सरकारी नौकर (कहानी)


नौकर निजी हो या सरकारी, नौकर ही होता है । फिर भी लोग सरकारी नौकर को अधिक महत्व देते हैं । वह इसलिए, क्योंकि सामान्यतः सरकारी नौकर का वेतन निजी नौकर से अधिक होता है तथा उसकी नौकरी स्थायी होती है । वैसे तो, निजी नौकरों में भी कुछ ऐसे होते हैं, जिनका वेतन सरकारी नौकर की तुलना में अधिक होता है । क्योंकि सरकारी नौकरों में भी अनेक श्रेणियाँ होती हैं, यथा - प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी आदि । सामान्यतः चतुर्थ श्रेणी के सरकारी नौकर का वेतन निजी नौकर के बराबर ही होता है । फिर भी लोग चतुर्थ श्रेणी के सरकारी नौकर को प्रथम श्रेणी के निजी नौकर से अधिक महत्वपूर्ण और उच्च श्रेणी का समझते हैं । वास्तव में, उनके लिए वेतन और श्रेणी महत्वपूर्ण नहीं होते, बल्कि उनके लिए जो महत्वपूर्ण होता है, वह है - नौकरी का स्थायी होना । ऐसे ही लोगों की तरह सोचने वाले व्यक्ति थे - इंजीनियर सुधीर गौतम । सुधीर जी की पत्नी डॉ० शांति गौतम काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्राध्यापिका थीं । डॉ० शांति एक आधुनिक महिला थीं । वे 'नारी शक्ति संघ' की अध्यक्ष थीं । खाने-पहनने के मामले में वे भले ही आधुनिक थीं, लेकिन वैवाहिक रिश्ते के संबंध में उनके विचार उनके पति सुधीर जी के जैसे ही थे । गौतम-दंपति की इकलौती पुत्री प्रज्ञा गौतम समाजशास्त्र विषय में पीएचडी कर चुकी थी । इसलिए वे दोनों उसके विवाह हेतु वर की खोज में लगे थे ।

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