एल.एन. सुधाकर जी (कुंडलिया) - रघुबीर सिंह 'नाहर'

'नाहर-सतसई' के रचनाकार सुप्रसिद्ध कवि रघुबीर सिंह 'नाहर' ने महाकवि एल.एन. सुधाकर जी के व्यक्तित्व को आधार बनाकर कुंडलिया की रचना की है । ऐसी दस कुंडलिया यहाँ प्रस्तुत हैं ।

एल.एन. सुधाकर जी (कुंडलिया)

अपना लिया बौद्ध धम्म,
रहे नशे से दूर ।
खिलखिलाकर हँस रहे,
बढ़ता जाए नूर ।।
बढ़ता जाए नूर,
प्यार की सरिता बहती ।
पोते हुए जवान,
लाड़ से दादी कहती ।।
कह नाहर कविराय,
एक दिन आया सपना ।
ग‌ये सुधाकर पास,
कहें हम जिनको अपना ।।

देखा ओरा आपका,
मिला शील का ज्ञान ।
धन्य धन्य सुधाकर जी,
आप बड़े बलवान ।।
आप बड़े बलवान,
कष्ट में करी पढ़ाई ।
मिला असीम प्रकाश,
कौम को राह दिखाई ।।
कह नाहर कविराय,
धम्म की डाली रेखा ।
रहते सदा प्रसन्न,
मिले तब हमने देखा ।।

माली तेरे बाग में,
भाँति भाँति के फूल ।
रखवाली करते रहें,
लगती कभी न धूल ।।
लगती कभी न धूल,
सदा खिलते ही रहते ।
मृदुता उनके पास,
प्यार के झरने बहते ।।
कह नाहर कविराय,
चमन में छाई लाली ।
धन्य हुआ परिवार,
मिला है कर्मठ माली ।।

राजा को माना नहीं,
कभी काव्य आधार ।
भीमसागर सृजन किया,
बने गले का हार ।।
बने गले का हार,
प्यार पाया है जग में ।
अपनी धुन के मस्त,
चमकते रहते नभ में ।।
कह नाहर कविराय,
बजाओ मिलकर बाजा ।
नाचें गाएँ साथ,
सुधाकर मन के राजा ।।


चंदा लेकर आ गये,
तारों की बारात ।
घर-आँगन रौशन हुआ,
होती रहती बात ।।
होती रहती बात,
धम्म का पाठ पढ़ाया ।
मिलता आशीर्वाद,
मिशन को खूब बढ़ाया ।।
कह नाहर कविराय,
धरा पर आई नंदा ।
कितनी शीतल रात,
चमकते रहते चंदा ।।

आये थे सुधाकर जी,
अठलकड़ा है नाम ।
म‌ई माह अड़तीस को,
मैनपुरी के ग्राम ।।
मैनपुरी के ग्राम,
मिती पन्द्रह बताई ।
मात-पिता हों धन्य,
करी थी कठिन कमाई ।।
कह नाहर कविराय,
गीत जीवन भर गाये ।
धन्य धन्य हैं आप,
सुधाकर घर में आये ।।

हमने आकर पा लिया,
जिंदा एक विचार ।
पथ बाबा के चल रहे,
पूरा ही परिवार ।।
पूरा ही परिवार,
बोल जय भीम पुकारें ।
कभी न बोलें राम,
श्याम को सभी नकारें ।।
कह नाहर कविराय,
लगा है मेला जमने ।
सुर में गाए गीत,
बधाई दी थी हमने ।।

योद्धा धम्म विचार के,
मिलनसार इन्सान ।
लदे फलों के पेड़ हैं,
किया यहाँ रसपान ।।
किया यहाँ रसपान,
धमनियाँ बोल रही हैं ।
मिला ज्ञान भंडार,
उलझनें खोल रही हैं ।।
कह नाहर कविराय,
ज्ञान का देना पौधा ।
होंगे भावविभोर,
बनेंगे हम भी योद्धा ।।

पाया दमित समाज ने,
हीरा है अनमोल ।
मिश्री सी घुलती रहे,
मीठे जिसके बोल ।।
मीठे जिसके बोल,
ज्ञान की बिखरे आभा ।
चमक रहे हैं आज,
धरा पर होमी भाभा ।।
कह नाहर कविराय,
समय आदर का आया ।
देते हैं सम्मान,
अमोलक हीरा पाया ।।

वरिष्ठ अधिवक्ता, अलवर (राजस्थान)

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