आंबेडकरवाद : दिशा एवं दृष्टि

प्रस्तुत लेख एक संपादकीय लेख है, जो 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका के अंक-3 से साभार लिया गया है । 'आंबेडकरवादी साहित्य' एक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका है, जो वाराणसी (उत्तर प्रदेश) से प्रकाशित होती है । इस पत्रिका का प्रकाशन सन् 2021 में आरंभ हुआ था । 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका के संपादक प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' हैं ।

आंबेडकरवाद : दिशा एवं दृष्टि Ambedkarvad - Disha Evam Drishti 

आंबेडकरवाद के संदर्भ में भ्रमित लोगों के भ्रम-निवारण हेतु ही 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका के इस तृतीय अंक का विषय 'आंबेडकरवाद : दिशा एवं दृष्टि' रखा गया है । आंबेडकरवाद को सम्यक रूप में समझने के लिए सर्वप्रथम 'वाद' का आशय समझना अनिवार्य है । शब्दकोश के अनुसार 'वाद' का अर्थ है, " वह दार्शनिक सिद्धांत, जिसके अनुसार संसार की सत्ता उसी रूप में मानी जाती है, जैसी वह सामान्य मनुष्य को दृष्टिगोचर है । " [2] 'वाद' शब्द संस्कृत के 'वाक्' शब्द से बना है । 'वाक्' का अर्थ है - 'वाणी'; तथा 'वाद' का अर्थ है - कथन, सिद्धांत, विचारधारा । इस प्रकार 'आंबेडकरवाद का' अर्थ है - आंबेडकर का कथन, आंबेडकर का सिद्धांत, आंबेडकर की विचारधारा । प्रायः लोग डाॅ० आंबेडकर के दो-चार कथनों को आधार बनाकर आंबेडकरवाद को समझने का प्रयास करते हैं, जबकि यह तरीका बिल्कुल गलत है । आंबेडकरवाद को समझने के लिए डॉ० आंबेडकर के संपूर्ण साहित्य का अध्ययन करना आवश्यक है । डॉ० आंबेडकर के साहित्य और उनके द्वारा किये गये सामाजिक कार्यों के मूल्यांकन से स्पष्ट हो जाता है कि उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत कौन-कौन से हैं और उनकी विचारधारा के अंतर्गत कौन-कौन से महापुरुष सम्मिलित होते हैं ? डॉ० आंबेडकर की विचारधारा में प्रमुख रूप से अनीश्वरवाद, अनात्मवाद, समता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्व और प्रेम आदि तत्वों का समावेश है । डॉ० आंबेडकर की विचारधारा में तथागत बुद्ध, संत कबीर, गुरु रैदास, ज्योतिराव फुले, पेरियार रामास्वामी, नारायण गुरु, संत गाडगे आदि महापुरुषों की दृष्टि और विचार समाविष्ट हो जाते हैं । इस प्रकार 'आंबेडकरवाद' एक व्यापक दृष्टिकोण की सार्वकालिक विचारधारा लक्षित होती है, जिसमें समय के साथ हुये परिवर्तनों को शामिल करने की विशेषता है । इस आधार पर यह दावा किया जा सकता है कि आंबेडकरवाद भविष्य में आने वाले किसी भी समय में अप्रासंगिक नहीं हो सकता है । इसका एक कारण यह भी है कि आंबेडकरवाद का विश्व के अनेक वादों से घनिष्ठ संबंध है । आंबेडकरवाद का जिन वादों से संबंध है, उनमें मानवतावाद, बुद्धवाद, बहुजनवाद, यथार्थवाद, प्रकृतिवाद, प्रयोजनवाद, आदर्शवाद और सुधारवाद आदि के नाम शामिल हैं । विस्तृत जानकारी और स्पष्टीकरण के लिए 'आंबेडकरवादी कविता के प्रतिमान' पुस्तक का अध्ययन करें । 


आंबेडकरवादी व्यक्ति की क्या पहचान है अथवा किसे सही मायने में आंबेडकरवादी माना जा सकता है ? इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि आंबेडकरवादी चेतना के बिंदु कौन-कौन से हैं ? वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए तथा सामाजिक परिवर्तन को स्वीकार करते हुए मैंने आंबेडकरवादी चेतना को दस बिंदुओं में सीमित किया है । व्यवस्थित और क्रमबद्ध रूप में आंबेडकरवादी चेतना के बिंदु हैं - (1) बुद्ध और उनके धम्म को डॉ० आंबेडकर के दृष्टिकोण से स्वीकार करना । (2) ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को नकारना । (3) वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना । (4) हिंदू देवी-देवताओं को काल्पनिक मानना तथा उनकी चर्चा भी नहीं करना । (5) जातिवाद, लिंगवाद और वर्चस्ववाद का विरोध करना । (6) अंतर्जातीय विवाह का समर्थन करना । (7) अंधविश्वास, ढोंग और पाखंड की आलोचना करना । (8) समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय और प्रेम की भावना को धारण करना । (9) " शिक्षित हो, संगठित हो और संघर्ष करो " की प्रेरणा देना । (10) मैत्री, करुणा और शील का संदेश देना । 

आंबेडकरवाद में इतनी विशेषताएँ होने के उपरांत भी लोग आंबेडकरवादी बनने से क्यों परहेज करते हैं, इसके अनेक कारण हैं । लोग गांधीवादी, मार्क्सवादी, बहुजनवादी और समतावादी बन जाते हैं, लेकिन आंबेडकरवादी नहीं बन पाते हैं । क्योंकि गांधीवादी, मार्क्सवादी, बहुजनवादी और समतावादी बनना आसान है, जबकि आंबेडकरवादी बनना मुश्किल है । आंबेडकरवाद और आंबेडकरवादियों के संदर्भ में वर्तमान समस्या यह है कि आंबेडकरवाद को जाति के दायरे तक सीमित रखा जा रहा है ? जो लोग इस भ्रम में हैं और जो लोग यह भ्रम फैला रहे हैं, वे सभी सत्य और मानवता के शत्रु हैं । अन्य जाति/वर्ग के लोगों को भला क्या दोष दिया जाए, जब स्वयं को आंबेडकरवादी कहने वाले अनुसूचित जाति के लोग ही आंबेडकरवाद को एक संकुचित विचारधारा के रूप में ग्रहण किये हुये हैं । अधिकांश लोग बहुजन समाज पार्टी का डंडा-झंडा उठाकर अपने आपको आंबेडकरवादी कहते हैं । उन लोगों को इस भ्रम से निकलना होगा, क्योंकि बसपावादी होना और आंबेडकरवादी होना, ये दो भिन्न-भिन्न बातें हैं । इसी प्रकार बामसेफ, बहुजन मुक्ति पार्टी, भीम आर्मी आदि संगठनों से जुड़ जाने का मतलब आंबेडकरवादी होना नहीं है । इन सभी संगठनों के मुखिया ही जब पूरी तरह आंबेडकरवादी नहीं हैं, तो इन संगठनों से जुड़े सदस्यों को आंबेडकरवादी समझना और मानना सर्वथा गलत है । आंबेडकरवादी कहलाने के लिए सबसे पहली आवश्यक शर्त है - डॉ० आंबेडकर द्वारा ली गयी बाईस प्रतिज्ञाओं का पालन करना । जो बाईस प्रतिज्ञाओं का पालन नहीं करता है, वह भले ही मंच पर गला फाड़कर अपने आपको आंबेडकरवादी के रूप में घोषित करता रहे, लेकिन उसे आंबेडकरवादी नहीं माना जा सकता है ।

✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर'
🏠 वाराणसी, उत्तर प्रदेश
आंबेडकरवादी साहित्यकार एवं समालोचक
संपादक - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका 
संस्थापक एवं महासचिव - 'GOAL'

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