तियों के भ्रम निवारण हेतु दस बिंदु यथा - नाम, जन्म तिथि, जन्म स्थान, परिवार, गुरु, व्यवसाय, साधना मार्ग, शक्ति प्रदर्शन, शिष्य- शिष्या, परिनिर्वाण आदि पर तार्किक एवं शोधपरक विचार प्रस्तुत किया गया है। जिन बिंदुओं पर मतैक्य नही है, उन पर शोध के लिए विद्वानों से आग्रह किया गया है। इस प्रकार माननीय प्रखर जी! आपने साहित्यिक आदर्श  की स्थापना कर स्तुत्य प्रयास किया है। सधे शब्दों में अपने उद्दात्त विचारों को मजबूती के साथ प्रस्तुत करने में आपको जो कुशलता हासिल है, उसके लिए आपकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। आपके आलेख- 'सन्त रविदास के काव्य में बौद्ध चिंतन', कविता के संदर्भ में 'गुरु रविदास पचासा', कहानी के क्षेत्र में 'पुजारी' आदि में आपके अनुभव, ज्ञान, दक्षता, भाषा एवं शैली की विशिष्टियाँ द्रष्टव्य हैं। अंत में पुनः सुधी संपादक, कवि, लेखक, आलोचक तथा आंबेडकरवादी विचारक श्रद्धेय प्रखर जी! आपको हार्दिक धन्यवाद देते हुए निरन्तर सफलता की मंगल कामना करता हूँ।


✍️ एस.एन. प्रसाद
बहादुरपुर, कुर्सी रोड, लखनऊ
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बोधिसत्व स्वरूप सदगुरु रविदास के व्यक्तित्व की सम्यक विवेचना ।

आदरणीय संपादक जी, सादर नमो बुद्धाय - जय भीम! 
आंबेडकरवादी साहित्य पत्रिका के इस अंक में डॉ. मुकुंद रविदास, भूपसिंह भारती, सतनाम सिंह तथा आपके आलेख के साथ-साथ डॉ. बी.आर. बुद्धप्रिय का आलेख संकलित है । डाॅ. बुद्धप्रिय ने अपने शोधपूर्ण आलेख के माध्यम से यह सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है कि सदगुरु रविदास बोधिसत्व स्वरूप तथा बौद्ध विरासत के पुरोधा थे । मैं इस तथ्य से पूरी तरह सहमत हूँ कि संत रविदास की वाणी और तथागत बुद्ध की वाणी में समानता है। इस मिशनरी साहित्यिक पत्रिका के कुशल संपादन एवं इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण सामग्री के चयन हेतु आपको साधुवाद!

✍️ गौतम आनंद
अनुपुरम, तमिलनाडु
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आंबेडकरी आंदोलन को सफल बनाने हेतु एक महत्वपूर्ण पत्रिका ।

प्रिय संपादक महोदय! आपके द्वारा संपादित और प्रकाशित आंबेडकरवादी साहित्य पत्रिका आंबेडकरी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । इस पत्रिका का हर अंक आंबेडकरवाद और आंबेडकरी आंदोलन के संबंध में लोगों को सही दृष्टि और दिशा प्रदान करने में सफल है । बहुजन-कल्याण हेतु इस पत्रिका का योगदान सराहनीय है ।

✍️ सुरेश प्रसाद बौद्ध 
कृषि भूमि संरक्षण अधिकारी, बस्ती
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