एक महाकवि : दो मुलाकातें

मनुष्य अपने जीवनकाल में बहुत से व्यक्तियों से मिलता है, किंतु वह कुछ ही व्यक्तियों के व्यक्तित्व से प्रभावित होता है । एक कवि के रूप में मेरी पहचान दसवीं कक्षा में पढ़ते समय ही बन गयी थी । तब से लेकर अब तक न जाने कितने कवियों से मैं मिल चुका हूँ । किंतु कुछ ही कवियों को मैंने हृदय से कवि माना है । मेरा मानना है कि केवल काव्य-रचना करने मात्र से कोई कवि नहीं हो जाता है । एक कवि को काव्यशास्त्र का ज्ञान अवश्य होना चाहिए । साथ ही, उसमें दार्शनिक दृष्टि का होना भी आवश्यक है । हिंदी के आंबेडकरवादी कवियों में महाकवि एल.एन. सुधाकर जी के व्यक्तित्व से मैं सर्वाधिक प्रभावित हुआ हूँ ।

एल.एन. सुधाकर जी आंबेडकर-मिशन के प्रति कर्तव्यनिष्ठ, कर्मठ एवं संघर्षशील मिशनरी कवि हैं । वंचित-वर्ग के प्रतिभाशाली युवा साहित्यकारों के प्रति अपने उत्तरदायित्व का भली-भाँति निर्वहन करते हुए उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित करते रहते हैं । उनकी इसी चारित्रिक विशेषता ने मुझे उनके प्रति आकृष्ट किया । सुधाकर जी से मेरा परिचय फेसबुक के माध्यम से हुआ था । मेरी आंबेडकरवादी विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने वर्ष 2020 से लेकर अब तक निरंतर मेरी प्रशंसा की है और मुझे मंगलकामना दी है । मैं उनके उत्कृष्ट कृतित्व और व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उनसे मिलने की इच्छा मेरे मन में उत्पन्न हुई । 4 अप्रैल 2022, दिन-सोमवार को महाकवि सुधाकर जी से शिष्टाचार मुलाकात करने के लिए मैं और GOAL के अध्यक्ष डॉ. राम मनोहर राव जी उनके घर पहुँचे । वहाँ वरिष्ठ आंबेडकरवादी साहित्यकार रघुवीर सिंह 'नाहर' जी (अलवर, राजस्थान) और कर्मशील भारती जी (दिल्ली) भी उपस्थित थे । सभी साहित्यकारों ने एक-दूसरे का कुशाल-क्षेम पूछा । उसके बाद जलपान किया गया । जलपान के बाद उपस्थित हम सभी साहित्यकारों ने महाकवि सुधाकर जी से उनकी कुछ काव्य-रचनाएँ सुनने का आग्रह किया । सुधाकर जी ने स्वरचित कविता 'लाल किला' का सस्वर वाचन किया । उनकी काव्यपाठ करने की शैली हम सभी साहित्यकारों के मन को मोह ली । हम सबकी काव्य-श्रवण भूख शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी । हम सबने सुधाकर जी से कई कविताएँ सुनी और आनंदित हुये ।

भोजन करने के उपरांत सभी साहित्यकारों ने एक-दूसरे को अपनी-अपनी पुस्तकें प्रदान की । उन पुस्तकों में रघुवीर सिंह नाहर जी की काव्य-पुस्तकें थीं - 'पत्थर भी मुखड़ा खोलेंगे' और 'नाहर सतसई' । डॉ. राम मनोहर राव जी की काव्य-पुस्तकें थीं - 'तीसरी आजादी की जंग' और 'आंबेडकरवादी चेतना की ग़ज़लें' । कर्मशील भारती जी का नाटक-संग्रह था - 'क्रांतिज्योति महामना ज्योतिबा फुले' । सुधाकर जी ने अपनी काव्य-पुस्तकें 'बुद्ध सागर', 'भीम सागर', 'उत्पीड़न की यात्रा', 'प्रबुद्ध भारती', 'वामन फिर आ रहा है' आदि हम सभी साहित्यकारों को भेंट की । उस अवसर पर आंबेडकरवादी साहित्यकारों के वैश्विक संगठन (GOAL) की ओर से माननीय एल.एन. सुधाकर जी को स्मृति-चिन्ह प्रदान करके सम्मानित किया गया । उस अवसर पर उपस्थित 'साहित्य संस्थान' गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के प्रकाशक आशीष सिंह जी ने उस दिन की स्मृति को कैमरे में कैद किया था । महाकवि सुधाकर जी से शिष्टाचार मुलाकात करके घर लौटने के बाद दूसरे दिन अचानक मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों न मैं सुधाकर जी की रचनाओं का संपादन करूँ ? यह विचार मेरे हृदय को उद्वेलित किया और मैंने सुधाकर जी की दोनों महाकाव्य-कृतियों 'बुद्धसागर' और 'भीमसागर' को आधार बनाकर 'सुधाकर सागर सार' नाम से पुस्तक का संपादन करने का निश्चय कर लिया । मात्र दो महीनों के अंदर ही 'सुधाकर सागर सार' नामक पुस्तक प्रकाशित होकर पाठकों के लिए उपलब्ध हो गयी ।

महाकवि सुधाकर जी से मेरी दूसरी मुलाकात 30 अप्रैल 2023 को हुई । उस दिन मैं अपने एक शोधार्थी साथी वीरपाल सिंह को साथ लेकर सुधाकर जी का साक्षात्कार लेने उनके घर गया था । सुधाकर जी से मैंने कुल बारह प्रश्न पूछे थे, जिनका उत्तर उन्होंने बहुत ही शालीनता और गंभीरता के साथ दिया था । पारिवारिक वार्तालाप के दौरान सुधाकर जी ने बताया कि उनके पोते ने एक ब्राह्मण-कन्या से विवाह किया है । अंतर्जातीय विवाह को उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दी थी । महाकवि सुधाकर जी शुद्ध रूप से बौद्ध धम्म के अनुयायी हैं । उनके परिवार में सभी शादियाँ बौद्ध रीति से सम्पन्न हुई हैं । बौद्ध धम्म और आंबेडकर मिशन के प्रति उनका संपूर्ण जीवन समर्पित रहा है । अपने जीवन की अंतिम अवस्था में भी वे तथागत बुद्ध और बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के दार्शनिक विचारों का प्रचार-प्रसार करने हेतु मानसिक रूप से सदैव सक्रिय रहते हैं ।

✍️  देवचंद्र भारती 'प्रखर'
संपादक - 'आंबेडकरवादी साहित्य' पत्रिका
संस्थापक व महासचिव - GOAL 

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