सुधाकर सागर सार

महाकवि किसे कहते हैं ? इसे दो प्रकार से परिभाषित किया जाता है । पहले प्रकार में महाकवि उसे माना जाता है, जो महाकाव्य की रचना करता है । भारतीय काव्यशास्त्र के अनुसार महाकाव्य के कुछ निश्चित लक्षण हैं । आचार्य विश्वनाथ ने अपने ग्रंथ साहित्यदर्पण में महाकाव्य के लक्षणों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है । साहित्यदर्पण में प्राप्त महाकाव्य का लक्षण इस प्रकार है - 1. यह सर्गों में विभक्त होता है । 2. इसका नायक देवता, कुलीन, क्षत्रिय वंशज कुलीन अनेक राजा होते हैं । 3. श्रृंगार, वीर और शांत रस में से कोई एक प्रधान रस होता है और अन्य उसके सहायक । 4. इसमें सभी नाटकीय संधियाँ होती हैं । 5. इसका कथानक ऐतिहासिक होता है या किसी सज्जन व्यक्ति से संबद्ध । 6. इसमें चतुर्वर्ग - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का वर्णन होता है तथा उनमें से किसी एक फल की प्राप्ति का वर्णन होता है । 7. प्रारंभ में देव आदि को नमस्कार, आशीर्वाद या वस्तु-निर्देश होता है । कहीं दुर्जन-निंदा और सज्जन-प्रशंसा भी रहती है । 8. प्रत्येक सर्ग में एक छंद वाले पद्य रहते हैं, किंतु अंत में छंद परिवर्तन हो जाता है । 9. इसमें आठ से अधिक सर्ग होते हैं, जो न बहुत छोटे और न बड़े होते हैं । 10. कहीं विभिन्न छंदों वाले सर्ग भी होते हैं । 11. सर्ग के अंत में भावी कथा का संकेत होता है । 12. इसमें संध्या, सूर्य, चंद्रमा, रात्रि, प्रदोष, अंधकार, दिन, प्रातः, मध्यान्ह, मृगया, शैल, ऋतु, वन, सागर, युद्ध, प्रस्थान, विवाह, मंत्र, पुत्र, उदय आदि का वर्णन रहता है । 13. ग्रंथ का नाम कवि, कथानक, नायक या प्रतिनायक के नाम पर रखना चाहिए । 14. सर्गों का नाम वर्णित कथा के आधार पर रखना चाहिए । (इग्नू द्वारा निर्धारित परास्नातक संस्कृत की पाठ्यपुस्तक, संस्कृत साहित्यशास्त्र एवं साहित्य, पृष्ठ 8) इस प्रकार के हिंदी महाकाव्यों में चंदबरदाई कृत 'पृथ्वीराज रासो', मलिक मुहम्मद जायसी कृत 'पद्मावत', तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस', केशवदास कृत 'रामचंद्रिका', मैथिलीशरण गुप्त कृत 'साकेत', अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' कृत 'प्रियप्रवास', द्वारका प्रसाद मिश्र कृत 'कृष्णायन' और जयशंकर प्रसाद कृत 'कामायनी' आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । इन सभी महाकाव्यों का सृजन थोड़ा-बहुत परिवर्तन के साथ महाकाव्य के पारंपरिक लक्षणों को आधार बनाकर किया गया है । दूसरे प्रकार के महाकाव्य का सृजन करने के लिए महाकाव्य के पारंपरिक लक्षणों का अनुपालन करना अनिवार्य नहीं है । बल्कि दूसरे प्रकार के महाकाव्य की परिभाषा, पहले प्रकार के महाकाव्य की परिभाषा के विरोध में गढ़ी गयी है । इस प्रकार के महाकाव्य का सृजन करने वाले महाकवि अपने महाकाव्य का नायक किसी देवता, कुलीन अथवा राजा को नहीं बनाते हैं । बल्कि उनके महाकाव्य का नायक कोई निम्न-वर्ग का मानव होता है, जो अपने संघर्ष के बल पर उच्चता को प्राप्त करता है । एल०एन० सुधाकर जी इस दूसरे प्रकार के महाकाव्य का सृजन करने वाले महाकवि हैं । उन्होंने बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी के जीवन-चरित्र को आधार बनाकर 'भीमसागर' का सृजन किया है । डॉ० आंबेडकर न तो कोई देवता थे, न ही कुलीन अथवा कोई राजा थे । गौतम बुद्ध का संबंध राजघराने से अवश्य था, लेकिन वे राजसी भोग के इच्छुक नहीं थे । अतः सुधाकर जी के ये दोनों महानायक महाकाव्य के पारम्परिक लक्षण से भिन्न हैं और यही कारण है कि सुधाकर जी दूसरे प्रकार के महाकवियों की श्रेणी में हैं ।


महाकवि एल०एन० सुधाकर : संक्षिप्त परिचय 

महाकवि एल०एन० सुधाकर जी का जन्म 15 मई सन् 1938 ई. को ग्राम अठलकड़ा, मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था । उन्होंने हिंदी ऑनर्स (प्रभाकर) की डिग्री पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की तथा स्नातक की डिग्री मेरठ विश्वविद्यालय से प्राप्त की । वे उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार में अनुसंधान अधिकारी (प्रथम श्रेणी) के पद पर कार्यरत रहे । वे भारतीय दलित साहित्य मंच (रजिस्टर्ड) दिल्ली के अध्यक्ष भी रह चुके हैं । सेवानिवृत्ति के पश्चात सुधाकर जी पूरी निष्ठा से साहित्य-सृजन में तल्लीन हैं । उनकी प्रकाशित रचनाओं में 'बुद्ध और बोधिसत्व आंबेडकर' (संपादित), 'भीमसागर' (प्रबंध काव्य), 'उत्पीड़न की यात्रा' (कविता संग्रह), 'आंबेडकर शतक' (काव्य), 'बुद्धसागर' (महाकाव्य), 'वामन फिर आ रहा है' (कविता संग्रह), 'प्रबुद्ध भारती' (कविता संग्रह) आदि उल्लेखनीय हैं । दिल्ली दूरदर्शन, हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा आयोजित कवि सम्मेलनों में उन्होंने आमंत्रित कवि के रूप में अनेक बार काव्यपाठ किया है । अनेक सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थानों द्वारा समय-समय पर उन्हें सम्मानित किया गया है । डॉ. आंबेडकर कल्चरल एंड एजुकेशनल सोसायटी, आगरा (उत्तर प्रदेश) द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित निबंध-प्रतियोगिता में उन्होंने द्वितीय पुरस्कार प्राप्त किया । साहित्य सेवाओं के लिए भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें डॉ. आंबेडकर नेशनल अवार्ड (1999), 'बुद्ध-सागर' के लिए भारतीय दलित साहित्य अकादमी, भोपाल (मध्य प्रदेश) द्वारा 'संत कबीर काव्यरत्न सम्मान' (2004) तथा समता सैनिक दल द्वारा विशेष साहित्य सम्मान (2007) प्रदान किया गया । वर्तमान में उनका स्थायी निवास ब्रह्मपुरी (एक्स ब्लाॅक, मकान न. 69/3, गली न. 5), दिल्ली में है ।

सुधाकर जी आंबेडकर-मिशन के प्रति कर्तव्यनिष्ठ, कर्मठ एवं संघर्षशील मिशनरी कवि हैं । वंचित-वर्ग के प्रतिभाशाली युवा साहित्यकारों के प्रति अपने उत्तरदायित्व का भली-भाँति निर्वहन करते हुए उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित करते रहते हैं । उनकी इसी चारित्रिक विशेषता ने मुझे उनके प्रति आकृष्ट किया । सुधाकर जी से मेरा परिचय फेसबुक के माध्यम से हुआ था । मेरी आंबेडकरवादी विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने वर्ष 2020 से लेकर अब तक निरंतर मेरी प्रशंसा की है और मुझे मंगलकामना दी है । मैं उनके उत्कृष्ट कृतित्व और व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उनसे मिलने की इच्छा मेरे मन में उत्पन्न हुई । 4 अप्रैल 2022, दिन - सोमवार को आदरणीय सुधाकर जी से शिष्टाचार मुलाकात करने के लिए मैं (देवचंद्र भारती 'प्रखर') और GOAL के अध्यक्ष डॉ. राम मनोहर राव जी उनके घर पहुँचे । वहाँ वरिष्ठ आंबेडकरवादी साहित्यकार रघुवीर सिंह 'नाहर' जी (अलवर, राजस्थान) और कर्मशील भारती जी (दिल्ली) भी उपस्थित थे । सभी साहित्यकारों ने एक-दूसरे को अपनी-अपनी पुस्तकों का आदान-प्रदान किया तथा आंबेडकरवादी साहित्यकारों के वैश्विक संगठन (GOAL) की ओर से माननीय एल.एन. सुधाकर जी को स्मृति-चिन्ह भेंट करके सम्मानित किया गया । उस दिन की स्मृति को कैमरे में कैद किया - 'साहित्य संस्थान' गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के प्रकाशक आशीष सिंह जी ने । सुधाकर जी से शिष्टाचार मुलाकात करके घर लौटने के बाद दूसरे दिन अचानक मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों न मैं सुधाकर जी की रचनाओं का संपादन करूँ ? यह विचार मेरे हृदय को उद्वेलित किया और मैंने सुधाकर जी की दोनों महाकाव्य-कृतियों 'बुद्धसागर' और 'भीमसागर' को आधार बनाकर 'सुधाकर सागर सार' नाम से पुस्तक का संपादन करने का निश्चय कर लिया । 

सुधाकर सागर सार  Sudhakar Sagar Saar 

इस पुस्तक में मैंने 'बुद्धसागर' और 'भीमसागर' में संग्रहीत काव्य-रचनाओं में से आंबेडकरी आंदोलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और वर्तमान में भारतीय समाज के लिए अत्यंत आवश्यक विषयों पर रचित कविताओं को चयनित करके संकलित किया है । इन कविताओं के चयन में अनेक बातों का ध्यान रखा गया है । यथा :

1. ऐसे प्रकरण पर रचित कविताएँ, जिनके विषय में आंबेडकर के अनुयायियों को अनिवार्य रूप से जानना चाहिए ।
2. ऐसी कविताएँ, जो हृदय में समता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्व, प्रेम, करुणा, शील और प्रज्ञा का भाव उत्पन्न करने में समर्थ हैं ।
3. ऐसी कविताएँ, जो व्यक्ति के मन में अनीश्वरवाद और अनात्मवाद की धारणा को प्रबलता प्रदान करती हैं ।
4. ऐसी कविताएँ, जिनमें अभिव्यक्त विचारों का अध्ययन करके व्यक्ति में सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, शैक्षिक और साहित्यिक क्रांति करने हेतु साहस, धैर्य, सहनशीलता और ऊर्जा आदि प्राप्त होते हैं ।
5. ऐसी कविताएँ, जिनकी भाषाशैली साहित्यिक होने के साथ-साथ आमजन की समझ के अनुकूल हैं तथा सहज, सरल और ग्राह्य हैं ।


पुस्तक - सुधाकर सागर सार 
संपादक - देवचंद्र भारती 'प्रखर'
पृष्ठ - 150  
मूल्य - ₹200
प्रकाशक - साहित्य संस्थान, गाजियाबाद 
सम्पर्क - 83758 11307

बुद्धसागर :  समीक्षात्मक परिचय 

सुधाकर जी के महाकाव्य 'बुद्धसागर' का प्रथम संस्करण वर्ष 2019 में प्रकाशित हुआ था ।  अपने इस महाकाव्य को उन्होंने बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर को समर्पित किया है । उन्होंने 'समर्पण' में लिखा है, " उन्हीं बोधिसत्व स्वरूप बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर जी को, जिन्होंने नागपुर में 14 अक्टूबर सन 1956 ई० के दिन अपने पाँच लाख अनुयायियों के साथ बुद्ध-शरण ग्रहण कर भारत में एक महान धम्मक्रांति का जयघोष किया । " ( बुद्धसागर, समर्पण पृष्ठ) सुधाकर जी ने अपने महाकाव्य 'बुद्धसागर' की संपूर्ण कथावस्तु को सात सोपानों में प्रबंधित किया है । प्रथम सोपान में वंदना, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, जन्म, असित ऋषि का आगमन, महामाया की की मृत्यु, नामकरण संस्कार, हंस पर दया, शिक्षा, विवाह, शाक्य संघ में दीक्षा, राहुल का जन्म, गृहत्याग (महाभिनिष्क्रमण), प्रव्रज्या, कपिलवस्तु से राजगृह (मगध नरेश बिंबिसार से भेंट), भृगु आश्रम पर, आलार कलाम से सांख्य दर्शन तथा समाधि मार्ग का अध्ययन, तपस्या का परीक्षण, तपस्या का त्याग, सुजाता का खीर दान, बुद्धत्व प्राप्ति, सद्धर्म पंडरीक आदि प्रकरणों का समावेश है । इन प्रकरणों में से विवाह, देशनिकाला दंड, प्रव्रज्या ग्रहण, तपश्चर्या का परीक्षण, तपश्चर्या का त्याग, सुजाता का खीर दान, बुद्धत्व प्राप्ति आदि को ही मैंने 'सुधाकर सागर सार' में संकलित किया है । सुधाकर जी ने सिद्धार्थ-यशोधरा विवाह का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है । उन्होंने स्वयंवर-सभा में उपस्थित सिद्धार्थ गौतम की मानसिक स्थिति, शारीरिक गतिविधि और चारित्रिक व्यवहार आदि का मनोहारी चित्रण किया है । कुंडलिया छंद में रचित ये काव्य-पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं :

सिद्धार्थ उठते नहीं, करने शर-संधान ।
यशोधरा व्याकुल बड़ी, भूली मृदु मुस्कान ।।
भूली मृदु मुस्कान, सभा का रंग था फीका ।
तभी किसी ने किया व्यंग गौतम पर तीखा ।।
चला न जाने तीर, नाम सिद्धार्थ अखार्थ ।
सहज सुधाकर उठे लक्ष्यभेदन सिद्धार्थ ।।

........................'बुद्धसागर' के बारे में पूरा समीक्षात्मक परिचय पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें -

भीमसागर :  समीक्षात्मक परिचय 

सुधाकर जी के महाकाव्य 'भीमसागर' का प्रथम संस्करण वर्ष 2019 में प्रकाशित हुआ था । यह महाकाव्य सात सर्गों में विभाजित है । 'भीमसागर' के प्रथम सर्ग में वंदना, गुरु महिमा, आत्मबोध, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, भीम जन्म, विद्यालय प्रवेश, मातृ विहीन बालक भीम, विवाह, बड़ौदा राज्य में लेफ्टिनेंट, पितृ शोक, उच्च शिक्षा हेतु अमेरिका प्रस्थान, बड़ौदा में अर्थ सचिव, प्रोफ़ेसर आंबेडकर, मूकनायक पत्र का प्रकाशन, लंदन में शोध कार्य आदि प्रकरणों का समावेश है । इन प्रकरणों में से भीम जन्म, शिक्षालय प्रवेश और प्रोफेसर आंबेडकर को ही मैंने 'सुधाकर सागर सार' में संकलित किया है । महाकवि सुधाकर जी ने भीमराव की बाल्यावस्था का मनोरम चित्रण किया है । उन्होंने नाटकीय शैली का प्रयोग करके भीमाबाई और भीमराव के विचार, संवाद और मौन क्रिया को जीवंत कर दिया है । सुधाकर जी ने भीमराव के बाल-व्यक्तित्व का यथार्थ एवं मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है । भीमराव बचपन से ही भीमकाय और बलिष्ठ थे । उनके चंचल और शरारती व्यक्तित्व के कारण बचपन में उनकी माँ को बार-बार उनकी शिकायतों का सामना करना पड़ता था । भीमाबाई अपने प्रिय पुत्र 'भिवा' के कान खींचकर उन्हें दंडित करतीं, लेकिन बाद में उन्हें खूब दुलारती । सुधाकर जी के शब्दों में :

अकेला लेता दस को मार ।
रोज घर लाता था तकरार ।।
डाँटकर कहती माँ ललकार ।
पड़ेगी बेहद तुम पर मार ।।
पकड़कर कहती उसके कान ।
बड़ा तू नटखट है नादान ।।
भीम रो पड़ते अपने आप ।
मौन हो करते पश्चाताप ।।

................................'भीमसागर' के बारे में पूरा समीक्षात्मक परिचय पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें -

बौद्ध-आंबेडकरवादी महाकवि एल०एन० सुधाकर जी मानवतावादी महापुरुषों के महान विचारों और कार्यों का वर्णन-चित्रण करने वाले महान कवि हैं । उनकी महानता के अनेक लक्षण हैं । सबसे पहला लक्षण तो यही है कि वे केवल अच्छे-अच्छे विचारों को लिखते और कहते ही नहीं हैं, बल्कि उन विचारों के अनुसार कार्य भी करते हैं । सुधाकर जी बौद्ध धम्म के पंचशीलों के अनुसार जीवनयापन करते हैं । उनका चरित्र तथागत बुद्ध और डॉ० आंबेडकर के समान निर्दोष है । एक महाकवि के रूप में उनकी भाषाशैली और काव्यकला बेजोड़ हैं । वे काव्य छंदों के विशेषज्ञ हैं । छंदों में केवल मात्रा और वर्णों की गणना करना ही पर्याप्त नहीं होता है, बल्कि उसमें लय का विशेष ध्यान रखा जाता है । सुधाकर जी इस मायने में बहुत ही सतर्क रचनाकार हैं । उन्होंने अपने दोनों महाकाव्यों 'बुद्धसागर' और 'भीमसागर' में विविध छंदों का प्रयोग कुशलतापूर्वक किया है । काव्य-सौंदर्य के रूप में रस, छंद, अलंकार सहित भाव-सौंदर्य, विचार-सौंदर्य, नाद-सौंदर्य, कल्पना-सौंदर्य, बिंब, प्रतीक आदि सभी उनके महाकाव्य में उपस्थित हैं । उनके महाकाव्य में काव्य के तीनों गुण ओज, प्रसाद और माधुर्य यत्र-तत्र लक्षित होते हैं । जहाँ क्रांति का भाव हो, वहाँ ओज गुण का होना स्वाभाविक है । जहाँ शील और मैत्री का भाव हो, वहाँ प्रसाद गुण अनिवार्यतः होता है । जहाँ प्रेम और करुणा का भाव हो, वहाँ माधुर्य गुण स्वतः उपस्थित हो जाता है । बौद्ध-आंबेडकरवादी विचारधारा के मूल में ये सारे भाव सन्निहित हैं । अतः महाकवि सुधाकर जी के काव्य में गुणों का समावेश अनायास हो गया है ।

पुस्तक - सुधाकर सागर सार 
संपादक - देवचंद्र भारती 'प्रखर'
पृष्ठ - 150  
मूल्य - ₹200
प्रकाशक - साहित्य संस्थान, गाजियाबाद 
सम्पर्क - 83758 11307

15 मई 2022
(महाकवि एल०एन० सुधाकर जी का जन्मदिन)            
आंबेडकरवादी साहित्यकार एवं समालोचक
संपादक - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका 
संस्थापक एवं महासचिव - 'GOAL'

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