गुरु रविदास पचासा [दोहा-चौपाई छंद]

चालीसा के माध्यम से अपने इष्ट एवं श्रद्धेय का गुणगान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है । इसी परंपरा का अनुपालन करते हुए साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' ने संत शिरोमणि गुरु रविदास जी का महिमा गान गुरु रविदास पचासा Guru Ravidas Pachasa (दोहा और चौपाई छंद) के रूप में किया है । इस पचासा में गुरु रविदास जी के जीवन की प्रमुख घटनाओं का वैज्ञानिक एवं तार्किक रूप से वर्णन किया गया है । इस पचासा की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसमें गुरु रविदास जी से किसी भी प्रकार की कोई प्रार्थना नहीं की गयी है, बल्कि केवल उनकी वंदना की गयी है । संपूर्ण गुरु रविदास पचासा यहाँ प्रस्तुत है ।


गुरु रविदास पचासा Guru Ravidas Pachasa
[दोहा और चौपाई छंद में गुरु रविदास जी का महिमा गान]  

।। दोहा छंद ।।

सतगुरु के सत्ज्ञान से, कुंठित मति गतिशील ।
मन की माया शून्य हो, काया बने सुशील ।१।
संत शिरोमणि नाम है, धाम अमल अविकार ।
महिमा गुरु रविदास की, अमित अनूप अपार ।२।

।। चौपाई छंद ।।

जय रविदास आस के दानी ।
जय गुरुवर जय हो वरदानी ।१।
हे दीनों के सच्चे दाता ।
तुमसे यह जीवन सुख पाता ।२।

जब चौदहवीं सदी उदासी ।
तुम बालक बन आये काशी ।३।
माघ महीने की पुनवासी ।
झूम उठे काशी के वासी ।४।

रघुनंदन कर्मा के लाला ।
मंडुवाडी में बचपन पाला ।५।
सीरकरहियाँ धाम तुम्हारा ।
सुखदायक है नाम तुम्हारा ।६।

संत शिखर तुमने मन साधा ।
अपनी इच्छाओं को बाँधा ।७।
ढोंगी सब तुमको उलझाये ।
तुम उनकी उलझन सुलझाये ।८।

राजा वीर सिंह हरसाया ।
जब तुमसे हर उत्तर पाया ।९।
तुमने उसका भरम मिटाया ।
वेदों का हर भेद बताया ।१०।

नीच किसी की जाति नहीं है ।
झूठे ने यह बात कही है ।११।
चर्चित है तुम्हारी बानी ।
पंडित वह है जो है ज्ञानी ।१२।

क्या है तिलक जनेऊ पोथी ।
शील बिना सब चीजें थोथी ।१३।
सच में पंडितराज तुम्हीं हो ।
गुरुओं के सिरताज तुम्हीं हो ।१४।

बिंदु मिले तो बनती रेखा ।
अंधेरे में किसने देखा ।१५।
यज्ञ हवन से क्या होता है ।
चारों ओर धुआँ होता है ।१६।

कथन तुम्हारा सिद्ध सही है ।
वचन अभी प्रसिद्ध वही है ।१७।
सूखा सुमन नहीं खिलता है ।
घी जलता तो जी जलता है ।१८।

संगम पर लगता है मेला ।
अमृत पाने का है खेला ।१९।
कुंभकथा है बहुत पुरानी ।
लोगों की जानी पहचानी ।२०।

लेकिन तुमने कहा निरंतर ।
यह तो है केवल आडंबर ।२१।
बूँद गिरी थी अगर सुधा की ।
तो अब है माटी वसुधा की ।२२।

संत कबीर लहरतारा में ।
नामी निर्गुण की धारा में ।२३।
वाद विवाद हुआ तब जाने ।
संत शिरोमणि तुमको माने ।२४।

आस्तिक सगुण और निर्गुण हैं ।
नास्तिक जैसा तुममें गुण है ।२५।
ईश्वर शब्द भरम की छाया ।
जग सच्चा है ईश्वर माया ।२६।

भारत में था मुस्लिम शासन ।
दिल्ली पर लोदी का आसन ।२७।
जहाँपनाह सिकंदर लोदी ।
इस्लामी था सगुण विरोधी ।२८।

दासों ने जब खबर सुनाया ।
लोदी अपना होश गँवाया ।२९।
जब तुमने उसको समझाया ।
तब वह अपना शीश झुकाया ।३०।

संत अनोखे थे गुरु नानक ।
काशी में आ गये अचानक ।३१।
भेंट हुई तुमसे तो बोले ।
खुलकर मन की बातें खोले ।३२।

पश्चिम-पूरब अंत मिले थे ।
जिस दिन दोनों संत मिले थे ।३३।
तुमने उनको ऐसा जीता ।
भूल गये वह भगवत गीता ।३४।

किनाराम नाम से नागा ।
तुमसे बाँधे मन का धागा ।३५।
चंचल मन के छंद तुम्हीं हो ।
सच में परमानंद तुम्हीं हो ।३६।

सूर रहीम बिहारी क्या हैं ।
तुम हीरा हो सब ताँबा हैं ।३७।
तुलसी हैं कवियों में नामी ।
तुम कवियों के सच्चे स्वामी ।३८।

राणा सांगा राजस्थानी ।
झाली बाई उसकी रानी ।३९।
नाम तुम्हारा सुनकर आई ।
तुमको भी चित्तौड़ बुलाई ।४०।

उसके आदर की परछाईं ।
पुत्रवधू थी मीराबाई ।४१।
मीरा ने जब तुमको जाना ।
उसने तुमको गुरुवर माना ।४२।

अंबेडकर जब परिचय पाये ।
प्रथम जयंती वह मनवाये ।४३।
बहुजन अब भी रीत निभाएँ ।
जन्म दिवस हर साल मनाएँ ।४४।

हिंदू सिक्ख बौद्ध जन सारे ।
बोलें तुम्हारे जयकारे ।४५।
जीवन-चरित विचित्र तुम्हारा ।
घर - घर में है चित्र तुम्हारा ।४६।

राह तुम्हारी जो भी आए ।
राहें जीवन की वह पाए ।४७।
जो भी तुम पर ध्यान लगाए ।
उसका ध्यान विमल हो जाए ।४८।

जो पढ़ता रविदास पचासा ।
उसके मन से मिटे निराशा ।४९।
गुरु कीर्तन 'प्रखर' को प्यारा ।
अमर रहे गुरु प्रेम हमारा ।५०।

।। दोहा छंद ।। 

मन चंगा ये हो गया, और नहीं कुछ आस ।
पत्नी जननी तात सहित, हृदय बसें रविदास ।१।

✍️  देवचंद्र भारती 'प्रखर'

एम.ए. (हिंदी, संस्कृत), बी.एड., नेट/जेआरएफ, 
पीएचडी (अद्यतन) 🏡 वाराणसी, उत्तर प्रदेश
आंबेडकरवादी साहित्यकार एवं समालोचक
संपादक - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका 
संस्थापक एवं महासचिव - 'GOAL'

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने