'नारी-विरोधी' होना और 'नारीवाद का विरोधी' होना, ये दो अलग-अलग बातें हैं । साहित्यकार एवं समालोचक देवचंद्र भारती 'प्रखर' ने नारीवाद के विरोध में दो कविताएँ लिखी हैं । इस संदर्भ में 'प्रखर' जी का कथन है, " मैं भी नारीवाद का विरोधी हूँ । मैं नारी-वर्चस्व और मातृ-सत्ता का सबसे बड़ा आलोचक हूँ । मेरे कविता-संग्रह 'विषमता के विरुद्ध' से दो नारीवाद-विरोधी कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं । मनमानी टिप्पणी करने के लिए नारीवाद के समर्थक आलोचकों का हार्दिक स्वागत है । "
नारीवाद के विरुद्ध 'प्रखर' जी की कविताएँ
कटु यथार्थ
हम पुरुषों को सुधारने में
ऊर्जा नहीं खपाओ ।
ऐ महिलाओं! कब सुधरोगी
पहले तुम बतलाओ ।।
कटु यथार्थ है, हम पुरुषों ने
कुलटा को भी चाहा ।
मार-पीटकर भी उसके ही
संग जीवन को निबाहा ।।
पढ़ी-लिखी तुम सब महिलाएँ
अहंकार करती हो ।
पैसे और नौकरीवालों से ही
प्यार करती हो ।।
बेरोजगार युवाओं से
कितनों ने की है शादी ?
पहले इसका जवाब दो
फिर बनना यथार्थवादी ।।
नारीवाद की पों-पों
लिंगवाद की बातें
समतावाद नहीं है ।
आंबेडकरवाद का हिस्सा
नारीवाद नहीं है ।।
आंबेडकरवादी चिंतन को
समझो और जानो ।
पहले सच्चे आंबेडकरवादी
को पहचानो ।।
नारीवाद की पों-पों से
हो रहा प्रदूषण ।
स्त्री-पुरुष के बीच दूरियाँ
बढ़तीं क्षण-क्षण ।।
सामाजिक आंदोलन में
आयी है बाधा ।
कैसी क्रांति करेगा
जो है हिस्सा आधा ।।
✍️ देवचंद्र भारती 'प्रखर'