'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका के संपादक देवचंद्र भारती 'प्रखर' ने दिनांक 03-04-2023 को महाकवि एल.एन. सुधाकर का साक्षात्कार लिया था । साक्षात्कार के दौरान उन्होंने महाकवि सुधाकर जी से कुल बारह प्रश्न पूछे थे । सुधाकर जी ने उन बारह प्रश्नों के उत्तर बड़ी गंभीरता से और विस्तारपूर्वक दिये थे । दोनों साहित्यकारों के बीच हुये वार्तालाप तथा प्रश्नोत्तर यहाँ प्रस्तुत हैं ।
देवचंद्र भारती 'प्रखर' के प्रश्न और महाकवि एल.एन. सुधाकर के उत्तर / साक्षात्कार Questions of Devachandra Bharati Prakhar and Answers of Mahakavi LN Sudhakar / Interview
महाकवि एल.एन. सुधाकर जी का साक्षात्कार
Mahakavi LN Sudhakar Ji Ka Sakshatkar
1. आपने साहित्य-सृजन करना कब और किस परिस्थिति में आरंभ किया था ?
उत्तर - 'हरिजन सेवक संघ' के तत्वावधान में संचालित हरिजन उद्योगशाला (आईटीआई) किंग्स-वे कैंप में 2 वर्षों तक टेलरिंग (दर्जी) का काम सीखते समय एक दिन उद्योग और एक दिन पढ़ाई का कार्य करता था । खाली समय में 'हरिजन सेवक संघ' के पुस्तकालय में साहित्यिक पुस्तकों का अध्ययन करता था । सन् 1953 में शरदचंद्र (कपाल कुंडला), बंकिमचंद्र (आनंद मठ), सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह 'दिनकर' की रचनाएँ पढ़कर साहित्य में रुचि उत्पन्न हुई । उसी वर्ष पुस्तकालय में बाबा साहेब की पुस्तक 'अछूत कौन और कैसे ?' (अनुवादक - भदंत आनंद कौशल्यायन) तथा 'शूद्रों की खोज' पढ़ा था । कविता बनाने से नहीं बनती है, कविता अंदर से फूटती है । सन् 1955 में 17 वर्ष की आयु में मैंने पहली कविता लिखा था । कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -
कोई तो बता दे तनिक मुझे,
क्या दुःख हमारे कम होंगे ?
दुःख सहे अनेकों बचपन में,
अब भी दुःख ही दुःख देख रहा ।
2. आपने साहित्य-सृजन के लिए आंबेडकरवादी आंदोलन का ही क्षेत्र क्यों चुना ?
उत्तर - सन् 1955 में दिल्ली के आंबेडकर भवन में मैंने बाबा साहेब को पहली बार देखा था । बाबा साहेब ठीक वैसे ही थे, जैसी मूर्ति संसद भवन में लगी हुई है । सन् 1957 में बाबा साहेब के घनिष्ठ सोहनलाल शास्त्री और शंकारानंद शास्त्री (संस्कृत के विद्वान) दोनों लोग मेरे बहनोई के घर के पास रहते थे । दिल्ली में आंबेडकरवादी आंदोलन का आरंभ इन दोनों शास्त्रियों की बदौलत हुआ । वे लोग हर रविवार को आंबेडकरवादी विचारधारा का सत्संग करते थे । सोहनलाल शास्त्री और अन्य लोगों का भाषण सुनकर मैंने दूसरे हफ्ते (रविवार को) सत्संग में पहली मिशन कविता सुनाई थी । वह कविता इस प्रकार है -
बाबा तेरा बलिदान विश्व में नव परिवर्तन ला देगा ।
बन करके सुकरात पिया तुमने भी गरल का प्याला है,
सदियों के शोषित मानव को कीचड़ से आज निकाला है,
भारत के मानसरोवर में समता का कमल खिला देगा ।
बाबा तेरा बलिदान विश्व में नव परिवर्तन ला देगा ।।
उसके बाद मैं हर रविवार को उस आंबेडकरवादी सत्संग में जाने लगा । तभी से मैं आंबेडकरवादी आंदोलन से जुड़ा हुआ हूँ ।
3. आंबेडकरवादी विचारधारा से पहले आप किस विचारधारा से जुड़े हुये थे ?
उत्तर - पहले मैं बौद्ध नहीं था, हिंदू ही था । हिंदू जैसा कार्य और व्यवहार करता था । लेकिन मैं कबीरपंथी था । मेरी दादी को कबीर के पचासों अमृतवाणी याद थे । मेरे परिवार के लोग जाहर वीर (पीर बाबा) को मानते थे, जिन्हें गोगा या गुग्गा वीर भी कहा जाता है । जाहर वीर वास्तव में एक नागवंशी राजा थे ।
4. आप मार्क्सवाद और आंबेडकरवाद में किसे तथा क्यों बेहतर मानते हैं ?
उत्तर - मैं आंबेडकरवाद को बेहतर मानता हूँ । मार्क्सवाद हिंसा में विश्वास करता है । इसलिए बाबा साहेब उसे पसंद नहीं करते थे । भारतीय मार्क्सवाद तथाकथित सवर्णों के हाथ में था और उन्होंने जातिवाद के विरुद्ध कभी लड़ाई नहीं लड़ी । भारतीय मार्क्सवादी ढोंगी हैं । अतः भारतीय परिप्रेक्ष्य में मार्क्सवाद से बेहतर आंबेडकरवाद है । मार्क्सवाद और हिंदूवाद में कोई अंतर नजर नहीं आता ।
5. सामान्यतः आंबेडकरवाद को लोग जाति और वर्ग तक सीमित समझते हैं । आपके विचार में क्या यह उचित है ?
उत्तर - नहीं, यह बिल्कुल अनुचित है । लोग बाबा साहेब के बारे में अनभिज्ञता के कारण इस तरह का आरोप लगाते हैं । आंबेडकरवाद जाति और वर्ग तक सीमित नहीं है ।
6. क्या आप किसी साहित्यिक संगठन अथवा संस्था से जुड़े थे ? यदि हाँ, तो आपने किस प्रकार का अनुभव किया ?
उत्तर - हाँ, मैं 'भारतीय दलित साहित्य मंच' (1984) से जुड़ा था । इस मंच के ज्यादातर सदस्य आंबेडकरवादी विचारधारा के थे । वे आंबेडकरवाद के प्रचारक थे । इसका नाम भले ही 'दलित साहित्य मंच' था, लेकिन यह संस्था बाबा साहेब के विचारों का प्रचार करने के लिए बनी थी । 'भारतीय दलित साहित्य मंच' का मैं 18 वर्षों (2002) तक अध्यक्ष रहा । मैंने स्वयं इसे छोड़ दिया वर्ष 2002 में बौद्ध भिक्षु बन गया । संघाराम बुद्ध विहार, लोनी रोड शाहदरा, नई दिल्ली में 13 अक्टूबर 2002 से 13 नवंबर 2002 तक एक महीने बौद्ध भिक्षु बना रहा ।
मैं 'भारतीय दलित साहित्य अकादमी' दिल्ली का अभी तक सदस्य हूँ । इस अकादमी ने सभी विचारधारा के एससी-एसटी के लोगों को एक मंच पर लाने का काम किया और सफल रही । लेकिन उनका ध्येय आय का साधन था । इस अकादमी में फैलोशिप दिया जाता था । ₹100 लेकर लोगों को सम्मान (फेलोशिप बैज) दिया जाता था । 'भारतीय दलित साहित्य अकादमी' के अध्यक्ष सोहनलाल सुमनाक्षर जी कांग्रेस के नेता थे । उनकी आलोचना हुई, लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा । बाबू जगजीवन राम ने 'भारतीय दलित साहित्य अकादमी' की स्थापना की थी । सुमनाक्षर जी बाबा साहेब से ज्यादा जगजीवन राम से प्रभावित थे ।
7. आपने 'बुद्ध सागर' और 'भीमसागर' नामक दो महाकाव्यों का सृजन किया है । आपको यह प्रेरणा कहाँ से प्राप्त हुई ?
उत्तर - खेमचंद सुमन, विष्णु प्रभाकर आदि साहित्यकारों तथा डॉ. धर्मवीर, डॉ. नारायणदत्त पालीवाल (हिंदी अकादमी के सचिव) से प्रेरित होकर मैंने 'भीमसागर' की रचना की । 'भीमसागर' का प्रचार-प्रसार 'हरित साहित्य मंडल' के सभी साहित्यकारों ने किया । विशेष रूप से बिहारी लाल 'हरित' और पालीवाल जी ने मुझे प्रोत्साहित किया । 'भीमसागर' की सफलता से प्रेरित और प्रोत्साहित होकर मैंने 'बुद्ध सागर' की रचना की । 'बुद्ध सागर' की रचना में लगभग दो वर्षों का समय लगा था ।
8. वर्तमान में 'दलित लेखक संघ' नाम से दो साहित्यिक संगठन सक्रिय हैं । साथ ही 'नव दलित लेखक संघ' भी अस्तित्व में है । इस बारे में आपका क्या विचार है ?
उत्तर - आरंभ में 'दलित लेखक संघ' (दलेस) बड़े-बड़े सम्मेलन किया । राजेंद्र यादव का इसमें विशेष सहयोग रहा । संस्थापक सदस्यों ने दलेस को छोड़ दिया । वर्तमान में दलेस के नाम से क्या हो रहा है ? मुझे विशेष जानकारी नहीं है । ये लोग गद्दी के भूखे हैं । ये कुर्सी की भूखे लोग हैं । सभी को पद-प्रतिष्ठा की चाह है । इसी लालच में ये लोग नया-नया संगठन बना लिये हैं । ये लोग काम नहीं करते हैं ।
9. वर्ष 2021 से GOAL नामक साहित्यिक संगठन अस्तित्व में आया है । इस संगठन के उद्देश्य और कार्यों को आप किस दृष्टि से देखते हैं ?
उत्तर - GOAL के उद्देश्य और कार्य सराहनीय हैं । GOAL के संस्थापक को मैं हृदय से प्रेम और आशीर्वाद देता हूँ ।
10. आंबेडकरवादी चिंतन और साहित्य से संबंधित अनेक पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं ? अब तक आप कितनी पत्रिकाओं से प्रभावित हुये हैं और क्यों ?
उत्तर - मैं अब तक जिन पत्रिकाओं से प्रभावित हुआ हूँ, उनके नाम इस प्रकार हैं - प्रज्ञा विजय (संपादक - भंते प्रज्ञानंद), धम्म दर्पण (भारतीय बौद्ध महासभा द्वारा प्रकाशित), दलित साहित्य वार्षिकी, दलित टुडे (संपादक - महीपाल सिंह) अंगुत्तर (संपादक - विमल कीर्ति), अस्मितादर्श (संपादक - डॉ. तारा परमार, डॉ. पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी), हिमायती (संपादक - डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर), युद्धरत आम आदमी (संपादक - रमणिका गुप्ता), जमीं के तारे (संपादक - प्रेम प्रदीप) । 'जमीं के तारे' पत्रिका में मेरी यह कविता छपी थी -
जगमग ज्योति जगा दे जग में
जाग जमीं के तारे ।
मंजिल पर जब तक ना पहुँचे,
कभी न हिम्मत हारे ।।
मैं इन सभी पत्रिकाओं से इसलिए प्रभावित हुआ, क्योंकि ये सभी पत्रिकाएँ शोषित वर्ग की आवाज उठाती रही हैं ।
11. क्या दलित स्त्रीवाद, आंबेडकरवाद अथवा स्त्री-पुरुष समानता के लिए महत्वपूर्ण है ? यदि हाँ, तो क्यों ? और नहीं, तो क्यों नहीं ?
उत्तर - नहीं, आंबेडकरवाद में दलित स्त्रीवाद के लिए कोई स्थान नहीं है । क्योंकि अंबेडकरवाद स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं करता है ।
12. पुरुषों का कोई सामाजिक/साहित्यिक संगठन नहीं है । जबकि महिलाओं के अनेक सामाजिक/साहित्यिक संगठन हैं । क्या यह समतावाद के पक्ष में है ?
उत्तर - नहीं, बिल्कुल नहीं । क्योंकि स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं । अलग-अलग मंच/संगठन होने से दूरियाँ बढ़ती हैं ।
👴 महाकवि एल.एन. सुधाकर LN Sudhakar
👨💼 देवचंद्र भारती 'प्रखर' DC Bharati 'Prakhar'