मनोहर लाल प्रेमी के दोहों में आंबेडकरवादी चिंतन के विविध रूप

वरिष्ठ आंबेडकरवादी कवि मनोहर लाल प्रेमी जी बौद्ध धम्म दर्शन एवं बुद्धवाणी के सच्चे व कर्मठ प्रचारक हैं । उनकी कविताओं में आंबेडकरवादी चेतना सर्वत्र व्याप्त है । प्रेमी जी के नवीनतम प्रकाशित दोहा-संग्रह का नाम 'जन चेतना के स्वर' है । इस पुस्तक की भूमिका समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' जी ने लिखा है । भूमिका का मूल रूप 'मनोहर लाल प्रेमी के दोहों में आंबेडकरवादी चिंतन के विविध रूप' शीर्षक से यहाँ प्रस्तुत है ।


मनोहर लाल प्रेमी के दोहों में आंबेडकरवादी चिंतन के विविध रूप

आंबेडकरवादी चिंतन का आधार आंबेडकरवादी चेतना है । आंबेडकरवादी चेतना क्या है ? इसका विस्तृत विवेचन 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका और 'आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान' पुस्तक में किया जा चुका है । आंबेडकरवादी चेतना के अंतर्गत बौद्ध दर्शन, वैज्ञानिक दृष्टि और सामाजिक यथार्थ आदि को समाविष्ट किया जाता है । बौद्ध दर्शन के प्रमुख अंग हैं - अनीश्वरवाद, अनात्मवाद और प्रतीत्यसमुत्पाद । बौद्ध दर्शन का अनुसरण करने वाला मनुष्य ईश्वर की सत्ता को नहीं मानता है । अनीश्वरवादी मनुष्य यह भी नहीं मानता है कि मंदिरों, पहाड़ों, नदियों और वृक्षों में किसी अदृश्य ईश्वर का वास होता है । बौद्ध मनुष्य वैज्ञानिक दृष्टि से संपन्न होता है तथा शोधपूर्ण वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित बातों पर विश्वास करता है । बुद्ध का अनुयायी मनुष्य अलौकिक कल्पनाओं को निराधार मानते हुए सांसारिक/सामाजिक यथार्थ पर आधारित बातों और विचारों को महत्व देता है । बौद्ध धम्म के महान ज्ञाता बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपने ग्रंथ 'बुद्ध और उनका धम्म' में बौद्ध धम्म दर्शन की तार्किक एवं सुस्पष्ट समालोचना की है । साथ ही, उन्होंने कुछ मौलिक विचारों का भी प्रतिपादन किया है । बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के दार्शनिक विचारों को 'आंबेडकरवाद' के नाम से जाना जाता है । आंबेडकर-दर्शन विश्व के अनेक दर्शनों का समुच्चय है । यही कारण है कि आंबेडकरवाद अत्यंत व्यापक एवं लोक कल्याणकारी विचारधारा है । आंबेडकरवादी चेतना से परिपूर्ण मनुष्य बुद्धवाणी का अनुपालन करता है । वरिष्ठ आंबेडकरवादी कवि मनोहर लाल प्रेमी बौद्ध धम्म दर्शन एवं बुद्धवाणी के कर्मठ प्रचारक हैं । वे अपने दोहों में बुद्ध की अमृतवाणी को उद्घाटित करते हुए हृदय में मैत्रीभाव धारण करने का संदेश देते हैं । यथा :

अमृतवाणी बुद्ध की, ले जो हृदय धार ।
कटुता जलकर खाक हो, हिय मैत्री विस्तार ।।

बौद्ध धम्म के अनुयायियों के लिए अपने दैनिक जीवन में बौद्धचर्या का पालन करना अनिवार्य है । बौद्धचर्या के अंतर्गत पंचशील का विशेष महत्व है । पंचशील में पाँचवा शील ग्रहण करते हुए यह प्रतिज्ञा ली जाती है - सुरामेरयमज्ज पमादट्ठाना वेरमणि सिक्खापदं समादियामि । प्रेमी जी पंचशील की इसी प्रतिज्ञा को ध्यान में रखते हुए जन-जन को मद्यपान से विरत रहने की प्रेरणा देते हैं । साथ ही, वे नशा के दुष्परिणाम से सावधान भी करते हैं । अवलोकनार्थ :

नशा नशाए जिंदगी, सहज घटाए मान । 
आपे में नर ना रहे, खोता नित पहचान ।।

आंबेडकरवादी विचारधारा का व्यक्ति डॉ. आंबेडकर के विचारों के अनुसार जीवनयापन करने के साथ ही 'जय भीम' कहकर अपने प्रिय जनों का अभिवादन भी करता है । अभिवादन के शब्द ही किसी व्यक्ति की विचारधारा का संकेत करते हैं । इसलिए प्रेमी जी 'जय भीम' अभिवादन की महत्ता का गान करते हैं । उनका मानना है कि इस अभिवादन से हृदय में निर्भीकता आ जाती है और व्यक्ति अनुशासित हो जाता है । प्रेमी जी के शब्दों में :

बाबा साहब को नमन, अभिवादन जय भीम ।
हृदय भरे निर्भीकता, अनुशासन की थीम ।।

बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों को मानने वाले लोग उनके एक-एक कार्य को महत्वपूर्ण मानते हैं । यहाँ तक कि उनके द्वारा रचित ग्रंथ भी उनके अनुयायियों के लिए सर्वमान्य हैं । यह सर्वविदित है कि डॉ. आंबेडकर भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे । उन्हें भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है । संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों के कारण भारत का वंचित-वर्ग विकास की स्थिति को प्राप्त हुआ है । कवि मनोहर लाल प्रेमी अपने दोहे में इस सामाजिक यथार्थ को प्रकट करते हैं कि संविधान से ही दलित व्यक्ति विद्वान बने हैं और उनकी शान में वृद्धि हुई है । उदाहरणार्थ :

संविधान से ही बने, दलित आज विद्वान ।
संविधान से ही मुखर, आन बान और शान ।।

आजकल बहुजन समाज, बहुजन साहित्य, बहुजन इतिहास आदि शब्दों का बहुत अधिक प्रयोग किया जा रहा है । ऐतिहासिक अध्ययन से ज्ञात होता है कि 'बहुजन' शब्द तथागत गौतम बुद्ध के धम्मोपदेशों (त्रिपिटक) से लिया गया है । तथागत बुद्ध के धम्म की विशेषता के बारे में लोकचर्चित उक्ति है - बहुजन हिताय बहुजन सुखाय । तथागत बुद्ध ने भिक्खुओं को आदेश देते हुए कहा था - चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय लोकानुकंपाय अत्थाय हिताय सुखाय देव मनुस्सानं देसेथ भिक्खवे धम्म आदि कल्याणं मज्झं कल्याणं परियोसान कल्याणं । बुद्ध के इस कथन से स्पष्ट है कि उनका धम्म बहुत बड़े जन समुदाय के हित और सुख के लिए है । बुद्ध का 'बहुजन' जाति और वर्ग से विहीन 'दीर्घ जनसमूह' का बोधक है । वर्तमान में, राजनीतिक मानसिकता के लोगों ने 'बहुजन' शब्द को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग तक ही सीमित कर दिया है । कवि मनोहर लाल प्रेमी बौद्ध धम्म के सच्चे अनुयायी हैं । वे 'बहुजन' शब्द को व्यापक अर्थ में ग्रहण करते हैं । प्रेमी जी भारतवर्ष की उन्नति के लिए बहुजन-एकता की प्रेरणा देते हैं । यथा :

बहुआयामी है बड़ा, बहुजन शब्द विशेष ।
रहें संगठित सजग हो, विकसे भारत देश ।।

आंबेडकरवादी चेतना और दृष्टि से संपन्न मनोहर लाल प्रेमी एक जागरूक कवि हैं । वे अपने आसपास के माहौल की हमेशा खबर रखते हैं । लखनऊ में उनका निवास है । वे लखनऊ में हो रहे वायु-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण से चिंतित हैं । प्रेमी जी ने अपनी इस चिंता को अपने एक दोहे में व्यक्त किया है ।

शहर लखनऊ में अहम, प्रदूषण पुरजोर । 
वाहन से निकला धुआँ, तेज ध्वनि का शोर ।।

वृक्षों की कमी के कारण उत्पन्न मानसूनी दुष्परिणाम को ध्यान में रखते हुए कुछ वर्षों से सरकारी योजना के तहत वृक्षारोपण कार्यक्रम निरंतर संचालित किये जा रहे हैं । वृक्षारोपण के रूप में भिन्न-भिन्न प्रकार के वृक्ष लगाए जाते हैं । किंतु केवल बोधिवृक्ष (पीपल) का अत्यधिक संख्या में रोपण किया जाए, तो किसी भी व्यक्ति के लिए आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक है । प्रेमी जी अपने शहर में पहली बार हुये बोधिवृक्ष-रोपण से आश्चर्यचकित हो जाते हैं । इसलिए उनके मन में प्रश्न उत्पन्न होता है कि वह व्यक्ति कौन है, जिसके मन में इस प्रकार का विचार आया ? प्रेमी जी जब अपने दोहे में 'जन ऑक्सीजन स्रोत' पद का प्रयोग करते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे बोधि-वृक्षारोपण करने वाले उस अपरिचित व्यक्ति के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हैं । क्योंकि बोधिवृक्ष का रोपण करना एक महान कार्य है और ऐसा महान कार्य कोई महान व्यक्ति ही कर सकता है । 'बोधिवृक्ष' नाम से ही स्पष्ट है कि यह वृक्ष 'ज्ञान' का प्रतीक है, जिसका सीधा संबंध तथागत गौतम बुद्ध और उनकी कठिन तपस्या से है । ऑक्सीजन का विशाल स्रोत होने के कारण भी बोधिवृक्ष महत्वपूर्ण है । लखनऊ जैसे प्रदूषित शहर में बोधिवृक्ष का रोपण करने से वातावरण को तेजी से शुद्ध किया जा सकता है । इसीलिए प्रेमी जी बोधि-वृक्षारोपण के इस पुनीत कार्य को एक विशेष उपलब्धि के रूप में चिन्हित करते हैं । यथा :

किसके मन की सोच ये, थी किसकी अप्रोच ।
बोधिवृक्ष रोपित हुये, जन ऑक्सीजन स्रोत ।।

कविवर प्रेमी जी जीवन के हर क्षेत्र की पर्याप्त जानकारी रखते हैं । धम्म-दर्शन, साहित्य और समाज के अतिरिक्त प्रेमी जी शिक्षा के क्षेत्र का भी अद्यतन समाचार प्राप्त करते रहते हैं ।
✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर', समीक्षक 
 
शिक्षा के क्षेत्र में मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील स्कीम) भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त 1995 को आरंभ की गयी । इस योजना के अन्तर्गत पूरे देश के प्राथमिक और लघु माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों को दोपहर का भोजन निःशुल्क प्रदान किया जाता है । इस योजना के समर्थक लोगों का कहना है कि नामांकन बढ़ाने, प्रतिधारण और उपस्थिति तथा इसके साथ-साथ बच्चों में पौषणिक स्तर में सुधार करने के उद्देश्य से इस योजना को शुरू किया गया था । क्योंकि अधिकतर बच्चे खाली पेट विद्यालय पहुँचते हैं । जो बच्चे विद्यालय आने से पहले भोजन करते हैं, उन्हें भी दोपहर तक भूख लग जाती है और वे अपना ध्यान पढाई पर केंद्रित नहीं कर पाते हैं । मध्यान्ह भोजन योजना के पक्षधर लोगों का मानना है कि मध्याह्न भोजन बच्चों के लिए 'पूरक पोषण' के स्रोत और उनके स्वस्थ विकास के रूप में भी कार्य कर सकता है तथा यह समतावादी मूल्यों के प्रसार में भी सहायता कर सकता है, क्योंकि कक्षा में विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि वाले बच्चे साथ में बैठते हैं और साथ-साथ खाना खाते हैं । विशेष रूप से मध्याह्न भोजन विद्यालय में बच्चों के मध्य जाति व वर्ग के अवरोध को मिटाने में सहायक हो सकता है । विद्यालय की भागीदारी में लैंगिक अंतराल को भी यह कार्यक्रम कम कर सकता हैं, क्योकि यह बालिकाओं को विद्यालय जाने से रोकने वाले अवरोधों को समाप्त करने में भी सहायता करता है । मध्याह्न भोजन योजना छात्रों के ज्ञानात्मक, भावात्मक और सामाजिक विकास में सहायता करता है । सुनियोजित मध्याह्न भोजन को बच्चों में विभिन्न अच्छी आदतें डालने के अवसर के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है । ये सारी बातें तो वे लोग कहते हैं, जो मध्यान्ह भोजन योजना के पक्ष में है । किंतु मनोहर लाल प्रेमी को इस योजना का दुष्परिणाम दिखाई देता है । उन्हें यह योजना प्राथमिक शिक्षा में बाधक जान पड़ती है । प्रेमी जी के शब्दों में :

बेसिक शिक्षा में रहा, बाधक मिड डे मील ।
बँटा ज्ञान की जगह पर, खिचड़ी दलिया खीर ।।

प्रेमी जी के आंबेडकरवादी चिंतन की विविधता का एक रूप उनकी राजनैतिक जागरूकता भी है । राजनैतिक क्षेत्र से अनभिज्ञ व्यक्ति सभी क्षेत्रों का अभिज्ञ होकर भी पिछड़ा माना जाता है ।   
✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर', समीक्षक 

राजनैतिक क्षेत्र में जीएसटी द्वारा उत्पन्न हलचल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है । जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर भारत में 1 जुलाई 2017 से लागू एक महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है, जिसे सरकार व कई अर्थशास्त्रियों द्वारा स्वतंत्रता के पश्चात् सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया गया है । इसके लागू होने से केन्द्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भिन्न-भिन्न दरों पर लगाये जा रहे विभिन्न करों को हटाकर पूरे देश के लिए एक ही अप्रत्‍यक्ष कर प्रणाली लागू हो गयी है । वस्तु एवं सेवा कर परिषद (जीएसटी काउंसिल) ने पाँच तरह के कर निर्धारित किये हैं - 0%, 5%, 12%, 18% एवं 28% । आरंभ में परिषद ने कहा था कि आवश्यक वस्तुओं जैसे कि दूध, लस्सी, दही, शहद, फल एवं सब्जियां, आटा, बेसन, ताजा मीट, मछली, चिकन, अंडा, ब्रेड, प्रसाद, नमक, बिंदी, सिंदूर, स्टांप, न्यायिक दस्तावेज, छपी पुस्तकें, समाचार पत्र, चूड़ियाँ और हैंडलूम आदि वस्तुओं पर जीएसटी नहीं लगेगा । लेकिन 18 जुलाई 2022 से पैकेटबंद खाद्य उत्पादों पर पाँच प्रतिशत की दर से जीएसटी लगने लगा है । इस बारे में भारत सरकार के राजस्व सचिव तरुण बजाज ने कहा कि इन उत्पादों पर कर की चोरी हो रही थी, जिसे रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है । कुछ राज्यों ने भी इसकी माँग की थी । उन्होंने यह भी कहा कि पैकेटबंद खाद्य उत्पादों पर जीएसटी लगाने का फैसला केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि जीएसटी परिषद का है । जीएसटी दरों के बारे में सुझाव देने वाली 'फिटमेंट समिति' ने इस बारे में निर्णय किया था । यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि ताज़ी सब्ज़ियाँ, फल, प्याज़, लहसुन, मीट, अंडे और दूध जीएसटी से मुक्त हैं । वहीं किसी ब्रांड के पैक्ड मीट पर 5% जीएसटी लगाने का प्रावधान है । इसके अतिरिक्त कोकोआ, चॉकलेट उत्पादों पर 18%, जबकि सॉफ्ट ड्रिंक्स पर 28% जीएसटी देना पड़ता है । कविवर प्रेमी जी की इच्छा है कि किसी भी रूप में भोजन सामग्री पर जीएसटी न लगे । उनका ऐसा अनुमान है कि इस तरह का निर्णय लेने से भोजन सामग्री कम मूल्य में उपलब्ध हो जाएगी, जिसके फलस्वरूप निर्धन व्यक्ति भी सरलता से भोजन सामग्री प्राप्त कर सकेगा और भूख से उसे प्राण त्यागना नहीं पड़ेगा ।

भोजन सामग्री रहे, यदि जीएसटी मुक्त ।
मरे गरीब न भूख से, जनहित यह उपयुक्त ।।

आंबेडकरवादी चेतना के लक्षणों में एक लक्षण लोकतंत्र की पक्षधरता भी है । मताधिकार, लोकतंत्र की रीढ़ है । भारत का हर नागरिक अपने मताधिकार का निर्वहन करते हुए मतदान करता है । मतदान के बारे में कहा जाता है कि यह निर्णय लेने या अपना विचार प्रकट करने की एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके द्वारा किसी वर्ग या समाज का सदस्य राज्य की संसद या विधानसभा में अपना प्रतिनिधि चुनने में अपनी इच्छा प्रकट करता है । कवि प्रेमी जी मत को बहुत ही मूल्यवान मानते हैं । लोकतंत्र प्रणाली में मत (विचार) का स्थान सर्वोपरि है । मत में वह शक्ति है, जो क्षणमात्र में सत्ता-परिवर्तन कर देती है । इसलिए प्रेमी जी लोभरहित और निर्भीक होकर मतदान करने की प्रेरणा देते हैं, ताकि सत्ता के लिए सही व्यक्ति का चुनाव हो सके । 

मूल्यवान है मत अधिक, लोकतंत्र का मान ।
लोभरहित निर्भीक हो, करें सभी मतदान ।।

कवि मनोहर लाल प्रेमी आंबेडकरवादी चिंतन के व्यापक स्वरूप को स्वीकार करते हैं । उनकी चेतना में धर्म, समाज, शिक्षा, साहित्य, राजनीति आदि के लिए क्षेत्रीयता और भाषायी सीमा का कोई बंधन नहीं है । भाषा के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव उन्हें पसंद नहीं है । प्रेमी जी हिंदी भाषा के मूल अर्थ और परिभाषा को ध्यान में रखते हुए उसकी भाषा वैज्ञानिक विशेषता का गुणगान करते हैं । हिंदी का अर्थ है - हिंद (भारत) का निवासी । वास्तव में, हिंदी किसी राज्य विशेष की नहीं, बल्कि समस्त भारतवासियों की भाषा है । कविवर प्रेमी जी ने हिंदी की सरसता, सरलता और मधुरता को सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है । उदाहरणार्थ :

हिंदी हरती वाक्य के, सब भाषागत क्लेश ।
नशती स्वतः दुरूहता, धारे मधुतम वेश ।।

आंबेडकरवादी चेतना का स्वरूप इतना व्यापक है कि यह जन-जन के लिए कल्याणकारी है । वास्तव में, आंबेडकरवादी चेतना बहुजन हितैषी चेतना है । आंबेडकरवादी चेतना का स्वर जनचेतना के स्वर में मिलकर उसे अत्यधिक प्रबल बना देता है । कवि मनोहर लाल प्रेमी ने 'जनचेतना के स्वर' नाम से आंबेडकरवादी चेतना को छंदबद्ध  करके इसे और भी अधिक व्यापक रूप प्रदान किया है । प्रेमी जी के दोहों में आंबेडकरवादी चिंतन के विविध स्वरूप को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । चूँकि प्रेमी जी 'ग्लोबल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ आंबेडकराइज्ड लिटरेटिअर्स (आंबेडकरवादी साहित्यकारों का वैश्विक संगठन GOAL) के वर्तमान उपाध्यक्ष हैं, इसलिए उनके ऊपर साहित्यिक दायित्व का भार अधिक है । प्रेमी जी अपने दायित्व का सहर्ष निर्वहन करते हुए दिखाई देते हैं । उनके द्वारा रचित दोहा-संग्रह 'जनचेतना के स्वर' आंबेडकरवादी साहित्य की अमूल्य निधि है ।

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✍️  देवचंद्र भारती 'प्रखर'
आंबेडकरवादी साहित्यकार एवं समालोचक
संपादक - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका 
संस्थापक एवं महासचिव - 'GOAL' 🏠 वाराणसी 
📱 दूरभाष - 9454199538
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