दीपदान उत्सव के नाम पर लोग दीपावली मना रहे हैं ।

दीपदान उत्सव के नाम पर लोग किस प्रकार से दीपावली मना रहे हैं ? दीपावली और दीपदान उत्सव में क्या अंतर है ? दीपदान उत्सव कब मनाना चाहिए ? क्या दीपदान उत्सव का संबंध बौद्ध धम्म से है ? इस बारे में विश्वप्रसिद्ध धम्मज्ञानी मा. भिक्खु चंदिमा का विचार यहाँ प्रस्तुत है । 



क्या लोग दीपदान उत्सव के नाम पर दीपावली मना रहे हैं ? Kya Deepdan Utsav Ke Naam Par Log Deepavali Mana Rahe Hain ? 

प्रिय श्रद्धालु उपासक/उपासिकाओं! मैं इस संदर्भ में दो विचारों को सुन और पढ़ रहा हूँ ।

कुछ लोगों का मानना है कि महाराजा अशोक ने इसी दिन 84 हजार स्तूपों का अनावरण किया था, जिनकी सजावट दीपों से की गयी थी । इसलिए इसे 'दीपदान उत्सव' कहते हैं ।

प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या अशोक प्रतिवर्ष अनावरण दिवस पर 'दीपदान उत्सव' करते रहे ? 

अशोक ने जिस दिन पाटलिपुत्र में स्तूपों का अनावरण किया था, उसी दिन धम्मदीक्षा भी ग्रहण की थी । उस महान दिवस को 'अशोक धम्म विजय दशमी' के नाम से जाना जाता है । अर्थात् वह दिन कार्तिक मास की आमावस्या नहीं, दशमी का दिन था । फिर आमावस्या के दिन दीपदानोत्सव क्यों ? 

कुछ लोगों का मत है कि इसी दिन तथागत गौतम बुद्ध संबोधि प्राप्ति के 7वें वर्ष बाद कार्तिक अमावस्या को कपिलवस्तु पधारे थे ।


यहाँ भी प्रश्न उत्पन्न होता है कि कपिलवस्तु आगमन के 38 वर्ष बाद तथागत का महापरिनिर्वाण हुआ । क्या कपिलवस्तु के लोगों द्वारा तथागत बुद्ध के आगमन के पावन स्मृति में पुनः कभी दीपोत्सव जैसा आयोजन किया गया ? 

उत्तर स्पष्ट है कि 'कभी नहीं ।' 

तो आज क्यों तथागत बुद्ध के कपिलवस्तु आगमन को दीवाली के रूप में मनाया जा रहा है ? 

मैंने जितना भी प्राचीन बौद्ध साहित्य या त्रिपिटक साहित्य को पढा है, दीपदानोत्सव के बारे कोई जानकारी नहीं मिलती । 

मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि महाराजा अशोक ने अनावरण के समय दीपदानोत्सव कराया था, । लेकिन प्रति वर्ष ऐसा उत्सव देखने को नहीं मिला, जबकि वह कई वर्ष जीवित रहे ।

आज भी जब लोगों द्वारा कोई नया विहार या आवास बनाया जाता है, तब उसके उद्घाटन या अनावरण  के अवसर पर साज-सज्जा किया जाता है । लेकिन प्रति वर्ष इस प्रकार का उत्सव देखने को नहीं मिलता ।

यदि दीपदान उत्सव का संबंध तथागत बुद्ध या अशोक के जीवन से संबंधित होता, तो तथागत बुद्ध के अनुयायी जिन-जिन देशों में गये वहाँ बुद्ध पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा आदि की भाँति यह पर्व भी धूम-धाम से मनाया जाता । लेकिन किसी भी बौद्ध देश में दीपदान उत्सव नहीं मनाया जाता है ।


मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि दीपावली का संबंध बुद्ध-धम्म से नहीं है ।  - भिक्खु चंदिमा 

मेरा मत है कि सांस्कृतिक घालमेल करने से अच्छा है कि दीपदान उत्सव  का आयोजन इन प्रमुख दिवसों पर किया जा सकता हैं ।

◾वैशाख पूर्णिमा
◾आषाढ़ी पूर्णिमा
◾कार्तिक पूर्णिमा
◾अशोक धम्मविजय दशमी
◾14 अप्रैल 

श्रद्धालु उपासकगण को चाहिए कि वे प्रत्येक अमावस्या की भाँति इस अमावस्या को भी उपोसथ दिवस के रूप में ही मनाते हुए आठ शीलों का पालन करें ।

सायं त्रिरत्न वंदना, परितपाठ, ध्यान- साधना तथा धम्म चर्चा करें । 

घनसारप्पदित्तेन दीपेन तमधंसिना ।
तिलोकदीपं सम्बुद्धं पूजयामि तमोनुदं ।।

इन गाथाओं के साथ भगवान बुद्ध के सम्मुख दीप प्रज्वलित करें । स्मरण रहे कि बुद्धत्व देवत्व से बढ़कर है । बुद्ध के समकक्ष कोई देव नहीं है । जिसने बुद्ध की पूजा कर ली, उसको और किसी को पूजना शेष नहीं रह जाता ।

-  भिक्खु चन्दिमा
धम्म लर्निंग सेंटर, सारनाथ
वाराणसी, उत्तर प्रदेश 

निष्कर्ष : इस पोस्ट में आपने यह जाना कि लोग दीपदान उत्सव के नाम पर दीपावली मना रहे हैं । दीपावली और दीपदान उत्सव में शाब्दिक रूप से कोई अंतर नहीं है । दीपदान उत्सव का संबंध बौद्ध धम्म से नहीं है । मा. भिक्खु चंदिमा के अनुसार दीपदान उत्सव वैशाख पूर्णिमा, आषाढ़ी पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, अशोक धम्मविजय दशमी और 14 अप्रैल को मनाना चाहिए ?

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✍️  प्रस्तुति - देवचंद्र भारती 'प्रखर' 
एम.ए. (हिंदी, संस्कृत), बी.एड., नेट/जेआरएफ, पीएचडी (अद्यतन), 🏡 वाराणसी, उत्तर प्रदेश
संपादक - आंबेडटरवादी साहित्य पत्रिका, महासचिव - GOAL 📱9454199538
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